Kargil Vijay Diwas 2021: खुद को सैनिक के तौर पर देखता है लद्दाख का हर युवा, चरवाहे भी रखते हैं दुश्मन पर नजर

लद्दाख में चरवाहे भी दुश्मन पर पैनी नजर रखते हैं। मई 1999 में कारगिल के चरवाहों ताशी नामग्याल व सेसेरिंग मोटुप ने कड़ी जद्दोजहद कर सेना को यह सूचना दी कि पाकिस्तानी सेना घुस आई है। इसके बाद सेना ने उनके साथ वहां जाकर खुद इसकी पुष्टि की थी।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Sat, 24 Jul 2021 08:20 AM (IST) Updated:Sat, 24 Jul 2021 08:48 AM (IST)
Kargil Vijay Diwas 2021: खुद को सैनिक के तौर पर देखता है लद्दाख का हर युवा, चरवाहे भी रखते हैं दुश्मन पर नजर
युवा सेना में हैं, बच्चे सैनिक बनने की तैयारी कर रहे हैं।

जम्मू, विवेक सिंह: दुश्मन के मंसूबों को नाकाम करने के लिए भारतीय सेना के साथ कंधा मिलाकर लड़ते आए लद्दाख के लोगों के बुलंद हौसले से पाकिस्तान और चीन दोनों देश कांपते हैं। दुश्मनों को धूल चटाने का माद्दा रखने वाले लद्दाखियों का जज्बा ऐसा है कि होश संभालते ही यहां के बच्चे सैनिक बनने के लिए खुद को तैयार करने लगे हैं। यहां तक कि मवेशियों के सहारे जीवन बिताने वाले चरवाहे भी दुश्मन पर पैनी नजर रखते हैं। लद्दाख के लोगों का हौसला देश के हर नागरिक के लिए प्रेरणास्रोत है।

लद्दाखी सैनिकों ही नहीं, यहां के स्थानीय लोगों से भी पाकिस्तान और चीन खौफ खाता है। लद्दाख के लोग शुरू से सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करते आए हैं, लेकिन कारगिल युद्ध के बाद यहां के युवाओं में सैनिक बनने का जज्बा सिर चढ़कर बोलने लगा। यह कहना है लेह के चुशोत गोंगमा के रहने वाले बुजुर्ग पूर्व सैनिक गुलाम मोहम्मद का। वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान के युद्ध में हिस्सा ले चुके गुलाम मोहम्मद के दोनों बेटे लद्दाख स्काउट्स में हैं। उन्होंने बताया कि गांव के 63 घरों में से शायद ही ऐसा कोई होगा, जिसका कोई न कोई सदस्य सेना में न हो। उनका कहना है कि युवा सेना में हैं, बच्चे सैनिक बनने की तैयारी कर रहे हैं। घर संभालने की जिम्मेेदारी महिलाओं और हम जैसे बुजुर्गों की है। यही हमारी जिदंगी है।

कारगिल में घुसे दुश्मनों की चरवाहों ने ही दी थी खबर: लद्दाख में चरवाहे भी दुश्मन पर पैनी नजर रखते हैं। मई 1999 में कारगिल के चरवाहों ताशी नामग्याल व सेसेरिंग मोटुप ने कड़ी जद्दोजहद कर सेना को यह सूचना दी कि पाकिस्तानी सेना घुस आई है। इसके बाद सेना ने उनके साथ वहां जाकर खुद इसकी पुष्टि की थी। वर्तमान में लद्दाख के चरवाहे उसी जज्बे के साथ अपने मोबाइल से ही वीडियो बनाकर चीनी सैनिकों के घुसपैठ करने की सूचना देकर चंद मिनटों में पूरे देश को सचेत कर देते हैं।

लद्दाखियों के लिए कारगिल विजय दिवस महज कार्यक्रम नहीं: कारगिल युद्ध में 24 लद्दाखी सैनिकों ने बलिदान दिया था। द्रास में 22वें कारगिल विजय दिवस पर राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द शहीदों को भी श्रद्धांजलि देंगे। लद्दाख के लोगों के लिए कारगिल विजय दिवस शहीदों की याद में होने वाला महज एक सैन्य कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह उनके लिए लद्दाख की सुरक्षा के लिए अपने परिवारों द्वारा दिए जा रहे योगदान को याद करने का बड़ा दिन है। लद्दाख के सैकड़ों युवा इस समय सीमा पर बुलंद हौसले से खड़े हैं। इससे कहीं अधिक युवा सैनिक बनने की कतार में हैं।

कुदरती तौर पर दक्ष हैं लद्दाखी सैनिक: वर्ष 1971 के युद्ध के वीर चक्र विजेता कर्नल वीरेंद्र साही का कहना है कि लद्दाखी सैनिक हाई अल्टीट्यूड वारफेयर के लिए कुदरती रूप से मजबूत हैं। वे देश के आजाद होने के बाद से ही बहादुरी की मिसाल कायम करते आए हैं। लद्दाख स्काउट्स की पांच बटालियन अत्यंत दुर्गम क्षेत्र में लडऩे के लिए दक्ष हैं। यह जगजाहिर है कि लद्दाखी सैनिकों के साथ क्षेत्र के स्थानीय लोग भी देश की सेवा करने के लिए आगे रहते हैं। कारगिल युद्ध में लोगों ने भी पूरा सहयोग दिया था। यही कारण है कि कारगिल विजय दिवस को लेकर स्थानीय निवासियों का भारी उत्साह होता है। इससे सेना का हौसला और मजबूत होता है। -लेफ्टिनेंट कर्नल इमरान मुसावी, सैन्य प्रवक्ता, कश्मीर 

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