Year Ender 2019: इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए जम्मू-कश्मीर राज्य और अनुच्छेद 370
इस साल जम्मू-कश्मीर से केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को भी हटा दिया। यही नहीं अनुच्छेद 35-ए को भी खत्म कर दिया।
जम्मू, रोहित जंडियाल। जम्मू-कश्मीर के लिए गुजरता साल इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। इस साल जम्मू-कश्मीर का पूरा मानचित्र ही बदल गया। जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन करके न सिर्फ इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदल दिया गया, बल्कि अनुच्छेद 370 और 35ए भी इतिहास बनकर रह गए। यही नहीं, जम्मू-कश्मीर में पहली बार चार महीनों से इंटरनेट सेवाएं भी बंद हैं। पहली बार ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल के चुनाव भी हुए हैं।
केंद्र शासित प्रदेश बना जम्मू-कश्मीर: जम्मू-कश्मीर राज्य का केंद्र सरकार ने पांच अगस्त को पुनर्गठन किया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख बना दिए। यह केंद्र के ऐसे फैसले थे जिनकी अपेक्षा यहां पर किसी ने भी नहीं की थी। इन फैसलों के साथ ही जम्मू-कश्मीर राज्य इतिहास के पन्नों में चला गया। हालांकि लद्दाख के लोग वषों से केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग कर रहे थे लेकिन जम्मू के लोग केंद्र शासित प्रदेश बनाने के स्थान पर जम्मू को अलग प्रदेश का दर्जा देने की मांग कर रहे थे। बावजूद इसके केंद्र के इस फैसले का जम्मू और लद्दाख दोनों ही जगहों पर स्वागत हुआ। हालांकि कश्मीर में इसके बाद स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए कई प्रतिबंध लगा दिए गए। मगर केंद्र सरकार के इस फैसले से जम्मू-कश्मीर का पूरा मानचित्र ही बदल गया। केंद्र सरकार ने नया मानचित्र भी जारी कर दिया। इसमें जम्मू-कश्मीर में गुलाम कश्मीर को शामिल किया गया जबकि लद्दाख को अलग केंद्र शासित राज्य दिखाया गया।
अनुच्छेद 370 खत्म: इस साल जम्मू-कश्मीर से केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को भी हटा दिया। यही नहीं अनुच्छेद 35-ए को भी खत्म कर दिया। यह ऐसे मामले थे जिन पर कई सालों से चर्चा हो रही थी और भाजपा की अगुवाई में चल रही केंद्र सरकार इसे हटाने की बात कर रही थी। पांच अगस्त के दिन ही दोनों को हटाया गया। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर में स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र भी खत्म हो गया और बाहर से आने वाले उद्योगपतियों को निवेश करने के लिए भी आमत्रित किया गया। पहले धारा 370 के कारण बाहर का कोई भी नागरिक जम्मू-कश्मीर में नौकरी नहीं कर सकता था। यही नहीं यहां पर जमीन भी नहीं खरीद सकता था। अब ऐसा नहीं है। सरकार के इस कदम के बाद कोई भी बाहर का नागरिक जमीन खरीदने का हकदार हो गया है।
आधी आबादी को मिला हक: जम्मू कश्मीर देश का एक ऐसा राज्य था जहां पर आधी आबादी अर्थात महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था। उनकी शादी राज्य के बाहर होने के बाद ही उन्हें तो अब राज्य में संपत्ति का अधिकार लंबी लड़ाई के बाद तो मिल गया था लेकिन उनके बच्चे अभी भी इस अधिकार से वंचित थे। लेकिन धारा 370 और अनुच्छेद 35-ए खत्म होने के बाद अब उन्हें भी अपने हक मिलना शुरू हो गया है। अन्य राज्यों में विवाह के बाद भी बेटियों को पूरे अधिकार मिलते थे लेकिहन जम्मू कश्मीर में ऐसा नहीं था। महाराजा हरि सिंह के समय से राज्य में स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र को जरूरी रखा गया था। बाहर शादी होने पर पहले बेटियों को राज्य की स्थायी नागरिकता गंवानी पड़ती थी लेकिन वषोंं कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद डॉ. सुशीला सहनी के मामले में हाईकोर्ट की फुल बेंच ने उनके स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र को बरकरार रखने का आदेश दिया था। यह उनकी आधी जीत थी। बेटियों को इसके बाद भी न्याय के लिए कोर्ट का सहारा लेना पड़ रहा था। बेटियों को राज्य से बाहर शादी करने के बाद स्थायी नागरिकता का अधिकार तो मिल गया, लेकिन अगर उनकी मृत्यु हो जाती थी तो जायदाद पर बच्चों का हक नहीं होता था। कारण बच्चों का राज्य में स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र नहीं बन पाना था। लेकिन अब अनुच्छेद 35-ए खत्म होने के बाद उनके बच्चों को भी यह अधिकार मिलेंगे।
ब्लाक डेवलपमेंट काउंसिल के चुनाव: केंद्र शासित प्रदेश बने जम्मू-कश्मीर में पहली बार ब्लाक डेवलपमेंट काउंसिल के चुनाव हुए। जम्मू-कश्मीर में पंचायतों के लिए तो चुनाव होते थे लेकिन ब्लाक डेवलपमेंट काउंसिल के लिए कभी भी सरकारों ने चुनाव नहीं करवाए। इस बार सितंबर-अक्टूबर महीने में सरकार ने बीडीसी के चुनाव करवा कर एक और इतिहास रच दिया। सरकार के इस कदम का पंचों और सरपंचों ने भी स्वागत किया।
चार महीने से इंटरनेट बंद: जम्मू-कश्मीर के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि चार महीने से पूरे केंद्र शासित प्रदेश में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद पड़ी है। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए पूरे जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी थी। इंटरनेट सेवाएं बहाल करने की मांग तो हो रही है लेकिन अभी तक इस पर कोई भी फैसला नहीं हुआ है।
तीन पूर्व मुख्यमंत्री हिरासत में: इस साल पहली बार जम्मू-कश्मीर में तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों को हिरासत में रखा गया है। पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद डा. फारूक अब्दुल्ला को पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत हिरासत में लिया गया है जबकि पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को नजरबंद किया गया है। तीनों ही पूर्व मुख्यमंत्रियों को जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद पांच अगस्त को हिरासत में लिया गया था। यही नहीं पीडीपी, नेंका, पीपुल्स कांफ्रेंस के कई अन्य वरिष्ठ नेताओं को भी हिरासत में लिया गया है।