Lockdown Effect: कश्मीर में ऑनलाइन शायरी लूट रही महफिलें, कई प्रसिद्ध शायरों ने जूमएप से खूब मनोरंजन किया
एक शायर के लिए जरूरी है कि अपनी शायरी दूसरों को सुनाए। इससे एक शायर को और ज्यादा ताकत मिलती है। लॉकडाउन में मेरी कलम तो खूब चली।
श्रीनगर, रजिया नूर। लॉकडाउन से तनावग्रस्त कश्मीर के लोगों की पीड़ा कम करने के लिए स्थानीय कलाकार संगीत की धुन छेड़ रहे हैं तो साहित्यकार ऑनलाइन आयोजन कर महफिलें लूट रहे हैं। हाल ही में कश्मीर में जूमएप से कई प्रसिद्ध शायरों ने खूब मनोरंजन किया। ‘लेट अस सेलिब्रेट काइशिर शायरी’ विषय पर हुए आयोजन में दिग्गज कवियों इलयास आजाद, गुलाब सोफी, सागर नजीर, इरशाद मागामी, मुदास्सर मुजतरिब, सज्जाद इंकलाबी व तजामुल इस्लाम ने शायरी से प्रशंसकों की वाहवाही लूटी।
इसके संचालक तजामुल ने कहा कि लॉकडाउन के बीच शायरी का आयोजन करने के पीछे मकसद तनाव कम करना। साथ ही यह समझाना था कि कोरोना से सुरिक्षत रहने के लिए शारीरिक दूरी कितनी जरूरी है। संगीत की तरह शायरी सीधे दिल को छूती है। शायरों ने कहा कि हमें खुशी है कि वादी में इस तरह के ऑनलाइन मुशायरे की शुरुआत हुई है। अन्य कवियों ने फोन कर इस तरह के और ऑनलाइन मुशायरों का आयोजन करने की गुजारिश। जल्द अन्य ऑनलाइन मुशायरा करने वाले हैं। इस बार कश्मीर और जम्मू के मशहूर शायर भाग लेंगे। कश्मीर विश्वविद्यालय में पीजी कर रहे मोहम्मद अफजल हकीम ने कहा,मैं शायरी का शौक रखता हूं। थोड़ा बहुत लिखता भी हूं। अकसर मुशायरों में जाता था। लाकडाउन के चलते मुशायरे नही हो पाए। शुक्र है कि ऑनलाइन मुशायरे के जरिए मनपसंद शायरों का कलाम सुनने को मिला। नेट की सुस्त रफ्तार ने मजा थोड़ा किरकिरा कर दिया, लेकिन फिर भी अपने महबूब शायरों की शायरी सुन दिल को थोडी राहत मिली।
शायर को मिलती है ताकतः मुशायरे में हिस्सा लेने वाले साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित वादी के युवा कवि सागर नजीर ने कहा कि लॉकडाउन के चलते वादी में भी जिंदगी थम सी गई है। एक शायर के लिए जरूरी है कि अपनी शायरी दूसरों को सुनाए। इससे एक शायर को और ज्यादा ताकत मिलती है। लॉकडाउन में मेरी कलम तो खूब चली। ऑनलाइन मुशायरे में अपनी इबारतों को लोगों तक पहुंचाने का मुङो बेहतर मौका मिला।
शायर का दिल नाजुक होताः किश्तवाड़ जिले के मशहूर शायर गुलाब सोफी ने कहा कि शायर का दिल नाजुक होता है। आसपास की घटनाओं को वह कलम की जुबां देकर कागज के पन्नों पर उतार देते हैं और फिर उसकी एक ही ख्वाहिश होती है कि वह इस इबारत को लोगों तक पहुंचाए। कोरोना के सामने लोगों की बेबसी की कहानी शायरी के जरिए लोगों तक पहुंचाना चाहता था। लॉकडाउन के चलते ऐसा नही कर पा रहा था।
शौकीनों के लिए बेहतर अवसरः प्रसिद्ध कवि ससज्जाद इंकलाबी ने कहा कि आपको याद है कि कई बरस पहले मशहूर शायर जावेद अख्तर ने एक गजल लिखी थी जिसकी एक पंक्ति थी ‘बेवजह घर से निकलने की जरूरत क्या है बाहर की हवा कातिल है इसे उलझने की जरूरत क्या है’ मैं भी इसी ताकत का इस्तेमाल कर अपने लोगों को कोरोना से सुरक्षित रहने का पैगाम देना चाहता था। अपनी यह बात लोगों तक पहुंचाने का मौका मुङो इस आनलाइन मुशायरे ने दिया। शायरी का शौक रखने वाले लोग इसे अच्छा कदम मानते हैं।