Jammu Kashmir: कश्मीर में सियासी जमीन तलाशने में जुटी नेकां-पीडीपी

आम कश्मीर भी इन दोनों दलों से अब दूरी बना चुका है और इसकी पुष्टि नवंबर-दिसंबर 2020 में हुए जिला विकास परिषदों के चुनाव में भी हो गई। जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया के संपन्न होते ही विधानसभा चुनाव कराए जाने पर भी केंद्र सरकार लगातार काम कर रही है।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Thu, 15 Apr 2021 10:34 AM (IST) Updated:Thu, 15 Apr 2021 10:34 AM (IST)
Jammu Kashmir: कश्मीर में सियासी जमीन तलाशने में जुटी नेकां-पीडीपी
हमारे नौजवान और हमारी मां-बहने नेशनल कांफ्रेंस के झंडे के तले जमा हो रहे हैं।

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमाेक्रेटिक पार्टी ने वादी में अपने खिसकते जनाधार को बचाने के लिए सदस्यता अभियान शुरु कर दिया है। दोनों दल सदस्यता अभियान चरणबद्ध तरीके से चलाते हुए घर-घर जाकर लोगों से संपर्क कर रहे हैं। किसी को भी पार्टी का सदस्य बनाने से पहले उसे अपने राजनीतिक एजेंडेे और जम्मू-कश्मीर के बदले हालात से अवगत करा रहे हैं। नेकां और पीडीपी द्वारा चलाए जा रहे सदस्यता अभियान को स्थानीय राजनीतिक हल्कों में दोनों दलों द्वारा आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी के रुप में भी देखा जा रहा है।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि सदस्यता अभियान को जिस तरह से चलाया जा रहा है, उसे देखते हुए कहा जा सकता कि पांच अगस्त 2019 से पूर्व की संवैधानिक स्थिति की बहाली की मांग करनी वाली नेकां और पीडीपी भी अब इस बदलाव को स्वीकार कर चुकी हैं।

पांच अगस्त 2019 को केंद्र सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लागू किए जाने के बाद जम्मू कश्मीर में राजनीतिक परिस्थितियां पूरी तरह बदल चुकी हैं। नेकां का आटोनामी का नारा और पीडीपी का सेल्फ रुल का एजेंडा अब पूरी तरह आप्रसंगिक हो चुका है। आम कश्मीर भी इन दोनों दलों से अब दूरी बना चुका है और इसकी पुष्टि नवंबर-दिसंबर 2020 में हुए जिला विकास परिषदों के चुनाव में भी हो गई। जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया के संपन्न होते ही विधानसभा चुनाव कराए जाने पर भी केंद्र सरकार लगातार काम कर रही है।

वरिष्ठ पत्रकार रशीद राही ने कहा कि नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ने सदस्यता अभियान डीडीसी चुनावों में हुए मतदान से सबक लेते हुए ही शुरु किया है। दोनों दलों का जनाधार बहुत खिसक चुका है, लोग उनसे दूर होते जा रहे हैं। दोनों दलों को समझ आ चुका है कि अगर जम्मू-कश्मीर में चुनाव होते हैं तो वे अपने दम पर तो क्या आपस में गठजोड़ कर भी सरकार नहीं बना सकते। इसलिए उन्होंने यह सदस्यता अभियान चलाया है। इस अभियान की एक खासियत यह भी है कि दोनों ही युवाओं और महिलाओं पर अपना ध्यान केंद्रित किए हुए हैं। जिस तरह से पीडीपी और नेकां यह अभियान चला रहे हैं, उसे देखते हुए आप कह सकते हैं कि दाेनों दलों ने किसी हद तक पांच अगस्त 2019 के बदलाव को स्वीकार कर लिया है, सिर्फ अपनी साख बचाने के लिए उसे खुलकर मानने से इंकार कर रहे हैं।

दोनों दल सदस्यता अभियान क जरिए आम लोगों के बीच जाकर अपनी सक्रियता बढ़ाना चाहते हैं। दोनों के पास मौजूदा हालात में कोई ऐसा मुददा नहीं था,जिससे वह लोगों काे अपने साथ जोड़ सकते, इसलिए सदस्यता अभियान चलाया गया है। अगर दोनो के पास कोई मजबूत और प्रभावी एजेंडा या मुददा होता तो सदस्यता अभियान नहीं बल्कि जनांदोलन चलाया जा रहा होता।

सदस्यता अभियान सामान्य राजनीतिक प्रक्रिया: नेकां महासिचव- नेशनल कांफ्रेंस के महासचिव अली मोहम्मद सागर ने कहा कि सदस्यता अभियान एक सामान्य राजनीतिक प्रक्रिया है। सभी राजनीतिक दल समय-समय पर इसे चलाते हैं। नेकां ने बीते कई सालों से यह अभियान नहीं चलाया था। हमने पिछले साल ही यह अभियान चलाना था, लेकिन कोविड-19 के कारण ऐसा नहीं किया गया। बाद में जिला विकास परिषदों के चुनाव शुरु हो गए। हम चरणबद्ध तरीके से सदस्यता अभियान चला रहे हैं। लोग बड़ी संख्या में विशेषकर हमारे नौजवान और हमारी मां-बहने नेशनल कांफ्रेंस के झंडे के तले जमा हो रहे हैं।

पीडीपी की नीतियों से लोगों को करा रहे अवगत: ताहिर- पीडीपी के युवा नेता सईद ताहिर ने कहा कि हमने पिछले सप्ताह ही सदस्यता अभियान शुरु किया है। हम किसी भी जगह जब लोगों से संपर्क करते हुए उन्हें अपनी नीतियों और एजेंडे से अवगत करातेहैं तो वह सदस्यता ग्रहण कर रहे हैं। हम सिर्फ सदस्यों की संख्या बढ़ाने के लिए हरेक को पार्टी का सदस्य नहीं बना रहे हैं। हमारे कार्यकर्ता व नेता जहां भी जाते हैं, पहले वे वहां लोगों को संबोधित करते हैं। लोगों के सवालों का जवाब भी देते हैं। उसके बाद हम सदस्यता की बात करते हैं। हर आयु वर्ग के लोग पीडीपी का दामन थाम रहे हैं। अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद जिस तरह से हमारी नेता महबूबा मुफती ने जो रवैया अपनाया है, उन्होंने जो केंद्र के आगे झुकने से मना किया है, उससे आम कश्मीरी मानता है कि वह कश्मीरियों को उनका खाेया हक दिला सकती हैं, बस उनके हाथ मजबूत करने की जरुरत है। 

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