Jammu Kashmir: बांस की खेती से बदलेगी जम्मू कश्मीर की तकदीर, समझौते पर हस्ताक्षर हुए
जम्मू-कश्मीर में बांस उद्योग की संभावना का भी पता लगाया जाएगा। नार्थ ईस्ट केन एंड बैम्बू डेवलपमेंट काउंसिल के सहयोग से हम बांस की तकनीक को विकसित करेंगे। इस पर आधारित रिसर्च करेंगे। यह करार बाजार से भी जुड़ेगा और उद्यमी विकास को बढ़ावा देगा।
जम्मू, राज्य ब्यूरो: जम्मू कश्मीर में बांस की खेती से अर्थ व्यवस्था को मजबूत बनाने के साथ ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के साधन पैदा करने के लिए मंगलवार को जम्मू कश्मीर सरकार ने नार्थ ईस्ट केन एंड बैम्बू डेवलपमेंट काउंसिल के साथ समझौता कर बांस की खेती को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने की पहल की है।
जम्मू के कन्वेंशन सेंटर में आयोजित कार्यक्रम में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा व प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह की मौजूदगी में करार हुआ। इस मौके पर उपराज्यपाल ने कहा कि इस करार से बांस के उत्पादन व इससे संबंधित व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। जम्मू-कश्मीर तेजी के साथ बांस उद्योग के लिए विकसित उद्योग केंद्र बनेगा। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर में स्टेट बैम्बू मिशन स्थापित करने की संभावनाओं का पता लगाया जाएगा ताकि अधिक से अधिक किसानों को इसका लाभ हो।
जम्मू-कश्मीर में बांस उद्योग की संभावना का भी पता लगाया जाएगा। नार्थ ईस्ट केन एंड बैम्बू डेवलपमेंट काउंसिल के सहयोग से हम बांस की तकनीक को विकसित करेंगे। इस पर आधारित रिसर्च करेंगे। यह करार बाजार से भी जुड़ेगा और उद्यमी विकास को बढ़ावा देगा। किसानों व उद्यमियों को इसके लिए ट्रेनिंग दी जाएगी और बांस बेचने के लिए बाजार के प्रति किसानों को जागरूक भी किया जाएगा। जम्मू, सांबा व कठुआ में इसके उत्पादन के समूह तैयार किए जाएंगे।
उन्होंने कहा कि इस समय एक हजार परिवार बांस उद्योग से जुड़ा हुआ है। इस करार के बाद इस संख्या को दस हजार तक ले जाया जाएगा। राष्ट्रीय स्तर पर 25 हजार उद्योग बांस से जुड़े हुए हैं और करीब दो करोड़ लोगों को इससे रोजगार मिलता है। उपराज्यपाल ने कहा कि कठुआ, सांबा, जम्मू, ऊधमपुर व रियासी, जो फसलों के लिए ज्यादा उपयुक्त नहीं है, लेकिन इन जिलों में बांस उत्पादन की क्षमता अधिक है।
मजबूत होगी प्रदेश की अर्थ व्यवस्था : प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस मौके पर कहा कि इस करार से जम्मू कश्मीर की अर्थ व्यवस्था मजबूत होगी। बांस की खेती पर खर्चा कम होता है और किसानों को प्रोत्साहन अधिक मिलता है। इससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।