Jammu: मौत के तांडव के बीच मरीज क्रिटिकल एबुंलेस पर सांसे खरीदने में दिखा रहे यकीन
जम्मू से लुधियाना तक मरीज को शिफ्ट करने का रेट 60 से 70 हजार के बीच है। इस सेवा में एमबीबीएस डाक्टर और दो हेल्थ तकनीशियन भी साथ रहते हैं। 40 से 50 हजार रुपये में मरीजों को दिल्ली के किसी निजी अस्पताल में पहुंचा दिया जाने का रेट था।
जम्मू, अवधेश चौहान: जम्मू कश्मीर में कोराना संक्रमित मरीजों के लिए कम पड़ते अस्पताल को देखते हुए कुछ लोग अपने मरीजों को पड़ोसी राज्य पंजाब और हिमाचल के अस्पतालों में भर्ती करवाने में ज्यादा भलाई समझ रहे है।इस सबकों देखते हुए जम्मू के राजकीय मेडिकल कालेज अस्पताल के बाहर और जम्मू कटड़ा बाईपास रोड पर मरीजों को ढोहने के लिए मंडियां लगी हुई हैं।
क्रिट्रिकल केयर एंबुलेंस में वेंटीलेटर से लेकर आक्सीजन की सुविधा होने की वजह से मरीजों के तीमारदारों को यह सेवा सबसे ज्यादा फायदेमेंद लग रही है। क्रिट्रिकल एबंलेंस सेवा से वेंटीलेटर उनकी सांसे थामें रखेगा।अगर पड़ाेसी राज्यों के अस्पतालों में बैड नही भी मिला फिर भी मरीज को वेंटीलेटर सांस उपलब्ध करवाता रहेगा। कहीं न कहीं एबुंलेंस सेवा देने वाला अपने तौर पर मरीज को जम्मू राजकीय मेडिकल कालेज से बेहतर किसी भी निजी अस्पताल में भर्ती करवाने में सक्षम हो जाएगा।
इस मुगालते में जम्मू में क्रिट्रिकल एबुंलेस की चोरी छिपे मंडिया लगनी शुरू हो गई है। जम्मू से लुधियाना तक मरीज को शिफ्ट करने का रेट 60 से 70 हजार के बीच है। इस सेवा में एमबीबीएस डाक्टर और दो हेल्थ तकनीशियन भी साथ रहते हैं। इससे पहले क्रिट्रिकल एबुंलेस सेवा के लिए 40 से 50 हजार रुपये में मरीजों को दिल्ली के किसी निजी अस्पताल में पहुंचा दिया जाने का रेट था।
जम्मू से लुधियाना या चंडीगढ़ का रेट बीते दो माह पहले 25 से 30 हजार रुपये के बीच था, लेकिन कुछ लोग काेरोना काल में इंसानियत को भूल कर फायदे में यकीन रखते है। मरीज के तीमारदारों को भी लगता है कि अस्पताल से बेहतर एंबुलेंस में वेंटीलेटर सुविधा मिलना बेशक एक जोखिम हो सकता है, फिर भी मौजूदा परिस्थितियों में इस जोखिम को उठाने के लिए समृद्ध वर्ग के लोग हिचकिचा नही रहे है।
कारण एबुंलेस मुहैया करवाने वाले कुछ दलाल मरीजों के तीमारदारों को यकीन दिला रहे हैं कि उनके मरीज की सांसे थमने नही दी जाएंगी।उनका यह भी तर्क है कि जम्मू के राजकीय मेडिकल कालेज अस्पताल में बीते दस दिनों में में 171 मौते हुई है। ऐसे में तीमारदार अपने मरीज को मरने से बेहतर मोबाइल आक्सीजन पर रखना बेहतर समझ रहे हैं।