Jammu Kashmir: कटड़ा-बनिहाल रेल लिंक जोड़ने में लग गए 15 साल, क्या रही चुनौतियां, आइए जानिए!

टीम ने आखिरकार कटड़ा-बनिहाल रेलवे लिंक में रियासी के ग्रां मोड़ व बक्कल के बीच छह किलोमीटर लंबी टनल तैयार हो पाई।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Sat, 29 Jun 2019 02:42 PM (IST) Updated:Sat, 29 Jun 2019 04:49 PM (IST)
Jammu Kashmir: कटड़ा-बनिहाल रेल लिंक जोड़ने में लग गए 15 साल, क्या रही चुनौतियां, आइए जानिए!
Jammu Kashmir: कटड़ा-बनिहाल रेल लिंक जोड़ने में लग गए 15 साल, क्या रही चुनौतियां, आइए जानिए!

रियासी, राजेश डोगरा। भारतीय रेलवे को अब ऊधमपुर से कश्मीर तक पहुंचने में अधिक समय नहीं लगेगा। कटड़ा रेल लाइन को बनिहाल रेल लाइन से जोड़ने में पेश आ रही चुनौतियों को दूर करने में भले 15 साल का वक्त लग गया परंतु इस प्रोजेक्ट की मुख्य बाधा दूर हो गई है। जम्मू से सीधे कश्मीर तक रेल पर सफर करने में अब सिर्फ इसी जिले में बन रहा पुल ही शेष रह गया है। इसका निर्माण कार्य भी तेजी के साथ जारी है।

जिला रियासी में बन रही यह टनल जिसे नंबर-5 से जाना जाता है, में सबसे बड़ी चुनौती पहाड़ से निकलने वाला पानी था। हिमालयन श्रृंखला से संबंधित करोड़ों वर्ष पुराने इस पहाड़ का इंजीनियरों ने सीना चीरकर छह किलोमीटर लंबी इस रेलवे टनल का काम पूरा किया। सुरंग का एक छोर फेज वन रियासी के ग्रां मोड़ में है, तो दूसरा छोर फेज दो बक्कल गांव में। इस चुनौती का तोड़ मैक्स इंफ्रा केयर ऑफ नारा कंस्ट्रक्शन कंपनी के डायरेक्टर के. सूर्य नारायणा व उनकी टीम ने निकाला। टीम ने आखिरकार कटड़ा-बनिहाल रेलवे लिंक में रियासी के ग्रां मोड़ व बक्कल के बीच छह किलोमीटर लंबी टनल तैयार हो पाई।

एक-एक कर निर्माण कार्य छोड़ती गईं कंपनियां

इस सुरंग के निर्माण का जिम्मा सबसे पहले नेशनल प्रोजेक्ट कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड को सौंपा गया था। उन्होंने यह प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए 60 करोड़ रूपये मांगे। परंतु पहाड़ी से शुरू हुए पानी के रिसाव को रोकने में विफल रही इस कंपनी ने हार मान वर्ष 2004 में यह काम रित्विक कंपनी के हवाले कर दिया। अलाइनमेंट और टनल डिजाइन में बदलाव के कारण उसने भी काम रोक दिया। क्योंकि डिजाइन चेंज होने के कारण निर्माण लागत बढ़ गई थी और कंपनी पुराने रेट पर काम करने को तैयार नहीं थी। वर्ष 2010 में अपेक्स कंपनी ने टनल निर्माण की जिम्मेदारी संभाली। उसने भी इस प्रोजेक्ट पर 15 करोड़ रुपये खर्च किए। उसने भी चुनाैतियों से हार मान 2013 में काम छोड़ दिया। वर्ष 2014 में रियासी के गरड़धार में तीन किलोमीटर लंबी रेलवे टनल नंबर तीन की खुदाई का काम पूरा कर अपनी क्षमता का परिचय दे दिया था। रेलवे ने उसके अनुभव को देख आखिरकार टनल नंबर पांच की खुदाई का काम भी मैक्स इंफ्रा केयर ऑफ नारा कंस्ट्रक्शन कंपनी को सौंपा। कंपनी को 421 करोड़ रुपये का काम अलॉट हुआ, लेकिन सभी परिस्थितियों को भांपने के बाद निर्माण लागत बढ़ गई। परंतु चुनौतियों को पूरा कर कंपनी ने उस टनल को भी आज पूरा कर दिया।

कम होने का नाम नहीं ले रही थी मुश्किलें

कंपनी के डायरेक्टर के. सूर्य नारायणा ने प्रोजेक्ट में आई मुश्किलों के बारे में बताया कि जुलाई वर्ष 2014 में जब कंपनी ने यह प्रोजेक्ट अपने हाथ में लिया तो शुरूआत में ही पहले की कंपनियों के जमीन व अन्य भुगतान मामले अड़चन बनकर सामने आ गए। शुरुआत के चार माह में कंपनी कोई काम नहीं कर पाई। सभी मामले सुलझाने के बाद काम शुरू हुआ। अभी एक माह ही हुआ था कि फॉरेस्ट क्लीयरेंस न होने से काम में फिर बाधा आ गई। उन मामलों के निपटारे कर कंपनी ने दोनों छोर से अपने काम को आगे बढ़ाया तो वर्ष 2015 के सितंबर माह में फेज वन की तरफ से सुरंग के लगभग एक किलोमीटर की खुदाई के बाद भीतर से पानी का भारी रिसाव शुरू हो गया। ऐसे में कंपनी को काम बंद कर सुरंग के भीतर से पानी निकालने के लिए मशक्कत करनी पड़ी। जैसे-तैसे रुक-रुक कर खुदाई आगे बढ़ती गई तो कभी पानी का रिसाव बढ़ता गया, तो कभी टनल के बीच से काफी दलदल के अलावा कई मामलों में मानवीय हस्तक्षेप बाधा बनता रहा।

सुरंग में प्रति सेकंड 300 लीटर पानी का रिसाव बना आफत

वर्ष 2017 के अगस्त माह में फेस वन की तरफ से टनल के ऊपरी भाग से लगभग 300 लीटर प्रति सेकेंड पानी रिसने लगा, जिसका कोई अनुमान नहीं था। टनल की खुदाई में 50 लीटर प्रति सेकंड पानी निकलने के अनुमान के मुताबिक कंपनी ने इंतजाम कर रखे थे। अपेक्षा से कहीं अधिक पानी रिसने के कारण पानी बाहर निकालने के लिए कंपनी को 500 केवीए क्षमता के लगभग 30 लाख रुपये के कई नए जनरेटर खरीदने पड़े। प्रत्येक जनरेटर पर 90 लीटर डीजल प्रति घंटा खर्च होता रहा। कंपनी के लिए मुसीबतें यहीं पर नहीं खत्म नहीं। जब टनल में पानी का भारी रिसाव हुआ तो सेर संडूआ व बक्कल इलाके में कई प्राकृतिक जलस्नोतों पर असर पड़ा।

विपरीत परिस्थितियों में भी टीम ने बनाए रखा हौसला

सुरंग में पानी के रिसाव जैसी प्राकृतिक बाधाओं के कारण काम बंद रहने के दौरान कंपनी को रोजाना पांच से से दस लाख रुपये का नुकसान ङोलना पड़ा। विपरीत परिस्थितियों में कंपनी के अधिकारियों और कर्मचारियों का हौसला न टूटे, इसके लिए लगभग 70 वर्ष की उम्र के बावजूद कंपनी के डायरेक्टर के. सूर्य नारायणा रेलवे साइट पर स्थिति पर नजर रखने के साथ कंपनी कर्मचारियों का हौसला बढ़ाते रहे। उनका यही कहना था कि यहां बात नुकसान या मुनाफे की नहीं, बल्कि राष्ट्रीय परियोजना से जुड़े काम को पूरा करने की है। इस चुनौती को हर हाल में पूरा किया जाएगा। आखिरकार नारायणा और उनकी टीम ने इस चुनौती पर विजय पाई और पहाड़ का सीना चीरकर छह किमी लंबी सुरंग बना डाली। कंपनी के डायरेक्टर के. सूर्य नारायणा ने कहा कि आज का दिन कंपनी के लिए ऐतिहासिक तो है ही साथ ही साथ यह प्रोजेक्ट कंपनी के भविष्य में मील का पत्थर साबित होगा।

कटड़ा-बनिहाल रेल मार्ग पर 27 पुल, 37 सुरंग बनेंगी

कटरा-बनिहाल प्रोजेक्ट देश के रेल के इतिहास में सबसे अहम और जटिल योजना मानी जा रही है। जम्मू-उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक का 326 किलोमीटर का दो-तिहाई हिस्सा लगभग तैयार हो चुका है। अब जम्मू क्षेत्र के कटरा से कश्मीर घाटी के बनिहाल के बीच 111 किलोमीटर के रूट के निर्माण की जरूरत है। इसमें जिला रियासी की टनल नंबर-5 ही मुख्य बाधा थी, जो आज हल कर ली गई। इस लाइन पर कुल 27 पुल, 37 सुरंगें हैं। जिन पर तेजी से काम चल रहा है। इसी लाइन पर दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल बनाया जा रहा है जबकि 12 किलोमीटर लंबी एशिया की सबसे लंबी रेल सुरंग भी इसी रूट पर है, जो निर्माणाधीन है। हालांकि रेलवे विभाग का दावा है कि 2012 तक कटड़ा-बनिहाल के बीच बचे रेल लिंक को भी जोड़ लिया जाएगा। दिल्ली के कश्मीर से रेल मार्ग से जुड़ने के बाद इससे सिर्फ यात्रियों के लिए ही आसानी नहीं होगी बल्कि घाटी में टूरिज्म को भी बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा घाटी तक माल की आवाजाही भी आसान हो सकेगी। इससे जम्मू-कश्मीर में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। रेलवे विभाग का कहना है कि यह रेल प्रोजेक्ट जम्मू-कश्मीर को हर मौसम में पूरे देश से जोड़ेगा। यह योजना केंद्र सरकार की शीर्ष प्राथमिकताओं में से एक है।

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