Jammu Kashmir: राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लिप्त करीब 700 सरकारी अधिकारियों-कर्मियों पर कार्रवाई की तैयारी
केंद्र शसित जम्मू-कश्मीर प्रदेश प्रशासन राष्ट्रीय एकता अखंडता के लिए खतरा बने करीब 700 अधिकारियों व कर्मियों को अगले दो तीन माह में सेवामुक्त कर सकता है।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। आपको यह जानकारी हैरानगी होगी परंतु यह कड़वा सच है कि पांच अगस्त 2019 को लागू किए गए जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम और अनुच्छेद 370 की समाप्ती के खिलाफ अलगाववादियों व आतंकियों से कहीं ज्यादा प्रदेश प्रशासन के अधिकारी और कर्मी ही आम लोगों के दिलो दिमाग में जहर भर रहे हैं। यह लोग इसके लिए सोशल मीडिया का पूरा दुरुपयोग कर रहे हैं। वाट्सअप, ट्वीटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम समेत इंटरनेट की विभिन्न सोशल साइटों पर इन लोगों ने एकाउंट्स बना रखे हैं। यही नहीं खुफिया एजेंसी द्वारा जुटाए गए इन तथ्यों के साथ तैयार की गई सूची में करीब 700 लोगों के नाम हैं।
यह खुलासा होने के बाद जिला प्रशासन ने सरकारी तंत्र में बैठे आतंकियों और अलगाववादियों के समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई का पूरा मन बना लिया है। केंद्र शसित जम्मू-कश्मीर प्रदेश प्रशासन राष्ट्रीय एकता, अखंडता के लिए खतरा बने करीब 700 अधिकारियों व कर्मियों को अगले दो तीन माह में सेवामुक्त कर सकता है। दैनिक जागरण ने 31 जुलाई के अपने अंक में इस बावत जानकारी देते हुए बताया था कि प्रदेश प्रशासन ने राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लिप्त सरकारी अधिकारियों व कर्मियों के खिलाफ मामलों की समीक्षा व कार्रवाई की सिफारिश के लिए छह सदस्यीय समिति का भी गठन किया है।
उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि प्रदेश प्रशासन को जम्मू-कश्मीर पुलिस के खुफिया विंग और अन्य खुफिया एजेंसियों ने एक रिपोर्ट सौंपी है। संबधित अधिकारियों ने बताया कि जम्मू-कश्मीर में कई सरकारी अधिकारी और कर्मचारी खुलेआम अलगाववाद व आतंकवाद का समर्थन करते हैं। कई बार ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई भी हुई, लेकिन यह लोग अदालत के जरिए अपने खिलाफ कार्रवाई को निरस्त कराने में कामयाब रहे हैं।
ठंडे बस्ते में पड़ी फाइलों को फिर निकाला: प्रदेश प्रशासन ने उन 200 सरकारी अधिकारियों व कर्मियों जिनमें कुछ पुलिस अधिकारी व कर्मियां की ठंड बस्ते में पड़ी फाइल को फिर से निकलवाया है, जो आतंकियों के साथ मिलीभगत के आरोप में पकड़े गए हैं या जिन पर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में सलिंप्तता के आरोप साबित होने के बावजूद किन्हीं कारणों से कानूनी कार्रवाई को अंतिम रुप नहीं दिया गया है। वर्ष 2016 में कश्मीर में हुए हिंसक प्रदर्शनों व सिलसिलेवार बंद में भी कई जगह सरकारी अधिकारियों व कर्मियों की भूमिका सामने आयी थी। इनमें से अधिकांश शिक्षा और राजस्व विभाग से जुड़े हुए थ। इन लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार भी किया और कईयों को निलंबित करते हुए विभागीय जांच का आदेश भी जारी किया। बाद में अधिकांश लोग वापस ड्यूटी पर लौट आए।
तीन दशकों में 300 के खिलाफ हुई कार्रवाई: इससे पहले भी कई बार आतंकियों के साथ मिलीभगत या फिर ड्यूटी में लापरवाही के आरोप में पुलिस अधिकारियों व कर्मियों को सेवामुक्त किया जा चुका है। बीते तीन दशकों के दौरान करीब 300 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हुई है। इनमें से 100 के करीब पुलिस अधिकारियों व कर्मियों को 1993 में कश्मीर में पुलिस संगठन में विद्रोह पैदा करने के लिए सेवामुक्त किया गया। इनके अलावा अन्य पुलिसकर्मियों को आतंकियों के समक्ष हथियार डालने या फिर संरक्षित व्यक्ति की हिफाजत में असमर्थरहने और डयूटी से भागकर आतंकियों से जा मिलने के मामलों में नौकरी से हटाया गया है। कईयों को जेल भी जाना पड़ा है।
1986 में हुई थी पहली बड़ी कार्रवाई: जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद को हवा देने में लिप्त सरकारी अधिकारियों व कर्मियों के खिलाफ पहली प्रमुख कार्रवाई तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन ने 27 फरवरी 1986 को की थी। उन्होंने राष्ट्रीय एकता, अखंडता को खिलाफ साजिश रचने के आरोप में तीन प्रोफेसरों अब्दुल गनी बट, अब्दुल रहीम और शरीफुद्दीन की सेवाएं समाप्त कर दी थी। करीब एक माह के भीतर इस तिकड़ी ने मुस्लिम इंप्लायज फ्रंट का गठन कर लिया जो अगले कुछ ही दिनों में मीरवाईज काजी निसार व अन्य अलगाववादी नेताओं के सहयोग से मुस्लिम यूनाईटेड फ्रंटमें बदल गया। सल्लाहुदीन जिसका असली नाम मोहम्मद युसुफ है, इसी फ्रंट के प्रत्याशी क तौर पर 1987 के चुनाव में शामिल हुआ था। प्रो अब्दुल गनी बट ने आगे चलकर कर आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के गठन में अहम भूमिका निभायी। पीपुल्स डेमाक्रेटिक पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व शिक्षामंत्री नईम अख्तर सियासत में सक्रिय होने से पहले एक नौकरशाह थे। उनके खिलाफ भी अलगाववादी भावनाओं को हवा देने के मामले में 1990 के दशक में कार्रवाई हुइ्र थी।
हिज्ब का ऑपरेशनल चीफ बुरहानुदीन भी था पुलिस अधिकारी: जम्मू कश्मीर में 1989-90 के दौरान जब आतंकवाद ने अपनी जड़ें जमाना शुरू की तो उस समय कई पुलिसकर्मी भी आतंकियों से जा मिले थे। इनमें अली मोहम्मद डार का नाम भी शामिल है। वह पुलिस इंस्पेक्टर था और नौकरी छोड़ हिजबुल मुजाहिदीन का ऑपरेशनल चीफ कमांडर बना था। उसका कोड नाम बुरहानुद्दीन हिजाजी था। उसके साथ ही आतंकी बने कुछ अन्य पुलिसकर्मियों ने ही जनवरी 1992 में पुलिस महानिदेशक कार्यालय में बम धमाका किया था। पुलिसकर्मियों के नौकरी छोड़ आतंकी बनने का यह सिलसिला आज भी जारी है। इस समय भी कश्मीर में सक्रिय तीन से चार आतंकी पूर्व पुलिसकर्मी बताए जाते हैं। जनवरी 2020 में पकड़ा गया आतंकी नवीद मुश्ताक उर्फ नवीद भी पुलिस का ही भगौड़ा है।