Jammu Kashmir: हाईकोर्ट ने विधि विभाग को दिए याची मदसिर को मनसिफ नियुक्त करने के निर्देश

एक अन्य मामले में पब्लिक सेफ्टी एक्ट को चुनौती देते हुए मुस्तफा हाजी की ओर से एक जनहित याचिका दायर की गई है। हाईकोर्ट डिवीजन बेंच ने जम्मू-कश्मीर के चीफ सेक्रेटरी व विधि विभाग के सेक्रेटरी को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर पक्ष रखने का निर्देश दिया है।

By Edited By: Publish:Wed, 24 Feb 2021 07:31 AM (IST) Updated:Wed, 24 Feb 2021 07:49 AM (IST)
Jammu Kashmir: हाईकोर्ट ने विधि विभाग को दिए याची मदसिर को मनसिफ नियुक्त करने के निर्देश
पीएसए एक्ट की धारा 18 के तहत दो साल की सजा का प्रावधान है जो अब वैध नहीं।

जेएनएफ, जम्मू : हाईकोर्ट की श्रीनगर विंग में डिवीजन बेंच ने विधि विभाग को याची मुदसिर बशीर को मुनसिफ नियुक्त करने का निर्देश दिया है। बेंच ने विधि विभाग को निर्देश दिया है कि दो सप्ताह के भीतर पब्लिक सर्विस कमीशन को मुदसिर के नाम की सिफारिश करें और सामान्य श्रेणी की उम्मीदवार नीतिका महाजन के ज्वाइन नहीं करने की सूरत में रिक्त पद पर उसकी नियुक्ति का औपचारिक आदेश जारी करें।

केस के अनुसार 30 मई, 2018 को मुनसिफ के 42 पदों के लिए अधिसूचना जारी हुई थी, जिसमें याची का 24वां नंबर आया। उसके 580 अंक थे। एक अन्य उम्मीदवार के भी 580 अंक होने के बावजूद उसे 23वां नंबर दिया गया। मेरिट सूची के अनुसार याची सामान्य श्रेणी का अंतिम उम्मीदवार था, लेकिन पब्लिक सर्विस कमीशन ने प्रतिक्षा सूची तैयार नहीं की।

इस बीच नीतिका महाजन ने मेरिट सूची में नाम आने के बावजूद ज्वाइन नहीं किया और एक पद रिक्त रह गया। याची का दावा था कि 580 अंक वाले दूसरे उम्मीदवार की नियुक्ति हुई है, लिहाजा रिक्त पद पर उसकी नियुक्ति की जाए।

पीएसए एक्ट पर चीफ सेक्रेटरी व अन्य को नोटिस जारी: पब्लिक सेफ्टी एक्ट 1978 की धारा 18 को चुनौती देते हुए मुस्तफा हाजी नामक व्यक्ति की ओर से एक जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका पर गौर करने के बाद हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच ने जम्मू-कश्मीर के चीफ सेक्रेटरी व विधि विभाग के सेक्रेटरी को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर पक्ष रखने का निर्देश दिया है। याचिका में कहा गया है कि अब अनुच्छेद 370 खत्म हो चुका है और जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बन चुका है। अब यहां नेशनल सिक्योरिटी एक्ट भी लागू कर दिया गया है। जम्मू-कश्मीर का पीएसए एक्ट भी लागू है। नेशनल सिक्योरिटी एक्ट के तहत एक साल की अधिकतम सजा का प्रावधान है, जबकि पीएसए एक्ट की धारा 18 के तहत दो साल की सजा का प्रावधान है जो अब वैध नहीं। लिहाजा इसे खारिज किया जाना चाहिए।

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