कश्मीरी पंडितों की वादी वापसी का 'नींव पत्थर'; काका जी बट श्रीनगर के बलहामा में बना रहे नया मकान

Kashmiri Pandits बलहामा में करीब 5000 वर्ष पुराना बाला देवी का मंदिर है। बाला देवी के मंदिर के कारण ही गांव का नाम बलहामा पड़ा है।1990 से पहले यहां कश्मीरी पंडितों के करीब दो से तीन हजार परिवार रहते थे। आज बलहामा में करीब छह परिवार ही हैं।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 07:27 AM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 01:49 PM (IST)
कश्मीरी पंडितों की वादी वापसी का 'नींव पत्थर'; काका जी बट श्रीनगर के बलहामा में बना रहे नया मकान
आज बलहामा में हमारे एक कश्मीरी पंडित भाई ने मकान का निर्माण शुरू किया है।

श्रीनगर, नवीन नवाज : पांच अगस्त 2019 को डाला गया बीज अब अंकुर बनकर फूट रहा है। कश्मीर की फिजा में अब धर्मांध जिहादियों का खौफ नजर नहीं आता बल्कि सुरक्षा और विश्वास की एक नयी भावना नजर आती है, तभी तो मंगलवार को एक कश्मीरी पंडित ने नयी उम्मीदों और वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच अपने पैतृक गांव में खुद के लिए नए मकान की नींव रखी है। लालचौक से करीब 20 किलोमीटर दूर बलहामा में यह मकान कश्मीरी पंडितों में वादी वापसी के लिए माहौल तैयार करेगा। यह कश्मीरी पंडितों के लिए घोषित पैकेज की राशि के बिना बन रहा है।

जिला विकास परिषद श्रीनगर में खिरयु-बलहामा का प्रतिनिधित्व करने वाले भाजपा नेता इंजीनियर एजाज हुसैन ने कहा कि जिन्होंने यह मकान बनाना शुरू किया है, उन्हेंं हम काका जी बट बुलाते हैं। वह ज्योलाजी एंड माइनिंग विभाग में कार्यरत हैं। उन्होंने अपनी पैतृक संपत्ति नहीं बेची। उन्होंने बलहामा से अपना नाता बनाए रखा। उनके परिवार के कई सदस्य पलायन कर गए, इसके बावजूद उन्होंने अपनी मिट्टी से नाता नहीं तोड़ा। उन्होंने आज अपने पुराने मकान के स्थान पर नया मकान बनाना शुरू किया है। मैं उम्मीद करता हूं उन्हेंं देखकर अन्य कश्मीरी पंडित जो पलायन कर यहां से गए हैं, वह लौट आएंगे।

अब स्थिति बदल रही है :

हिंदू वेलफेयर सोसाइटी के प्रेस सचिव चुन्नी लाल जो खुद दक्षिण कश्मीर से पलायन कर श्रीनगर में रह रहे हैं, ने कहा कि किसी भी जगह रहने के लिए आपके भीतर सुरक्षा और विश्वास की भावना होनी चाहिए। यहां बहुत से कश्मीरी पंडित परिवार हैं, जिन्होंने पलायन नहीं किया। इनमें से कई अपने पैतृक घरों में ही रह गए हैं और अगर आप देखें तो इन मकानों की मरम्मत भी वह कभी कभार कराते हैं। नया घर कोई नहीं बनाना चाहता, क्योंकि दिल में डर रहता है, लेकिन अब स्थिति बदल रही है। आज बलहामा में हमारे एक कश्मीरी पंडित भाई ने मकान का निर्माण शुरू किया है।

सुरक्षा और विश्वास की नयी भावना जागी :

कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के चेयरमैन संजय टिक्कू ने कहा कि जो कश्मीरी पंडित कश्मीर से नहीं गए, वह तो अपने घरों में ही हैं। हां, यह बात जरूर कही जाएगी कि लोगों में सुरक्षा और विश्वास की एक नयी भावना है, जिससे प्रेरित होकर कई कश्मीरी पंडितों ने फिर से अपने नए मकान बनाना शुरू किए हैं। बलहामा में भी एक नया मकान बन रहा है। यह सिर्फ मकान की बात नहीं है, मकान बनेगा तो लोग भी बसेंगे।

कभी बलहामा में रहते थे तीन हजार पंडित परिवार :

बलहामा गांव में करीब पांच हजार वर्ष पुराना बाला देवी का मंदिर है। कहा जाता है कि बाला देवी के मंदिर के कारण ही गांव का नाम बलहामा पड़ा है। बलहामा और उसके साथ सटे इलाकों में 1990 से पहले कश्मीरी पंडितों के करीब दो से तीन हजार परिवार रहते थे। आज बलहामा में करीब छह परिवार ही हैं, अन्य सभी पलायन कर चुके हैं। शायद अब स्थिति बदलेगी।

हजारों की तादाद में कश्मीरी पंडितों ने किया था पलायन :

30 साल पहले तक कश्मीर में शायद ही कोई ऐसा शहर, कस्बा, गली या मोहल्ला था, जहां कश्मीरी पंडित नहीं रहते थे। धर्मांध जिहादियों ने कश्मीरी पंडितों के साथ-साथ समस्त हिंदू समुदाय को वादी से खदेडऩा शुरू किया। आतंकियों के डर से हजारों की तादाद में कश्मीरी पंडित अपने पैतृक घरों को छोड़ जम्मू समेत देश के विभिन्न हिस्सों में चले गए। गैर कश्मीरी पंडित हिंदुओं को भी कश्मीर छोडऩा पड़ा और कुछेक ही वादी में बचे। समूची वादी में कश्मीरी पंडितों के लगभग 700 परिवार ही ऐसे रहे, जिन्होंने तमाम मुश्किलों के बावजूद पलायन नहीं किया। अलबत्ता, इनमें से अधिकांश श्रीनगर में या फिर निकटवर्ती कस्बों में आकर बस गए।

ट्रांजिट कालोनियों में रह रहे हैं पंडित परिवार :

कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए बीते तीन दशक से लगातार प्रयास होते रहे, लेकिन कभी कोई प्रयास पूरी तरह सफल नहीं हुआ। रोजगार पैकेज के तहत कश्मीर में नौकरी प्राप्त करने वाले कश्मीरी पंडित भी अपने पुराने और पैतृक घरों में जाकर बसने का साहस नहीं जुटा पाए। ये लोग सरकार द्वारा जिला मुख्यालयों में बनायी गई ट्रांजिट आवासीय सुविधाओं में या फिर बडग़ाम, मट्टन में बनाई गई कालोनियों में ही सिमट कर रह गए हैं। नौकरी के नाम पर तथाकथित 3500 परिवार कश्मीर में लौटे हैं और ट्रांजिट कालोनियों में रह रहे हैं।

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