World Blood Donor Day 2021: रक्तदान कर जितेंद्र सिंह मरीजों में जगा रहे जिंदगी की आस
World Blood Donor Day 2021 रीजनल रेडक्रास सोसायटी जम्मू के पूर्व सचिव दिनेश गुप्ता का कहना है कि जम्मू में पहले की अपेक्षा लोगों में अब रक्तदान को लेकर जागरूकता आई है। कालेजों और विश्वविद्यालयों में पढऩे वाले भी कई विद्यार्थी रक्तदान करने के लिए आते हैं।
जम्मू, रोहित जंडियाल: कभी सड़क हादसे तो कभी आतंकवाद के कारण जम्मू कश्मीर में सड़कें खून से लाल होने का सिलसिला जारी है। ऐसे में अस्पतालों में जब घायलों को लाया जाता है तो उन्हें खून की जरूरत पड़ती है। ऐसे में नि:स्वार्थ भाव से रक्तदान करने वाले लोग इन घायलों की जिदंगी को बचाने का काम करते हैं। बहुत से लोग ऐसे हैं जो कि कई बार रक्तदान कर चुके हैं। इन्हीं में एक हैं जम्मू के भोर पिंड के रहने वाले जितेंद्र सिंह। वह न सिर्फ स्वयं रक्तदान करते हैं, बल्कि अपने दोस्तों संग कई जरूरतमंद मरीजों के लिए खून का प्रबंध कर उनकी जिंदगी को बचाने का प्रयास करते हैं।
38 साल के जितेंद्र अब तक 37 बार रक्तदान कर चुके हैं। उनका कहना है कि अभी उनकी उम्र 19 साल भी नहीं हुई थी कि उनके पिता जी के दोस्त को खून की जरूरत पड़ी तो वह अपने एक रिश्तेदार के साथ अस्पताल में गए थे और रक्तदान कर आए थे। इसके बाद तो कभी भी किसी ने रक्तदान के लिए कहा होगा तो उन्होंने न नहीं की। जितेंद्र इसके बाद गुरु नानक लंगर मिशन संस्था के साथ जुड़ गए। पेशे से व्यापारी जितेंद्र का कहना हैं कि अब हर तीन महीने के बाद वह राजकीय मेडिकल कालेज, एसएमजीएस या फिर अन्य किसी भी अस्पताल में जाकर रक्तदान कर आते हैं। पिछला डेढ़ साल कोरोना में ही रहा। इस दौरान भी पांच बार रक्तदान किया।
जितेंद्र का कहना है कि इस साल कोरोना के समय में उन्होंने संस्था के प्रमुख बलजीत सिंह के साथ मिलकर तीन सौ यूनिट के करीब खून का प्रबंध करवाया। खुशी इस बात की है कि संस्था के सभी सदस्यों के सहयोग से कई की मदद की जा सकी है। इसी संस्था के साथ राम लाल भी जुड़े हुए हैैं। उनका निगेटिव ग्रुप है। वह भी पिछले कुछ वर्षों से लगातार रक्तदान कर चुके हैं। वह 34 बार रक्तदान कर लोगों के लिए समय मसीहा बनकर आते हैं जब हर कहीं पर निगेटिव ग्रुप न मिलने से लोग ङ्क्षजदगी की उम्मीद ही गवां बैठे होते हैं। संस्था के प्रमुख बलजीत सिंह का कहना है कि कोरोना में थैलीसीमिया के मरीजों को खून की जरूरत पड़ी। प्रयास रहा कि उन्हें भी खून मिलता रहे।
अस्पताल में ब्लड बैैंक खाली हुए तो स्वयंसेवक बने सहारा: महामारी के समय में जब अस्पतालों के ब्लड बैंक खाली हो चुके थे। जीएमसी तक में बी-पाजिटिव और ओ-पाजीटिव जैसे ग्रुप भी नहीं मिल पा रहे थे। ऐसे में यही स्वयं सेवक मरीजों की आस बने हुए थे। रीजनल रेडक्रास सोसायटी जम्मू के पूर्व सचिव दिनेश गुप्ता का कहना है कि जम्मू में पहले की अपेक्षा लोगों में अब रक्तदान को लेकर जागरूकता आई है। कालेजों और विश्वविद्यालयों में पढऩे वाले भी कई विद्यार्थी रक्तदान करने के लिए आते हैं।
अनजान लोगों को दिया ब्लड: कठुआ के बरनोटी के रहने वाले कुशल अजरावत ने दस वर्ष पहले किसी अनजान व्यक्ति की जान बचाने के लिए रक्तदान किया था। 32 वर्षीय कुशल इसके बाद अभी तक 24 बार रक्तदान कर चुके हैं। एक दिन पहले ही मेडिकल कालेज कठुआ में उन्होंने कैंसर के मरीज के लिए रक्तदान किया। उनका कहना है कि वह एक फार्मास्यूटिकल कंपनी के साथ काम करते हैैं और यह अच्छी तरह से जानते हैं कि इनका एक कदम किसी भी जरूरतमंद मरीज की जान बचा सकता है। बस यही सोच कर वह रक्तदान करते हैं। आज तक जितनी बार भी उन्होंने रक्तदान किया है, सभी अनजान लोगों की सहायता के लिए किया। उनका कहना है कि सभी को यह समझना होगा कि रक्तदान करने से किसी की ङ्क्षजदगी को बचाया जा सकता है। हर तीन महीने के बाद रक्तदान किया जा सकता है। कोरोना महामारी में तो मरीजों को और रक्त की जरूरत पड़ी। अस्पतालों में भी ब्लड नहीं था।