जम्मू कश्मीर में गृह जिले में ठाठ की नौकरी कर रहे खास एग्रीकल्चर टेक्नोक्रेट

कृषि निदेशक इंद्रजीत ने बताया कि अभी उनको पदभार संभाले कुछ दिन ही हुए हैं लेकिन यह लग रहा है मानों निदेशक के पास ट्रांसपर के अलावा दूसरा कोई काम ही न हो।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Sat, 25 Jan 2020 11:13 AM (IST) Updated:Sat, 25 Jan 2020 11:13 AM (IST)
जम्मू कश्मीर में गृह जिले में ठाठ की नौकरी कर रहे खास एग्रीकल्चर टेक्नोक्रेट
जम्मू कश्मीर में गृह जिले में ठाठ की नौकरी कर रहे खास एग्रीकल्चर टेक्नोक्रेट

जम्मू, अशोक शर्मा । कृषि विभाग में कोई ट्रांसफर नीति न होने का सबसे ज्यादा खामियाजा एग्रीकल्चर एक्सटेंशन अस्सिटेंटों (एईए) को भुगतना पड़ रहा है। हाल यह है कि प्रभावशाली एईए पिछले दस साल से ज्यादा समय से गृह जनपद में सेवाएं दे रहे हैं, जबकि अन्य दूसरे जिलों में नौकरी करने को मजबूर हैं।

कृषि विभाग में 2007 में बेरोजगार कृषि स्नातकों को रहबर-ए-जरात योजना के तहत नियुक्त किया गया था। इस नीति के चलते सात-आठ और नौ साल के बाद तीन चरणों में कृषि स्नातकों को जम्मू संभाग में करीब 1400 स्थायी रूप से विलेज एग्रीकल्चर एक्सटेंशन असिस्टेंट के रूप में लगाया गया। जिस पद को बाद में एग्रीकल्चर एक्सटेंशन असिस्टेंट में बदल दिया गया। योजना के तहत पंचायत स्तर पर नियुक्तियां की गईं।

इसके साथ ही एग्रीकल्चर टेक्नोक्रेट से भेदभाव शुरू हो गया। जम्मू जिले के विभिन्न जोनों के अलावा, सुंदरबनी, नौशहरा, कठुआ, सांबा ऊधमपुर, रामनगर, राजौरी समेत अन्य जोनों में कई कर्मचारी दस साल से ज्यादा समय से अपने गृह जिलों में सेवाएं दे रहे हैं।

जिले के प्रभावशाली एग्रीकल्चर टेक्नोक्रेटों के लिए कृषि निदेशालय में ऐसा तंत्र काम कर रहा है, जो खास कर्मचारियों को जिले के एक जोन से दूसरे जोन और वापस अपने जोन में ट्रांसफर कर देता है। वहीं ऐसे कर्मचारियों की कमी नहीं है, जो वर्षो से अपने गृह जिलों से बाहर सेवाएं दे रहे हैं। विभाग में उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। इस बारे में एग्रोकलचर टेक्नोक्रेट खुलकर बोलने को तैयार नहीं हैं। दबे स्वर में इन्होंने कृषि निदेशक से मांग की है कि ट्रांसफर नीति है तो उस पर अमल हो और ट्रांसफर को पारदर्शी बनाया जाए।

हर दिन अपने घर के पास तबादले के लिए आते हैं फोन: निदेशक

कृषि निदेशक इंद्रजीत ने बताया कि अभी उनको पदभार संभाले कुछ दिन ही हुए हैं, लेकिन यह लग रहा है मानों निदेशक के पास ट्रांसपर के अलावा दूसरा कोई काम ही न हो। हर कोई अपने घर के पास नौकरी करना चाहता है। ऐसा कैसे संभव है। हर दिन सौ के करीब फोन, आवेदन और ट्रांसफर के लिए कई तरह का प्रेशर बनाने की कोशिश की जाती है। जो लोग पिछले दस वर्षों से एक ही स्थान पर कार्यरत हैं, यह तो देखना पड़ेगा कि वे कैसे वहां हैं या ऐसा कौन सा कार्य है, जो उनके बिना संभव नहीं है। ट्रांसफर को लेकर जल्द एक सूची बनाई जाएगी और देखा जाएगा कि कौन लोग कितनी देर से एक ही जोन में तैनात हैं। पहले क्या होता रहा, इस बारे में कुछ कह नहीं सकता। मुङो विभाग चलाने के लिए नियम के अनुसार ही काम करना है। किसी की जायज समस्या को अनदेखा भी नहीं किया जाएगा, लेकिन आउट आफ वे मुझसे कोई उम्मीद भी न करें।

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