Article 370: PSA में बंदी बनाए गए फारूक अब्दुल्ला, 2 साल तक रखे जा सकते हैं कैद

PSA पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला को राज्य प्रशासन ने जन सुरक्षा अधिनियम के तहत बंदी बना लिया है। पीएसए के तहत बंदी बनाए जाने वाले वह राज्य पहले पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद हैं।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Mon, 16 Sep 2019 01:50 PM (IST) Updated:Mon, 16 Sep 2019 04:25 PM (IST)
Article 370: PSA में बंदी बनाए गए फारूक अब्दुल्ला, 2 साल तक रखे जा सकते हैं कैद
Article 370: PSA में बंदी बनाए गए फारूक अब्दुल्ला, 2 साल तक रखे जा सकते हैं कैद

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री डा फारुक अब्दुल्ला को राज्य प्रशासन ने जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत बंदी बना लिया है। पीएसए के तहत बंदी बनाए जाने वाले वह राज्य पहले पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद हैं। इसके अलावा उन्हें जहां रखा गया है,उसे अस्थायी जेल का दर्जा दिया गया है। डा फारुक अब्दुल्ला अपने ही मकान में बंद हैं।

यहां यह बताना असंगत नहीं होगा कि पीएसए को राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री स्व शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने वर्ष 1978 में लागू किया था। उस समय उन्होंने यह कानून जंगलों के अवैध कटान में लिप्त तत्वों को रोकने के लिए बनाया था, बाद में इसे उन लोगों पर भी लागू किया जाने लगा था,जिन्हें कानून व्यवस्था के लिए संकट माना जाता है।

श्रीनगर के सांसद और जम्मू कश्मीर में तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके नैकांध्यक्ष डा फारुक अब्दुल्ला को पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन विधेयक को लागू करने से पूर्व चार अगस्त की मध्यरात्रि उनके घर में प्रशासन ने एहतियात के तौर पर नजरबंद किया था। उनके पुत्र पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को भी उसी रात एहतियातन हिरासत में लिया गया था। वह हरि निवास में एहतियातन हिरासत में हैं।

डा फारूक अब्दुल्ला काे राज्य सरकार ने बीती रात ही पीएसए के तहत बंदी बनाया है। इस कानून के मुताबिक, संबधित व्यक्ति को बिना किसी सुनवाई दो साल तक एहतियातन हिरासत में रखा गया है। आज सुबह सर्वाेच्च न्यायालय में एमडीएमके नेता वायको द्वारा डाक्‍टर फारुक अब्दुल्ला की रिहाई के लिए दायर हैबेस कार्पस याचिका पर सुनवाई से पूर्व ही नैकांध्यक्ष को पीएसए के तहत बंदी बनाए जाने की पुष्टि हुई है।

संबधित सूत्रों ने बताया कि सर्वाेच्च न्यायालय में फारुक अब्दुल्ला को हिरासत में रखने को न्यायोचित्त ठहराने के लिए ही यह कदम उठाया गया है।

यहां यह बताना असंगत नहीं होगा कि जम्मू कश्मीर में पीएसए को पहली बार तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व शेख माेहम्मद अब्दुल्ला ने वर्ष 1978 में लागू किया था। उस समय इसे जंगलों के अवैध कटान में लिप्त तत्वों को रोकने के लिए आवश्यक बताया गया था। बाद में समय बीतने के साथ ही इसका इस्तेमाल असामाजिक तत्वों, आतंकियों, कानून व्यवस्था के लिए संकट बनने वाले तत्वों और कई बार सत्ताधारी दल द्वारा अपने विरोधियों पर भी कथित तौर पर किया गया।

अलगाववादियों को भी अक्सर इसी कानून के तहत बंदी बनाया जाता रहा है। इस कानून के मुताबिक, दो साल तक किसी तरह की सुनवाई नहीं हो सकती थी,लेकिन वर्ष 2010 में इसमें कुछ बदलाव किए गए। पहली बार के उल्लंघनकर्त्ताओं के लिए पीएसए के तहत हिरासत अथवा कैद की अवधि छह माह रखी गई और अगर उक्त व्यक्ति के व्यवहार में किसी तरह का सुधार नहीं होता है तो यह दो साल तक बढ़ाई जा सकती है।

हालांकि डा फारुक अब्दुल्ला चार अगस्त की मध्यरात्रि से ही अपने घर में नजरबंद हैं,लेकिन गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में कहा था कि फारुक अब्दुल्ला को न नजरबंद रखा गया है और न उन्हें हिरासत में लिया गया है। वह कहीं भी आने जाने को स्वतंत्रत हैं।

अलबत्ता, केंद्रीय गृहमंत्री के बयान के बाद ही डा फारुक अब्दुल्ला ने अपने घर की बाहरी दिवार पर खड़े हो पत्रकारों से बातचीत करते हुए गृहमंत्री पर झूठ बोलने का आरोप लगाया था।

जम्मू-कश्मीर में कब लागू हुआ जन सुरक्षा अधिनियम

जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम को 8 अप्रैल, 1978 को जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल से मंज़ूरी प्राप्त हुई थी। इस अधिनियम को शेख अब्दुल्ला की सरकार ने इमारती लकड़ी की तस्करी को रोकने और तस्करों को प्रचलन से बाहर रखने के लिये एक सख्त कानून के रूप में प्रस्तुत किया था। यह कानून सरकार को 16 वर्ष से अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति को मुकदमा चलाए बिना दो साल की अवधि हेतु बंदी बनाने की अनुमति देता है। यही नहीं यदि राज्य सरकार को यह आभास हो कि किसी व्यक्ति के कृत्य से राज्य की सुरक्षा को खतरा है, तो उसे 2 वर्षों तक प्रशासनिक हिरासत में रखा जा सकता है। यदि किसी व्यक्ति के कृत्य से सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने में कोई बाधा उत्पन्न होती है तो उसे एक वर्ष की प्रशासनिक हिरासत में लिया जा सकता है। पीएसए के तहत हिरासत के आदेश डिवीजनल कमिश्नर या डिप्टी कमिश्नर द्वारा जारी किये जा सकते हैं। अधिनियम की धारा-22 लोगों के हित में की गई कार्रवाई के लिये सुरक्षा प्रदान करती है। इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार हिरासत में लिये गए किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई मुकदमा, अभियोजन या कोई अन्य कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती।

अलगाववादियों पर नकेल कसने के लिये हुआ इस्तेमाल

वर्ष 1990 तक तत्कालीन सरकारों द्वारा राजनीतिक विरोधियों को हिरासत में लेने के लिये इसका उपयोग किया गया। जुलाई 2016 में आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद राज्य में व्यापक अशांति फैल गई थी, जिसके बाद सरकार ने अलगाववादियों पर नकेल कसने के लिये पीएसए को (विस्तार योग्य हिरासत अवधि के साथ) लागू किया। अगस्त 2018 में राज्य के बाहर भी पीएसए के तहत व्यक्तियों को हिरासत में लेने की अनुमति देने के लिये अधिनियम में संशोधन किया गया था।

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