Kargil Vijay Diwas...इन्हें नहीं बलिदान का मोल, यहां शहीदों की स्मारक पर नहीं लगता मेला
कारगिल विजय दिवस पर पूरा देश शहीदों को नमन कर रहा है। द्रास से लेकर दिल्ली तक जगह-जगह श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किए गए लेकिन हैरत की बात है कि जम्मू में 4877 शहीदों के अंकित नाम वाले बेहद आकर्षक बलिदान स्तंभ पर कोई कार्यक्रम तक नहीं हुआ।
अवधेश चौहान, जम्मू : कारगिल विजय दिवस पर पूरा देश शहीदों को नमन कर रहा है। द्रास से लेकर दिल्ली तक जगह-जगह श्रद्धांजलि समारोह आयोजित कर बलिदानियों को याद किया जा रहा है, लेकिन हैरत की बात है कि जम्मू में शहीदों की याद में 13 करोड़ रुपये की लागत से बने और 4877 शहीदों के अंकित नाम वाले बेहद आकर्षक बलिदान स्तंभ पर कोई कार्यक्रम तक नहीं हुआ। रखरखाव के अभाव में अब यह बलिदान स्तंभ कम और जंगल अधिक बनता जा रहा है। शहीदों की याद में जलाई गई ज्योत भी जलती-बुझती रहती है। पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने काम मादा रखने वाला यह स्तंभ प्रशासन की बेरुखी के चलते वीरान पड़ा है। इससे आम लोग ही नहीं, शहीदों के परिवार भी बेहद आहत हैं।
कारगिल विजय दिवस पर सोमवार को कुछ देशभक्त इस जज्बे से पहुंचे कि बलिदान स्तंभ पर शहीदों को नमन करने का मौका मिलेगा, लेकिन अमर जवान ज्योति को बुझा देख कर उन्हेंं मायूसियत हुई। स्थानीय युवक राजेश सिंह ने कहा कि प्रशासन के लिए शहीदों की शहादत का शायद कोई मोल नहीं है। युवा सुमित ने कहा कि प्रशासन की बेरुखी के चलते इतना पवित्र स्थल अक्सर वीरान ही रहता है। कभी कभार सेना ने यहां जरूर कार्यक्रम आयोजित किया, लेकिन प्रशासन ने इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया।
तत्कालीन थल सेना अध्यक्ष विज ने रखा था नींव पत्थर :
देश के तत्कालीन थल सेना अध्यक्ष और जम्मू के रहने वाले एनसी विज ने बलिदान स्तंभ बनाने का फैसला किया था। उन्होंने ही स्तंभ का नींव पत्थर भी रखा था। सेना ने इसका निमार्ण करवाकर राज्य सरकार के पर्यटन विभाग को सौंप दिया था, ताकि यह स्थल जम्मू आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र बन सके। जम्मू कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने 24 नवंबर 2009 को बलिदान स्तंभ का उद्घाटन कर इसे सेना से ले लेने की घोषणा की थी, लेकिन आज तक यह साफ नहीं हुआ कि इसके रखरखाव की जिम्मेदारी किसके पास है।
बलिदान स्तंभ की क्या है खासियत :
सैनिक की बंदूक के आकार के साठ मीटर ऊंचे अपनी तरह के देश के पहले स्तंभ के इर्द गिर्द 52 खंभों पर 4877 शहीदों के नाम अंकित हैं, जिन्होंने पाकिस्तान और चीन से हुए पांच युद्धों में मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहादत पाई। स्तंभ के कुछ खंभे कारगिल युद्ध में शहीद हुए 543 सैनिकों को समॢपत हैं। इन शहीदों में से 71 जम्मू-कश्मीर के विभिन्न जिलों से थे।
नहीं मालूम, बलिदान स्तंभ पर्यटन विभाग के पास है :
लोकार्पित होने के 12 साल बाद भी प्रशासन यह मानने को तैयार नहीं है कि सेना ने इसे उन्हेंं सौंप दिया है। इस बारे में जब जम्मू के पर्यटन विभाग के निदेशक विवेकानंद राय से बात की गई तो उन्होंने कहा कि उन्हेंं नहीं मालूम है कि बलिदान स्तंभ पर्यटन विभाग के पास है। हालांकि इंटरनेट मीडिया पर विभाग इसे जम्मू का प्रमुख आकर्षण बताते हुए दिखता है।
Come to witness the memorial, located on the way to #BahuFort, constructed to show eternal gratitude to the martyrs of various wars fought in J&K since independence.#BalidanStambh #TourismJammu pic.twitter.com/3cBaSQJnYp
— Jammu Tourism (@JammuTourism) February 9, 2018
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— Jammu Tourism (@JammuTourism) March 12, 2019
रखरखाव पर ध्यान दे प्रशासन :
जम्मू इकजुट के प्रधान एडवोकेट अंकुर शर्मा का कहना है कि उम्मीद थी कि बलिदान स्तंभ युवाओं में देश भक्ति की अलख जगाएगा। आम लोगों के साथ पर्यटक भी इसे देखने आएंगे, लेकिन प्रशासन के रवैये के कारण यह स्थल बदहाली के आंसू बहा रहा है। प्रशासन को तत्काल इसके रखरखाव पर ध्यान देना चाहिए।
केवल कुछ पुलिसकर्मी रहते हैं तैनात :
बलिदान स्तंभ पहुंचे सुमित ने कहा कि केवल पुलिस के कुछ जवान ही इसकी सुरक्षा में तैनात रहते हैं। यहां आने वालों को अंदर जाने को लेकर रोक-टोक की जाती है। अंदर मोबाइल लेने की भी अनुमति नहीं।