Jammu Kashmir: अलगाववाद की टूट रही कमर, गिलानी की छोड़ी कुर्सी पर बैठने को सामने नहीं आ रहा कोई

अलगाववाद की टूट रही कमर अगुवाई से कतरा रहे सब गिलानी की छोड़ी कुर्सी पर बैठने को सामने नहीं आ रहा कोई

By Preeti jhaEdited By: Publish:Wed, 08 Jul 2020 10:15 AM (IST) Updated:Wed, 08 Jul 2020 10:52 AM (IST)
Jammu Kashmir: अलगाववाद की टूट रही कमर, गिलानी की छोड़ी कुर्सी पर बैठने को सामने नहीं आ रहा कोई
Jammu Kashmir: अलगाववाद की टूट रही कमर, गिलानी की छोड़ी कुर्सी पर बैठने को सामने नहीं आ रहा कोई

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो।  कश्मीर में अलगाववादी राजनीति का हश्र यह हो गया है कि अलगाववादी संगठन हुर्रियत कांफ्रेंस को कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी का उत्तराधिकारी तक नहीं मिल रहा है। नए कश्मीर में अब कोई भी गिलानी द्वारा छोड़ी गई कुर्सी पर बैठने के लिए सामने नहीं आ रहा है। हुर्रियत का उदारवादी गुट भी चुप है। दोनों गुटों में एकता बघारने वाले घाटी के कुछ खास बुद्धिजीवियों की बोलती बंद है।

पाकिस्तान, जहां से कश्मीर की अलगाववादी सियासतदानों के तार हिलते हैं, वहां से भी कोई झंकार नहीं आ रही है। हुर्रियत से जुड़े सूत्रों ने बताया कि मीरवाइज मौलवी उमर फारुक और उनके करीबी जो अक्सर गिलानी के साथ विभिन्न मुद्दों पर सहमति पर जोर देते थे, वह भी अब कोई भी बात करने से कतरा रहे हैं। कश्मीर में सक्रिय कुछ ट्रेड यूनियन नेता और तथाकथित बुद्धिजीवियों का एक वर्ग जो हमेशा अलगाववादी सियासत में सक्रिय रहते हुए हुर्रियत में एकता की कवायद में जुटा रहता था, उसमें भी कोई हलचल नहीं हो रही है।

कट्टरपंथी गिलानी के एक करीबी ने कहा कि पहले यहां कई लोग कहते थे कि गिलानी कश्मीर में अलगाववादी सियासत का नेतृत्व सिर्फ अपने पास और अपने पुत्रों के पास रखना चाहते हैं। अब इन लोगों के मुंह पर ताला लग गया है। गिलानी ने गत सप्ताह हुर्रियत से इस्तीफा दे दिया था। उनके इस्तीफे के समय कहा जा रहा था कि अगले दो तीन दिनों में ही उनके उत्तराधिकारी की नियुक्ति हो जाएगी, लेकिन अब तक कोई सामने नहीं आया है। साल 1993 में गठित हुर्रियत कांफ्रेंस 2003 में दो गुटों में बंटी थी और गिलानी कट्टरपंथी गुट की अगुआई कर रहे थे। मीरवाइज मौलवी उमर फारुक उदारवादी गुट के प्रमुख हैं। 

गिलानी ने नहीं किया कश्मीर में बंद का आह्वान

कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी ने आठ जुलाई और 13 जुलाई को किसी तरह की हड़ताल या बंद का आह्वान नहीं किया है। हड़ताल को लेकर गिलानी के नाम पर सोशल मीडिया पर वायरल हुआ पत्र पाकिस्तान से अपलोड हुआ है। यह दावा पुलिस ने गिलानी के परिजनों के हवाले से किया है। हालांकि, खुद गिलानी या उनके परिवार ने इस बारे में कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी है। फिलहाल, पुलिस ने फर्जी पत्र को वायरल करने और हालात बिगाड़ने से जुड़ी धाराओं के तहत पत्र को सोशल मीडिया पर जारी करने वालों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है।गिलानी के लेटर हेड पर लिखे वायरल हुए पत्र में आठ और 13 जुलाई को कश्मीर बंद के साथ प्रदर्शनों का आह्वान किया गया है। इसके बाद से ही वादी में हड़ताल और राष्ट्रविरोधी प्रदर्शन होने की आशंका बढ़ गई।

हालांकि, सुरक्षा एजेंसियों ने कानून व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के लिए अलर्ट जारी कर दिया गया। पुलिस ने इस पत्र को लेकर अलगाववादी खेमे की गतिविधियों की निगरानी भी शुरू कर दी। अलबत्ता, गिलानी या उनके परिजनों ने अपने स्तर पर कहीं भी शाम तक इस पत्र और पुलिस के दावे की सच्चाई को लेकर कोई भी स्पष्टीकरण नहीं दिया था।आठ जुलाई को आतंकी बुरहान वानी की बरसी होती है। उसे उसके एक साथी संग सुरक्षाबलों ने आठ जुलाई 2016 को दक्षिण कश्मीर में मार गिराया था। वहीं, 13 जुलाई 1931 को जम्मू कश्मीर के तत्कालीन शासक महाराजा हरि के खिलाफ बगावत के दौरान मारे गए लोगों की याद में हर साल कश्मीर में शहीदी दिवस मनाया जाता है। इन दोनों तारीखों को अलगाववादी बंद का आह्वान करते हैं।

पुलिस ने पत्र फर्जी होने का यह किया दावापुलिस ने गिलानी के पत्र को लेकर अपने ट्वीटर हैंडल पर लिखा है कि यह पत्र फर्जी है। सैयद अली शाह गिलानी के पारिवारिक सूत्रों के मुताबिक यह पत्र फर्जी है, गिलानी ने ऐसा कोई पत्र जारी नहीं किया है। यह पत्र पाकिस्तान से ही किसी ने सोशल मीडिया पर अपलोड किया है। इस पत्र को सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों पर इसे शेयर करने और अग्रेषित करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इस संदर्भ में बड़गाम पुलिस स्टेशन में एफआइआर भी दर्ज कर ली है।

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