Kashmiriyat: कश्मीरी पंडित महिला के निधन पर परिवार के साथ खड़े हुए मुस्लिम, अंत्येष्टि का भी प्रबंध किया

अजस में रहने वाली 90 वर्षीय रत्न रानी भट्ट अपने पति के काशीनाथ भट्ट के साथ अपने पैतृक गांव में ही रहती थी। उनके परिवार ने आतंकियों की धमकियों के बावजूद गांव नहीं छोड़ा था। उनके पति का कुछ साल पहले ही देहांत हुआ है।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Sat, 05 Jun 2021 07:42 AM (IST) Updated:Sat, 05 Jun 2021 11:42 AM (IST)
Kashmiriyat: कश्मीरी पंडित महिला के निधन पर  परिवार के साथ खड़े हुए मुस्लिम, अंत्येष्टि का भी प्रबंध किया
पूरा गांव कश्मीरी पंडित परिवार के साथ है।

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो: कश्मीर में आम लोगों में भाईचारे और सुख-दुख में साथ निभाने की भावना उन्हें सदैव के लिए जीवंत बनाती है। उत्तरी कश्मीर के बांडीपोरा जिले के अजस में कश्मीरी पंडित महिला के निधन पर गांव के सभी मुस्लिम शोक संतप्त परिवार के साथ खड़े हो गए। महिला का लंबी बीमारी के बाद गत शुक्रवार को निधन हो गया था। स्थानीय मुस्लिमों ने न सिर्फ अर्थी को कंधा दिया, बल्कि अंत्येष्टि का भी प्रंबंध किया।

अजस में रहने वाली 90 वर्षीय रत्न रानी भट्ट अपने पति के काशीनाथ भट्ट के साथ अपने पैतृक गांव में ही रहती थी। उनके परिवार ने आतंकियों की धमकियों के बावजूद गांव नहीं छोड़ा था। उनके पति का कुछ साल पहले ही देहांत हुआ है। गत शुक्रवार की सुबह रत्न रानी का देहांत होने की खबर मिलते ही आसपास रहने वाले मुस्लिम उसके घर में जमा हो गए। उन्होंने दिवंगत के शोक संतप्त स्वजन को सांत्वना दी और दिवंगत की अंतिम यात्रा की तैयारी का बंदोबस्त किया।

कश्मीरी पंडित हमारे भाई: अजस में ही रहने वाले मुस्लिम वृद्ध मोहम्मद अशफाक ने कहा कि कश्मीरियों के बिना कश्मीर अधूरा है। ये हमारे भाई हैं। ऐसे में यह सवाल ही नहीं उठता कि एक दूसरे के सुख-दुख में हम साथ न हों। अब तो कुछ पंडित परिवार ही यहां रह गए हैं। उनकी सुरक्षा, उनका ख्याल हमारा जिम्मा है।90 वर्षीय रत्न रानी अपने परिवार के साथ शुरूआत से यहां रह रही थी। उनकी अंतिम यात्रा में परिवार के साथ खड़ा होना एक पड़ोसी होने के नाते हमारा फर्ज है। आतंकी संगठन कुछ भी कहें पर हम किसी किसी की धमकी में आकर अपने भाइयों को नहीं छोड़ सकते। पूरा गांव कश्मीरी पंडित परिवार के साथ है। 

बेटे ने कहा-कभी अल्संख्यक महसूस नहीं किया: रत्न रानी के पुत्र ने कहा कि हमने यहां कभी भी खुद को अकेला या अल्पसंख्यक महसूस नहीं किया। कश्मीरी पंडितों का हमारा अकेला परिवार ही इस पूरे गांव में रह रहा था। आज मेरी मां का निधन होने पर पूरा गांव जमा हो गया। अन्यथा, मेरे लिए मेरी मां की शवयात्रा को श्मशान ले जाना और अंत्येष्टि मुश्किल होती।

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