Jammu Kashmir Accession Day: भारत की विचारधारा का सकारात्मक संघर्ष है विलय दिवस : केतकर

उन्होंने कहा कि 15 अगस्त 1947 26 अक्टूबर 1947 और 5 अगस्त 2019 के दिन भारत के सफर के सबसे अहम दिन हैं। आधुनिक काल में ये तीनों दिन बहुत महत्वपूर्ण हैं। विलय दिवस देश की एकता अखंडता बलिदान त्याग संपूर्ण संकल्प का भी दिन है।

By Vikas AbrolEdited By: Publish:Tue, 26 Oct 2021 09:00 PM (IST) Updated:Tue, 26 Oct 2021 09:00 PM (IST)
Jammu Kashmir Accession Day: भारत की विचारधारा का सकारात्मक संघर्ष है विलय दिवस : केतकर
ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने जम्मू विश्वविद्यालय में आयोजित संगोष्ठी में मुद्दों को उजागर किया।

जम्मू, राज्य ब्यूरो। जम्मू कश्मीर का विलय दिवस मनाना संपूर्ण संविधान लागू करवाने के लिए संघर्ष, अलगाववाद, आतंकवाद, पाक प्रायोजित आतंकवाद, कट्टरवाद या कुछ परिवारों के खिलाफ लड़ाई नहीं बल्कि भारत की विचारधारा का सकारात्मक संघर्ष है।

हमारी वर्षों से लेकर आज तक मान्यता रही है कि हिमालय से लेकर हिंद महासागर तक भारत एक राष्ट्र है, पवित्र है, हमारी संस्कृति एक है। भले ही मनाने के तरीके अलग हैं। यह विचार ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने व्यक्त किए।

जम्मू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग और लद्दाख एवं जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र की तरफ से विलय दिवस पर जम्मू विवि के ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह आडिटोरियम में आयोजित संगोष्ठी में केतकर ने विलय दिवस के महत्व, युवा पीढ़ी को जागरूक करने, चुनौतियों सहित अन्य संबंधित मुद्दों को उजागर किया।

संगोष्ठी का विषय था जम्मू कश्मीर का वर्तमान परिदृश्य और समाज की भूमिका। उन्होंने कहा कि 15 अगस्त 1947, 26 अक्टूबर 1947 और 5 अगस्त 2019 के दिन भारत के सफर के सबसे अहम दिन हैं। आधुनिक काल में ये तीनों दिन बहुत महत्वपूर्ण हैं। विलय दिवस देश की एकता, अखंडता, बलिदान, त्याग, संपूर्ण, संकल्प का भी दिन है। यह गलत जानकारी फैलाई जाती है कि महाराजा हरि सिंह स्वतंत्र रहना चाहते थे, जम्मू कश्मीर का विलय भारत से नहीं करना चाहते थे। हमें इतिहास के तथ्यों में जाना चाहिए। महाराजा हरि सिंह बिलकुल स्पष्ट थे। कश्मीर में कबायलियों ने हमला किया। जब हमने बारामुला, राजौरी, पुंछ को मुक्त करवाया तो क्या कोटली, मुजफ्फराबाद को मुक्त नहीं करवा सकते थे।

नेहरू ने लार्ड माउंटबेटन की सलाह पर सेना को वहीं रोक दिया। डा. भीम राव अंबेडकर ने अनुच्छेद 370 को भेदभाव पूर्ण करार दिया था लेकिन जवाहर लाल नेहरू ने शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के साथ मिलकर इस अस्थायी प्रावधान को लागू किया। साल 1952 का जिक्र करते हुए केतकर ने कहा कि परिसीमन को नकारा गया। संवैधानिक संस्थानों को मंजूर नहीं किया गया। कितना बड़ा धोखा किया गया। प्रजा परिषद के आंदोलन को श्यामा प्रसाद मुखर्जी और प्रेम नाथ डोगरा ने शुरू किया। राष्ट्रीय विचारों से संघर्ष किया।

श्री माता वैष्णो देवी की भूमि में जम्मू कश्मीर में भारत का विचार बनाए रखने के लिए 64 साल तक कार्य किया। समस्या जम्मू या कश्मीर में नहीं थी, समस्या दिल्ली में थी जिसने कश्मीर को अलग चश्मे से देखा। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी संसद में अनुच्छेद 370 में संशोधन किया था। भारत के विचार का जो संघर्ष 26 अक्टूबर 1947 से शुरू हुआ था वो अपने लक्ष्य तक पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि जम्मू की राष्ट्र भक्त जनता को आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। नया शीत युद्ध शुरू हो रहा है। पाकिस्तान, चीन, तालिबान तो चुनौती है ही साथ ही अमेरिका, आस्ट्रेलिया व यूके बीच भी समझौता हुआ है।

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