Guru Purnima 2020 : लोहार से बनवाए उपकरण से खिलाड़ियों को तराशा
कठुआ जिला के रामकोट तहसील के छोटे से गांव बरोटा से ताल्लुक रखने वाले छोटू लाल शर्मा की वर्ष 2000 में जम्मू-कश्मीर स्टेट स्पोटर्स काउंसिल में फेंसिंग कोच के रूप में नियुक्ति हुई।
जम्मू, विकास अबरोल । यह सच है कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती और किसी भी खिलाड़ी (शिष्य) की प्रतिभा को तराशने में कोच (गुरु) की ही अहम भूमिका होती है। एक कोच के उचित मार्गदर्शन की बदौलत ही एक खिलाड़ी पहले राज्य, फिर देश और फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने देश और कोच के नाम को चार चांद लगाते हैं। आज हम एक ऐसे ही एक कोच की बात कर रहे हैं जिनकी बदौलत जम्मू-कश्मीर के खिलाड़ी अब तक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 340 के करीब पदक जीतने में कामयाब रहे हैं। कठुआ जिला के रामकोट तहसील के छोटे से गांव बरोटा से ताल्लुक रखने वाले छोटू लाल शर्मा की वर्ष 2000 में जम्मू-कश्मीर स्टेट स्पोटर्स काउंसिल में फेंसिंग कोच के रूप में नियुक्ति हुई। चार बार भारतीय फेंसिंग टीम के साथ बतौर कोच के रूप में अंतरराष्ट्रीय प्रतियाेगिताओं में प्रतिनिधित्व करने का भी स्वर्णिम मौका मिल चुका है। इसी का नतीजा है कि पिछले 20 वर्ष से अन्य खेलों की तुलना में फेंसिंग खेल में हर वर्ष पदक आना अब एक रिवायत बन चुकी है।
वाॅलीबाल खेल खेलते बन गए फेंसिंग के कोच
छोटू लाल शर्मा की बचपन से ही वॉलीबाल खेल में दिलचस्पी थी। चूंकि गांव में ज्यादातर वॉलीबाल खेला था इसलिए 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरांत महाराष्ट्र स्थित फिजिकल एजूकेशन अमरावती कॉलेज में एक वर्ष का सीपीढउ कोर्स किया। इसके उपरांत उनके खेल करियर का सफर शुरू हुआ। वाॅलीबॉल खेल में राष्ट्रीय स्तर पर खेलने के उपरांत इस बात का अहसास हो गया था कि इसमें भविष्य संवरने वाला नहीं है। वर्ष 1993 में 24 वर्ष की आयु में मुझे फ्रांस के खेल फेंसिंग के बारे में पता चला। मेरे वॉलीबॉल कोच ने मुझे इसमें प्रशिक्षित होने के लिए प्रेरित किया। पटियाला स्थित एनआईएस सेंटर से मैंने 40 दिनों का फेंसिंग का सर्टिफिकेट कोर्स किया। कोर्स के टॉप किया और फ्रांस के कोच से मुझे फेंसिंग खेल के बारे में थोड़ा बहुत सीखने को भी मिला। वर्ष 2000 में जम्मू-कश्मीर स्पोटर्स काउंसिल में कोच के पद पर नियुक्ति के बाद तब से लेकर आज तक पीछे मुड़कर नहीं देखा है।
संजीव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भाग लेने वाले राज्य के पहले फेंसिंग खिलाड़ी
जम्मू-कश्मीर की ओर से सर्वप्रथम संजीव सूरी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भाग लेने वाले राज्य के पहले फेंसिंग खिलाड़ी थे। इसके उपरांत रशीद अहमद चौधरी, विक्रम सिंह जम्वाल, उज्ज्वल गुप्ता, अजय खरतोल, दुष्यंत मगोत्रा, रंचन सभ्रवाल, विशाल थापर, जावेद अहमद चौधरी, वंश महाजन, तारिक हुसैन, तारिक अहमद, वीर संग्राम, श्रेया गुप्ता, रिया बख्शी, साहिबान और जसप्रीत कौर जैसे कई ऐसे नाम हैं जिन्हें भारत की ओर से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका मिला है। उज्ज्वल ने तो सैफ खेलों में दोहरे स्वर्ण पदक सेबर वर्ग में जीते थे जबकि रशीद ने भी दोहरे कांस्य पदक जीतकर जम्मू-कश्मीर और भारत का नाम रोशन किया था। वर्ष 2018 में श्रेया गुप्ता ने इंग्लैंड में आयोजित काॅमनवेल्थ कैडेट, जूनियर फेंसिंग प्रतियोगिता में भाग लेकर सेबर टीम वर्ग में कांस्य पदक जीतकर मेरा उत्साह दोगुना कर दिया। इस प्रतियोगिता की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि मुझे भारतीय फेंसिंग टीम के साथ चौथी बार अंतरराष्ट्रीय फेंसिंग प्रतियोगिता में बतौर कोच के रूप में भाग लेने का मौका मिला।
फेंसिंग खेल का शुरूआती दौर अच्छा नहीं रहा था क्योंकि फेंसिंग के उपकरण काफी महंगे और आम खिलाड़ी के खरीद के बाहर होते थे। हमारे पास भी उस समय खेलने के लिए फेंसिंग के उपकरण नहीं होते थे। अंतरराष्ट्रीय फेंसिंग रेफरी रशीद अहमद चौधरी और अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता उज्ज्वल गुप्ता ने बताया कि हमारे कोच छोटू लाल शर्मा लौहार के पास जाकर स्वयं काम चलाऊ उपकरण बनवाते थे ताकि हम सभी खिलाड़ी अभ्यास कर सकें। चूंकि फेंसिंग के उपकरण आज से 10 वर्ष पहले तक सिर्फ जर्मनी से ही मिलते थे। ऐसे में शुरूआत के दिनों में फेंसिंग खेल में अभ्यास के दौरान उपकरण नहीं मिलने के बावजूद कोच हमारा हौंसला सदैव बढ़ाते रहे। इसमें कोई शक नहीं है कि आज प्रदेश और देश में फेंसिंग खेल जिस मुकाम पर है उसका श्रेय फेंसिंग कोच छोटू लाल शर्मा को ही जाता है। उनके नेतृत्व में ही आज प्रदेश के कई खिलाड़ी एसआरओ-349 के तहत सरकारी नौकरियां पा चुके हैं। सरकार की ओर से भी भले ही खेल को प्रोत्साहन मिला है लेकिन जम्मू-कश्मीर स्टेट स्पोटर्स काउंसिल को भी कोच छोटू लाल शर्मा की पदोन्नति करनी चाहिए। - अंतरराष्ट्रीय रेफरी रशीद अहमद चौधरी।
मैं आज सफलता के जिस मुकाम पर पहुंचा हूं वह सब कोच छोटू लाल शर्मा की वजह से। मैंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते और फिर इसी फेंसिंग खेल ने मुझे सरकारी नौकरी दिलवाई है। हमने जिस समय पदक जीते उस समय संसाधन बहुत कम होते थे लेकिन कोच के उचित मार्गदर्शन से ही जीवन में सफलता मिली है। हम जब राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता में भाग लेने जाते थे तो हमारे कोच छोटू लाल शर्मा पंजाब की टीम से अनुरोध कर उपकरण हमारे लिए लेकर आते थे। पड़ोसी राज्यों के खिलाड़ियों से उपकरण लेकर खेलना शुरू किया और फिर उन्हीं को हराना शुरू कर दिया। जब पंजाब की टीम ने उपकरण देने से मना किया तो फिर मणिपुर की टीम से उपकरण लेने शुरू कर दिए। लेकिन अब समय के साथ काफी बदलाव आ चुका है। खिलाड़ियों के अभिभावक पहले से और अधिक सजग हो गए हैं। भले ही फेंसिंग खेल महंगा खेल है लेकिन अभिभावकों के साथ बच्चों की मेहनत भी बहुत मायने रखती है। - अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता एवं पीईटी उज्ज्वल गुप्ता
मैंने जिस समय फेंसिंग खेल ज्वाइन किया उस समय मुझे फेंसिंग उपकरण खरीदने में कोई दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा। मैंने अक्सर अपने सीनियर से सुना था कि उनके समय में तो उन्हें काफी परेशानी होती थी लेकिन बावजूद इसके कोच की हिम्मत और उचित मार्गदर्शन के बावजूद प्रदेश के खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतते रहे। कामनवेल्थ फेंसिंग में पदक जीतने का मेरा सपना कोच छाेटू लाल शर्मा की बदौलत ही साकार हुआ है। अगर मेरे अभिभावक मुझे प्रोत्साहन नहीं करते और कोच का उचित मार्गदर्शन नहीं मिलता तो आज मैं प्रदेश के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने में कामयाब नहीं हो पाती । - अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता श्रेया गुप्ता