जम्मू कश्मीर में वर्षाजल संग्रह की कोई नीति स्पष्ट नहीं, 15 लाख आबादी झेलती है पेयजल संकट

आवास एवं शहरी विकास के प्रधान सचिव धीरज गुप्ता से आवासीय कालोनियों व विभिन्न क्षेत्रों में होने वाले भवन निर्माण में वर्षाजल संग्रह की नीति के संदर्भ में संपर्क करने का प्रयास किया गया तो वह उपलब्ध नहीं हो पाए।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Fri, 26 Mar 2021 08:53 AM (IST) Updated:Fri, 26 Mar 2021 08:53 AM (IST)
जम्मू कश्मीर में वर्षाजल संग्रह की कोई नीति स्पष्ट नहीं, 15 लाख आबादी झेलती है पेयजल संकट
पानी का इस्तेमाल भूमिगत जलस्तर बढ़ाने से लेकर सिंचाई और पेयजल के लिए हो सकता है।

जम्मू, राज्य ब्यूरो: पूरे देश में पानी की एक-एक बूंद को सहेजने के प्रयास हो रहे हैं, लेकिन जम्मू कश्मीर में आज तक वर्षाजल संग्रह के लिए कोई स्पष्ट नीति नहीं बनी है। सिर्फ विभिन्न सरकारी विभागों में योजनाओं तक वर्षा जल को सहेजने की व्यवस्था है और वह भी अधिकारियों की इच्छा के अनुरूप। इसी कारण, हर साल प्रदेश में लाखों घन मीटर वर्षाजल व्यर्थ जाता है। इसका नतीजा जम्मू संभाग के कठुआ जिले से लेकर उत्तरी कश्मीर में कुपवाड़ा तक करीब 15 लाख की आबादी पेयजल संकट झेलती है।

जम्मू कश्मीर में हर साल 1205.3 मिलीमीटर बारिश हर साल होती है। राजौरी, पुंछ, अखनूर, जम्मू, रामनगर, ऊधमपुर, कठुआ, सांबा, रामबन, किश्तवाड़, डोडा के कई हिस्से कंडी क्षेत्र कहलाते हैं, जहां बारिश का अभाव रहता है। कश्मीर में खिरयु समेत पांपोर के ऊपरी हिस्सों के अलावा करेवा व बारामुला और कुपवाड़ा कई हिस्से कंडी हैं।

कश्मीर में जल संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक बनाने का प्रयास कर रहे रिफ्त अब्दुल्ला ने कहा कि कश्मीर में वर्षाजल झेलम दरिया में ही जाता है या फिर कुछ झीलों के जरिए जमींदोज हो जाता है। कश्मीर में वर्षाजल का संग्रह आसानी से हो सकता है। उनके एक सर्वे के मुताबिक, सिर्फ श्रीनगर शहर के प्रत्येक मकान में हर साल छह हजार लीटर वर्षा जल जमा किया जा सकता है। इस पानी का इस्तेमाल भूमिगत जलस्तर बढ़ाने से लेकर सिंचाई और पेयजल के लिए हो सकता है।

आवास एवं शहरी विकास के प्रधान सचिव धीरज गुप्ता से आवासीय कालोनियों व विभिन्न क्षेत्रों में होने वाले भवन निर्माण में वर्षाजल संग्रह की नीति के संदर्भ में संपर्क करने का प्रयास किया गया तो वह उपलब्ध नहीं हो पाए। अलबत्ता, उनके विभाग से संबंधित एक अधिकारी ने बताया कि इस सदंर्भ में एक योजना पर काम हो रहा है। हम इस सिलसिले में सभी संबंधित पक्षों, जलशक्ति विभाग और विभिन्न एनजीओ के साथ समन्वय से काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पुरानी बस्तियों और भीड़ भरे शहरों में इस नीति को प्रभावी बनाना आसान नहीं है, लेकिन नई कालोनियों में इसे कार्यान्वित कराया जा सकता है। कई जगह लोगों ने अपने घरों में अपने स्तर पर वर्षाजल संग्रह का प्रबंध किया है।

प्रदेश में अगर कहा जाए तो कोई ऐसी नीति नहीं है जो लोगों को अपने घर-मकान में वर्षाजल के संग्रह के लिए बाध्य करे। सिर्फ सरकारी योजनाओं के निर्माण में ही इसका प्रविधान किया जाता है और वह भी प्रत्येक निर्माण योजना में नहीं। यह संबंधित योजना अधिकारियों की इच्छा और योजना की महत्ता के आधार पर होता है। ग्रामीण विकास विभाग की योजनाओं में वर्षा जल संग्रह का ध्यान रखा जाता है। -गुलाम नबी, एग्जीक्यूटिव इंजीनियर, जम्मू कश्मीर जल संसाधन प्राधिकरण 
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