Jammu Kashmir: किसी भी समय मिट सकता है पीपुल्स एलायंस का वजूद, अपनी-अपनी सियासत शुरू करने की मूड में हैं घटक दल

नेशनल कांफ्रेंस जिस पर पीएजीडी के अन्य घटक तानाशाही का आरोप लगाते हैं के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री सईद बशारत बुखारी ने ही सबसे पहले एतराज जताते हुए पूछा था कि पांच अगस्त2019 की संवैधानिक स्थिति बहाल कराने का रोडमैेप क्या है।सिर्फ नारे लगाने से बात नहीं बनेगी।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Thu, 21 Jan 2021 10:51 AM (IST) Updated:Thu, 21 Jan 2021 03:56 PM (IST)
Jammu Kashmir: किसी भी समय मिट सकता है पीपुल्स एलायंस का वजूद, अपनी-अपनी सियासत शुरू करने की मूड में हैं घटक दल
20 अक्तूबर 2020 को बने पीएजीडी में मतभेद पहले ही दिन से थे।

श्रीनगर, नवीन नवाज: सज्जाद गनी लाेन के किनारा करने के साथ ही पीपुल्स एलांयस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन (पीएजीडी) का किसी भी समय वजूद पूरी तरह समाप्त हो सकता है, क्योंकि इसका अघोषित मकसद पूरा हाेे चुका है। इस गठजोड़ में अहम भूमिका निभाने वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्षा महबूबा मुफती भी इसमें खुद को असहज महसूस कर रही हैं। वहीं नेशनल कांफ्रेंस भी मजबूरी में इसका हिस्सा बनी थी। नये जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद के चुनाव के बहाने खुद का आंकलन करने के बाद अब पीएजीडी के घटक दल सत्ता तक पहुंचने के लिए अपनी-अपनी सियासत फिर से शुरू करने के मूड में हैं। इसके लिए अब पीएजीडी से निकलने के लिए जिस रास्ते को तलाश में थे पीपुलस कांफ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद गनी लाने ने उसे खोल दिया है। ऐसे में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की बहाली का नारा अब इन दलों के लिए भी केवल नारा बनकर रह जाएगा।

20 अक्तूबर 2020 को बने पीएजीडी में मतभेद पहले ही दिन से थे। इसमें शामिल दलों का घोषित एजेंडा जम्मू-कश्मीर में पांच अगस्त 2019 से पूर्व की संवैधानिक स्थिति बहाल कराना है। पीएजीडी में शामिल एक नेता के मुताबिक, पहले ही दिन से सभी घटक एक-दूसरे को लेकर आशंकित थे। भाजपा, जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी सरीखे दल ही नहीं बल्कि पीएजीडी के घटक दलों के नेता भी इसके गठन और मकसद को लेकर सवाल उठा रहे थेे। 20 अक्तूबर 2020 को बने पीएजीडी में मतभेद पहले ही दिन से थे। इसमें शामिल दलों का घोषित एजेंडा जम्मू-कश्मीर में पांच अगस्त 2019 से पूर्व की संवैधानिक स्थिति बहाल कराना है। पीएजीडी में शामिल एक नेता के मुताबिक, पहले ही दिन से सभी घटक एक-दूसरे को लेकर आशंकित थे। भाजपा, जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी सरीखे दल ही नहीं बल्कि पीएजीडी के घटक दलों के नेता भी इसके गठन और मकसद को लेकर सवाल उठा रहे थेे।

नेशनल कांफ्रेंस के एक वरिष्ठ नेता ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर कहा कि हम लोग पीएजीडी का हिस्सा नहीं बनना चााहते थे। डॉ फारूक और उमर अब्दुल्ला बेशक अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए अन्य दलों के साथ मिलकर कोई आंदोलन चलाना चाहते थे, लेकिन वह गठजोड़ करने से बच रहे थे। पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती के विशेष आग्रह पर ही वह पीएजीडी का हिस्सा बनने को राजी हुए थे।

नेकां के बाद नंबर-दो की पार्टी नहीं बनना चाहेगी पीडीपी : पीपुल्स डेमोके्रटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने कई बार पीएजीडी में मतभेदों को नकारते हुए कहा था कि इसका गठन एक बड़े मकसद के लिए हुआ है, लेकिन वह भी नेकां से खुश नहीं थी। क्योंकि पीडीपी कभी नहीं चाहेगी की वह पीएजीडी का हिस्सा बनकर नेकां के बाद दो नंबर की पार्टी बनकर रहे।

देखना होगा कौन मोदी-शाह के साथ जाएगा : कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ अहमद अली फैयाज के मुताबिक, पीएजीडी के लिए जिला विकास परिषदों के चुनाव एक प्रयोग से ज्यादा कुछ नहीं था। पीएजीडी के घटकों ने देर-सवेर जम्मू कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनावों के संदर्भ में डीडीसी चुनावों में अपनी स्थिति का आकलन किया है। आम कश्मीरी को पहले ही पीएजीडी को लेकर कई संदेह थे। आम कश्मीरी अच्छी तरह जानता है कि अब अनुच्छेद 370 बहाल नहीं हो सकता, वह लोकतंत्र में यकीन रखता है इसलिए वोट डालने गया था। इस बात की कोई अहमियत नहीं है कि कौन पहले अलग होता है। मायने इस बात के हैं कि कौन मोदी-शाह के साथ जाता है। बाकी बिना आवाज किए पीएजीडी से अलग हो सकते हैं।

ये हैं पीएजीडी के घटक दल: नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, जम्मू कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट, आवामी नेशनल कांफ्रेंस, माकपा और पीपुल्स कांफ्रेंस अब अलग हो चुकी है।

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