Vitasta Diwas : कश्मीर में वितस्ता के घाट पर जले उम्मीदों के दीये, कश्मीरी हिंदुओं ने मनाई नदी की जयंती, यह है नदी का इतिहास

यह कश्मीर की संस्कृति और सभ्यता का जननी है। कश्मीर में आतंकी हिंसा से पूर्व वेयथ त्रुवाह के अवसर पर वितस्ता का हर घाट एक तीर्थस्थल लगता था। अब भी पूजा होती है लेकिन पहले जैसी रौनक नहीं होती। बस उम्मीद है कि जिस तरह से हालात बदल रहे हैं

By Vikas AbrolEdited By: Publish:Sun, 19 Sep 2021 07:48 AM (IST) Updated:Sun, 19 Sep 2021 10:30 AM (IST)
Vitasta Diwas : कश्मीर में वितस्ता के घाट पर जले उम्मीदों के दीये, कश्मीरी हिंदुओं ने मनाई नदी की जयंती, यह है नदी का इतिहास
कश्मीर में आतंकी हिंसा से पूर्व वेयथ त्रुवाह के अवसर पर वितस्ता का हर घाट एक तीर्थस्थल लगता था।

श्रीनगर, नवीन नवाज : वितस्ता...। कश्मीर में इसे अब झेलम दरिया के रूप में जाना जाता है। यह दरिया कश्मीर से होते हुए पाकिस्तान में जाता है और वहां पर झेलम शहर भी बसा है। शनिवार को कई कश्मीरी हिंदुओं ने वितस्ता के घाट पर दीपक जलाकर व पूजा-अर्चना कर इसकी जयंती मनाई और सुख समृद्धि की कामना की। जम्मू कश्मीर में वितस्ता एकमात्र ऐसी नदी है, जिसका जन्मदिन मनाया जाता है। वितस्ता की जयंती हर साल वेयथ त्रुवाह के रूप में मनाई जाती है। मुख्य समारोह और पूजा दक्षिण कश्मीर में वेरीनाग मेें इसके उद्मम स्थल पर होती है, जहां मां वितस्ता का एक पौराणिक मंदिर भी है।

कश्मीरी हिंदू वेलफेयर सोसाइटी के सदस्य चुन्नी लाल ने कहा कि वर्ष 1990 से पहले वेयथ त्रुवाह पर वेरीनाग में एक बड़ा मेला लगता था। अधिकांश कश्मीरी हिंदुओं का प्रयास होता था कि वह वेरीनाग में ही जाकर पूजा करें। जो वहां नहीं पहुंच पाते थे, वह अपने-अपने इलाके में वेयथ के घाटों पर जमा होते, इसके निर्मल जल में स्नान करते और पूजा करते। अपने पूर्व जन्म और वर्तमान के पापों के लिए क्षमायाचना करते और सभी की सुख समृद्धि की कामना करते थे। शाम को नदी के किनारे दीप प्रज्ज्वलित किए जाते।

उम्मीद है पहले जैसी लौटेगी रौनक 

कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू ने कहा कि वितस्ता जो आगे जाकर दरिया चिनाब मेें शामिल हो जाती है, तभी से है जब से कश्मीर और कश्मीरी पंडित हैं। वितस्ता, को हम वेयथ भी पुकारते हैं। यह सिर्फ एक नदी नहीं है, यह हम कश्मीरी पंडितों की आत्मा है, यह हमारे अस्तित्व का एक हिस्सा है। यह कश्मीर की संस्कृति और सभ्यता का जननी है। कश्मीर में आतंकी हिंसा से पूर्व वेयथ त्रुवाह के अवसर पर वितस्ता का हर घाट एक तीर्थस्थल लगता था। अब भी पूजा होती है, लेकिन पहले जैसी रौनक नहीं होती। उन्होंने कहा कि बस उम्मीद है कि जिस तरह से हालात बदल रहे हैं, जल्द ही फिर वितस्ता के किनारे श्रद्धालुओं की भीड़ वेयथ त्रुवाह मनाने के लिए जमा हुआ करेगी।

वितस्ता न होती तो कश्मीर रेगीस्तान होता 

पनुन कश्मीर के अध्यक्ष डा. अजय चुरुंगु ने कहा कि वितस्ता न होती तो कश्मीर कश्मीर न होता, यह एक रेगीस्तान होता, बंजर होता। कश्मीर अगर स्वर्ग है, कश्मीर की जमीन अगर उपजाऊ है तो उसके लिए वितस्ता ही जिम्मेदार है। वितस्ता ही कश्मीर का कल्याण करने वाली है।

जलधारा के रूप मेें प्रकट हुईं हैं मां पार्वती 

कश्मीर की पुरातन और सनातन संस्कृति का प्रतीक वितस्ता का वर्णन महाभारत में भगवान श्री कृष्ण ने भी किया है। नीलमत पुराण के मुताबिक, आज जिस भूभाग पर कश्मीर है, वहां पहले सतीसर नामक झील होती थी। ऋषि कश्यप ने इस झील को सुखाया था, क्योंकि उसमेेे बसा जल देव नामक दैत्य नागरिकों को तंग करता था, उन्हें मार देता था। झील का जल बह जाने से उसका अंत हो गया, लेकिन पिशाचों ने फिर कश्मीर में संत महात्माओं को तंग करना शुरू कर दिया। इससे परेशान होकर संत महात्माओं ने कश्यप ऋषि से मदद की गुहार लगाई।

उन्होंने भगवान शिव की आराधना की और फिर भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा कि वह जलधारा का रूप लेकर कश्मीर मेें बसे पिशाचों को दूर कर कश्मीर मेें सुख समृद्धि का वाहक बनें। इसके बाद भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से जमीन पर प्रहार किया और फिर वहां से जलधारा निकली, जिस जगह देवी पार्वती जलधारा के रूप मेे प्रकट हुईं, उसकी लंबाई 12 अंगुलियों के बराबर है, और इसलिए नाम वितस्ता पड़ा। इस पूरे घटनाक्रम को वेयथ त्रुवाह कहते हैं, जिस जगह देवी पार्वती वितस्ता रूप मेें प्रकट हुईं, वह दक्षिण कश्मीर मेें अनंतनाग के पास आज वेरीनाग के रूप में जाना जाता है। उसे आज वेरीनाग का चश्मा भी कहते हैं।

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