Terror Funding Case : वहीद परा के मामले में संरक्षित गवाहों के बयान सार्वजनिक न करने के निर्देश

Terror Funding Case मामले की सुनवाई के दौरान बेंच ने पाया कि ट्रायल कोर्ट ने अपने पहली जून 2021 के आदेश में ही गवाह संख्या एक से पांच को संरक्षित गवाह करार देते हुए उनके बयान बंद लिफाफे में पेश करने का निर्देश दिया।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Thu, 14 Oct 2021 09:13 AM (IST) Updated:Thu, 14 Oct 2021 09:13 AM (IST)
Terror Funding Case : वहीद परा के मामले में संरक्षित गवाहों के बयान सार्वजनिक न करने के निर्देश
संरक्षित गवाहों के बयान सार्वजनिक करके उन्हें खतरे में नहीं डाला जा सकता।

जम्मू, जेएनएफ: पीडीपी नेता व पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के नजदीकी वहीद परा के केस में हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच ने काउंटर इंटेलिजेंस कश्मीर को संरक्षित गवाहों के बयान सार्वजनिक न करने का निर्देश दिया है। बेंच ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें कोर्ट ने संरक्षित गवाहों के लिफाफा बंद बयानों को सार्वजनिक करने का निर्देश दिया था।

काउंटर इंटेलिजेंस कश्मीर ने ट्रायल कोर्ट के इस फैसले को हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच में चुनौती दी। मामले की सुनवाई के दौरान बेंच ने पाया कि ट्रायल कोर्ट ने अपने पहली जून 2021 के आदेश में ही गवाह संख्या एक से पांच को संरक्षित गवाह करार देते हुए उनके बयान बंद लिफाफे में पेश करने का निर्देश दिया। इसके बाद 11 सितंबर 2021 को ट्रायल कोर्ट कैसे अपने ही फैसले को दरकिनार करके बयान सार्वजनिक करने का निर्देश दे सकता है? बेंच ने कहा कि यह संवेदनशील मामला है, लिहाजा संरक्षित गवाहों के बयान सार्वजनिक करके उन्हें खतरे में नहीं डाला जा सकता।

संपादक के खिलाफ कार्रवाई पर रोक: हाईकोर्ट ने एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल के संपादक व अन्य पर मानहानि के मामले में शुरू की गई कार्रवाई पर रोक लगा दी है। पीडीपी नेता नईम अख्तर की ओर से दायर इस मानहानि के केस में चीफ जूडिशियल मजिस्ट्रेट श्रीनगर ने संपादक के जमानती वारंट जारी करते हुए उन्हें कोर्ट के सामने पेश होने का निर्देश दिया। संपादक ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने इसे छोटी बात करार देते हुए कहा कि जब एक व्यक्ति खुद को जन-प्रतिनिध कहता है और नेता बनता है तो उसे छोटी-छोटी बातों पर ऐसी प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे लोगों को तो खुद पर हमले व कटाक्ष को जरूरी समझना चाहिए। हाईकोर्ट ने पाया कि संपादक या टीवी चैनल ने ऐसा कुछ किया कि उनके खिलाफ मानहानि का केस चलाया जाए।

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