लोकतंत्र के योद्धाओं के आगे नहीं टिकते चीनी साम्यवाद के पांव

विवेक सिंह जम्मू पूर्वी लद्दाख में चीनी साम्यवाद के निराश सैनिक विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भार

By JagranEdited By: Publish:Wed, 08 Jul 2020 08:45 AM (IST) Updated:Wed, 08 Jul 2020 08:45 AM (IST)
लोकतंत्र के योद्धाओं के आगे नहीं टिकते चीनी साम्यवाद के पांव
लोकतंत्र के योद्धाओं के आगे नहीं टिकते चीनी साम्यवाद के पांव

विवेक सिंह, जम्मू : पूर्वी लद्दाख में चीनी साम्यवाद के निराश सैनिक विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की सेना के बर्फीले योद्धाओं के आगे किसी भी मामले में नहीं टिकते। गलवन घाटी के बाद उपजे हालात से चीन को भलीभांति अंदाजा हो गया है कि यह वर्ष 1962 का भारत नहीं। यह 2020 का भारत है, जो अपनी जमीन पर बुरी नजर रखने वाले दुश्मन को उसके घर में घुसकर मारने का साहस रखते हैं।

लद्दाख जैसे दुर्गम इलाके में युद्ध लड़ने में भारतीय सेना का कोई सानी नहीं है। भारतीय सेना वर्ष 1984 से लद्दाख में विश्व के सबसे ऊंचे युद्धस्थल पर दुश्मन और निष्ठुर मौसम को परास्त कर रही है। वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध में चीन और पाकिस्तान के साथ पूरी दुनिया ने भारतीय सेना की हिम्मत को देखा है। चीन के लिए लद्दाख में जंग लड़ना आसान नहीं। चीन भी यह अच्छी तरह से जानता है कि उसके हतोत्साहित सैनिक सामने खड़े मजबूत इरादों वाले भारतीय सैनिकों के सामने ज्यादा देर टिक नहीं पाएंगे। चीन ने दशकों से कोई युद्ध नहीं लड़ा :

चीन ने पिछले कई दशकों से कोई बड़ा युद्ध नहीं लड़ा है। वहीं, पूर्वी लद्दाख में उसके सामने पूरे विश्व में बहादुरी का दूसरा नाम गोरखा बटालियनें, कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना पर कड़ा प्रहार करने वाली इन्फैंटरी की बटालियनें, चोटियों पर बैठे दुश्मन को तबाह करने वाले तोपखाने के साथ लद्दाख स्काउट्स के बर्फीले योद्धाओं की सेनाएं खड़ी हैं। इनकी ट्रेनिंग ही युद्ध के मैदानों में हुई है। ये योद्धा अब तक कई बार दुश्मन को धूल चटा चुके हैं। मौतें छिपाने से गिरा है चीनी सैनिकों का मनोबल :

सैन्य सूत्रों के अनुसार, पूर्वी लद्दाख के गलवन में हिसंक झड़पों में चीनी सेना को भारी जानी नुकसान होने के बाद उसके जवानों का मनोबल गिरा है। रही सही कसर, चीन ने अपने सैनिकों की मौतों पर पर्दा डालकर पूरी कर दी। ऐसे में गलवन में मारे गए चीन सैनिकों के परिवारों में भी अपनी साम्यवादी सरकार के खिलाफ बहुत रोष है। इससे भी चीन पर दवाब था, जिसके कारण वह विवाद को फिलहाल और तूल नहीं देना चाहता है। भारत में शहादतों के बाद पूरा देश उठ खड़ा हुआ :

वहीं दूसरी ओर भारतीय सेना के जवानों की शहादतों के बाद पूरा देश उठ खड़ा हुआ। शहीद परिवारों को पूरा सम्मान दिया गया। ऐसे में सरहद पर खड़े सैनिकों का हौसला बढ़ाने के लिए फील्ड कमांडरों से लेकर प्रधानमंत्री तक उनके बीच पहुंचे। भारतीय सैनिकों के जोश का स्तर इतना ऊंचा है कि वे एक इशारे पर दुश्मन का सफाया करने के लिए तैयार थे। युद्ध के मैदान में शहादत देने वाले सेना के वीर उनके प्रेरणास्रोत हैं। भारतीय सेना के पास माउंटेन वारफेयर का खासा अनुभव : साही

लद्दाख में तैनात रह चुके सेवानिवृत कर्नल वीरेन्द्र कुमार साही का कहना है कि लद्दाख की सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाली सेना की चौदह कोर हर समय ऑपरेशन मोड में रहती है। अस्सी के दशक में सियाचिन में पाकिस्तान से लोहा लेने के लिए शुरू हुई मुहिम ने भारतीय सेना को ऐसे हालात में लड़ने में प्रशिक्षित कर दिया है, जहां पर जीना आसान नहीं है। यह अभियान जारी है। इसके बाद कारगिल युद्ध में भी विश्व ने भारतीय सेना की हिम्मत को परखा है। युद्ध में अनुभव काम आता है। भारतीय सेना के पास माउंटेन वारफेयर के अनुभव की कोई कमी नहीं है। वहीं सामने खड़ी सेना के पास दुर्गम हालात में युद्ध लड़ने का कोई अनुभव नहीं है।

chat bot
आपका साथी