Jammu Kashmir: चार साल, सात पदक... जज्बा ऐसा कि दुश्मन भी कांप जाए
श्रीनगर में अक्टूबर 2017 में सीमा सुरक्षा बल के कैंप पर फिदायीन हमले को नाकाम करने वाले 35 वर्षीय नरेश ने सीआरपीएफ की क्विक एक्शन टीम को अलग पहचान दी है।
जम्मू, विवेक सिंह : सैन्य क्षेत्रों में खेलता-गुजरता बचपन जब जवां हुआ तो वीरता की ऐसी कहानी गढ़ने लगा कि नई पीढ़ी देशभक्ति से ओतप्रोत हो जाए। कश्मीर में आतंकियों को धूल चटाने वाले सीआरपीएफ के एक असिस्टेंट कमांडेंट द्वारा महज चार साल में सात वीरता पुरस्कार हासिल करना कोई मामूली बात नहीं है। वीरता की ऐसी मिसाल कि दुश्मनों की रूह कांप जाए।
यह कोई और नहीं, बल्कि सेना में कैप्टन पद से सेवानिवृत्त हुए रामकिशन के बेटे असिस्टेंट कमांडेंट नरेश कुमार हैं। वह कश्मीर में अपनी पहली ही तैनाती के दौरान आतंकवादियों के लिए खौफ का पर्याय बने रहे। अब वह दिल्ली में तैनात हैं। नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (एनएसजी) द्वारा प्रशिक्षित नरेश उन वीरों में शामिल हैं, जिन्हें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर पुलिस वीरता पदक देने की घोषणा हुई है। उनके जैसे बहादुर सिपाहियों की बदौलत कश्मीर में सीआरपीएफ की क्विक एक्शन टीम ने इस बार 17 वीरता पदक मिले हैं। यह सीआरपीएफ के लिए नई इबारत है। यह टीम अब तक कश्मीर में अब तक करीब 60 आतंकी मार चुकी हैं। पंजाब के होशियारपुर के गढ़ शंकर निवासी नरेश के पिता और दादा भी सेना में रहे हैं। एनएसजी द्वारा विशेष प्रशिक्षण के बाद उन्होंने कश्मीर में पहली ही तैनाती के दौरान चार वर्षो में अपना सातवां पुलिस वीरता पदक जीता है।
क्विक एक्शन टीम को अलग पहचान दी : श्रीनगर में अक्टूबर 2017 में सीमा सुरक्षा बल के कैंप पर फिदायीन हमले को नाकाम करने वाले 35 वर्षीय नरेश ने सीआरपीएफ की क्विक एक्शन टीम को अलग पहचान दी है। हमले में जैश-ए-मोहम्मद के चार आतंकी मारे गए थे। वह कश्मीर में 2013 से 2019 तक लगातार आतंकरोधी अभियानों में शामिल रहे हैं। कश्मीर में पहली तैनाती के दौरान आतंकियों के खिलाफ अभियानों में एनसीजी से मिला प्रशिक्षण बड़ा काम आया।
गणतंत्र दिवस पर भी हुए थे सम्मानित: कश्मीर में तकरीबन सात साल बिताने के बाद वर्ष 2019 में दिल्ली में दूसरी पोस्टिंग पर तैनात हुए। काबिलीयत को देखते हुए नरेश को इस समय दिल्ली में अहम पद पर तैनात किया गया है। बहाुदरी के लिए उन्हें इस वर्ष गणतंत्र दिवस पर भी सम्मानित किया गया था। दैनिक जागरण से बातचीत में उन्होंने बताया कि कश्मीर में आतंकवाद पर कड़े प्रहार हो रहे हैं। उन्होंने आतंकरोधी अभियानों में कामयाबी के लिए सेना, सुरक्षाबलों के बुलंद हौसले, बेहतर ट्रे¨नग, कड़ी सर्तकता और आपसी समन्वय का परिणाम बताया। पहले प्रयास में हुए सफल असिस्टेंट कमांडेंट नरेश कुमार का बचपन सैन्य क्षेत्रों में बीता। उन्होंने सेना में लेफ्टिनेंट बनने के लिए सात बार कोशिश की। भाग्य को कुछ और ही मंजूर था। वह सीआरपीएफ में पहली ही बार में असिस्टेंट कमांडेंट की परीक्षा में पास हो गए। सीआरपीएफ के 44 डेबो बैच के अधिकारी को शहरी इलाकों में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में नेशनल सिक्योरिटी गार्ड द्वारा प्रशिक्षण दिया गया।
पत्नी से हर पल मिला संबल: असिस्टेंट कमांडेंट नरेश कुमार की पत्नी शीतल रावत भी सीआरपीएफ में असिस्टेंट कमांडेंट हैं। शीतल भी अपने पति के साथ कश्मीर में तैनात रहीं। जब वर्ष 2018 में नरेश आतंकवादियों के खिलाफ मुहिम चला रहे थे तब शीतल श्रीनगर एयरपोर्ट की सुरक्षा का जिम्मा संभाल रही थीं। नरेश बताते हैं कि उनकी पत्नी का अधिकारी होना भी सहायक रहा हैं। इससे मुझे संबल मिला। एक अधिकारी होने के नाते उन्होंने आतंकवादियों विरोधी मुहिम में हिस्सा लेने में मुझे पूरा सहयोग दिया। शीतल भी इस समय दिल्ली में तैनात हैं।