World Dance Day: कोरोना के चलते घरों की चारदीवारी के अंदर ही थिरके डांसर
नृत्यांजलि की निर्देशक डा. प्रिया दत्ता ने कहा कि कोरोना के चलते हर तरफ नकारात्मकता बढ़ती दिख रही है। लेकिन इसके साथ ही जीवन भी चल ही रहा है। तनाव के इस दौर में सकारात्मक सोच सकारात्मक कार्यों का होना बहुत जरूरी है।
जम्मू, अशोक शर्मा : जोश और उमंग के साथ मनाया जाने वाला अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस कोरोना के चलते इस वर्ष कलाकारों को घरों की चारदीवारी में ही मनाना पड़ा। हालांकि पिछले वर्ष भी यह दिवस कलाकार नहीं मना पाए थे। इस वर्ष नृत्य गुरुओं ने अपने-अपने तौर पर तैयारियां तो बहुत की थी लेकिन कोरोना के चलते उनकी सभी तैयारियां धरी की धरी रह गई। बेशक नृत्य कलाकार कहीं कोई बड़ा कार्यक्रम नहीं कर पाए लेकिन घरों में ही नृत्य कर उन्होंने दिन भर सोशल मीडिया पर जो पोस्ट चढ़ाए। इससे साफ हो गया कि उन्हें थिरकने मौज मस्ती करने का जब मौका मिले वह पीछे नहीं रहते।घर से डांस की शैलियां पोस्ट कर कलाकारों ने दर्शा दिया कि तनाव मुक्ति में डांस से अच्छी कोई विद्या नहीं।
इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूजिक एंड फाइन आर्ट्स के राज कुमार बहरुपिया ने डांस को लेकर अपनी बात इस शे’र के माध्यम से कही ‘फन किसी शख्स को छोटा नहीं रहने देता, रक्स भी हद से गुजरने के लिए होता है’। उनका कहना है कि कला से वह ऊंचाई संभव है, जिसकी कल्पना भी संभव नहीं। वहीं डांस तो ऐसी कला है, जिसकी कोई हद नहीं। लेकिन अफसोस इस बात का है कि डांस को जो स्थान हमारे क्षेत्र में मिलना चाहिए था नहीं मिल पाया है। कोशिश होनी चाहिए कि डांस को शिक्षा का हिस्सा बनाया जाए। आज के जो हालात हैं, उसमें आने वाले दिनों में इस कला की बहुत ज्यादा जरूरत रहेगी।
नृत्यांजलि की निर्देशक डा. प्रिया दत्ता ने कहा कि कोरोना के चलते हर तरफ नकारात्मकता बढ़ती दिख रही है। लेकिन इसके साथ ही जीवन भी चल ही रहा है। तनाव के इस दौर में सकारात्मक सोच, सकारात्मक कार्यों का होना बहुत जरूरी है। इसी लिए आज नृत्यांजलि ने वर्चुअल मोड पर कार्यक्रम कर विश्व नृत्य दिवस मनाया। हालांकि आज के दिन पर उन्होंने नृत्यांजलि ओपन एयर थियेटर शुरू करने की तैयारी कर रखी थी। कलाकारों को मंच पर कोई कार्यक्रम न करने की निराशा तो है लेकिन कलाकारों को उसकी कला का प्रदर्शन करने से आज कोई नहीं रोक सकता। वर्चूअल मोड पर आज की प्रस्तुति को काफी सराहना मिली है, जो कलाकारों की संतुष्टी के लिए काफी है।
भारत में हुई है नृत्य कला की उत्पत्ति: बेशक समय के साथ नृत्य दिवस मनाने की जरूरत महसूस की गई।अब यह दिन विश्व भर में मनाया जाता है। लेकिन नृत्य कला की उत्पत्ति भारत में हुई मानी जाती है।मान्यता है कि भारत में नृत्य कला 2000 वर्ष पुरानी है।
त्रेतायुग में देवताओं के आग्रह पर पहली बार ब्रह्माजी ने भी नृत्यकला का प्रदर्शन किया था। उन्होंने मानव जाति को नृत्य वेद की सौगात भी दी। भारत के हर क्षेत्र में अपने-अपने क्षेत्र के विशिष्ठ नृत्य होते हैं।हर नृत्य की अपनी शैली होती है। सबका अपना लालित्य होता है। नृत्य सभ्यता को जाहिर करने का उत्तम जरिया है। विशेष अवसरों पर नृत्य की अलग-अलग शैली प्रसिद्ध है। खासकर फसल की कटाई पर देश भर में हर क्षेत्र के किसानों की मस्ती की अभिव्यक्ति लोकनृत्यों के माध्यम से होती है। जम्मू में अपने देवी देवताओं को खुश करने के लिए भी नृत्य होते हैं। कुड लोक नृत्य हो जा गगैल, जागरणा, फूमनियां, गीतडू, डोगरा भंगड़ा आदि सभी तरह के नृत्य ऐसे हैं, जो किसी को भी थिरकने को विवश कर देते हैं।