Jammu Kashmir: परिसीमन से खत्म होगी खानदानी सियासत, कश्मीर के झंडाबरदार दल बैकफुट पर जाएंगे

पीडीपी की तरह नेकां व अन्य कश्मीर केंद्रित दल पहले परिसीमन का विरोध कर रहे थे वह इसे पूरी तरह कश्मीर विरोधी बता रहे थे। उनका यह डर यूं ही नहीं है क्योंकि परिसीमन अगर सही तरीके से हुआ तो इन दलों का वर्चस्व समाप्त हो जाएगा।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Fri, 25 Jun 2021 08:20 AM (IST) Updated:Fri, 25 Jun 2021 10:29 AM (IST)
Jammu Kashmir: परिसीमन से खत्म होगी खानदानी सियासत, कश्मीर के झंडाबरदार दल बैकफुट पर जाएंगे
जम्मू संभाग की राजनीतिक व अन्य गतिविधियों में लगातार उपेक्षा को सही ठहराया जाता रहा है।

श्रीनगर, नवीन नवाज: जम्मू कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक गलियारोंं में हलचल तेज होती जा रही है। यह जायज भी है, क्योंकि कइयों का सियासी भविष्य इससे पूरी तरह प्रभावित होगा। अगर तयशुदा नियमों के मुताबिक, परिसीमन हुआ तो जम्मू कश्मीर में सत्ता और राजनीतिक तंत्र का संतुलन पूरी तरह बदल जाएगा। परंपरागत राजनीतिक दल और चेहरे भी बदल सकते हैं।

यह परिसीमन जम्मू बनाम कश्मीर या हिंदू बनाम मुस्लिम नहीं होगा, जैसा कि नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी या उन जैसे कुछ अन्य दल दावा कर रहे हैं। यह सिर्फ सीटों की संख्या बढ़ाने या उनके स्वरूप में संभावित बदलाव तक सीमित नहीं है, अनुसूचित जनजातियों, अनुसूचित जातियों के लिए विधायिका में आरक्षण को भी सुनिश्चित बनाएगा। कश्मीर और मुस्लिमों का झंडाबरदार होने का दावा करने वाले बैकफुट पर जाते नजर आएंगे।

जम्मू कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया पांच अगस्त 2019 को पारित जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के तहत ही अपनाई गई है। पुनर्गठन अधिनियम के तहत जम्मू कश्मीर राज्य अब दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर व लद्दाख में पुनर्गठित हो चुका है। पुनर्गठन अधिनियम के लागू होने के कुछ समय पहले तक लद्दाख को कश्मीर संभाग का हिस्सा माना जाता था। इससे कश्मीर संभाग का भूभाग, आबादी व अन्य कई बिंदुओं के आधार पर जम्मू संभाग से ज्यादा दिखाया जाता था। इसकी आड़ में जम्मू संभाग की राजनीतिक व अन्य गतिविधियों में लगातार उपेक्षा को सही ठहराया जाता रहा है।

खैर, पुनर्गठन अधिनियम के तहत बने केंद्र शासित जम्मू कश्मीर प्रदेश में विधानसभा भी है। इसके गठन से पहले परिसीमन की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए ही बीते साल मार्च में जस्टिस (रिटायर्ड) रंजना देसाई के नेतृत्व में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था, जिसका कार्यकाल इसी साल मार्च में एक साल के लिए और बढ़ाया गया है। इसमें जम्मू कश्मीर के पांचों सांसद भी शामिल हैं, जिनकी भूमिका सलाहकार की है। इन पांच में से तीन सांसद नेशनल कांफ्रेंस और दो भाजपा से ताल्लुक रखते हैं। नेकां ने शुरू में इसका विरोध किया है और बीते माह उसने परिसीमन की बैठक में शामिल होने का संकेत दिया है, ताकि वह निर्वाचन क्षत्रों के बदलाव के समय अपना पक्ष रखते हुए अपने हितों को सुनिश्चित बना सके। पीडीपी की तरह नेकां व अन्य कश्मीर केंद्रित दल पहले परिसीमन का विरोध कर रहे थे, वह इसे पूरी तरह कश्मीर विरोधी बता रहे थे, इसे जम्मू कश्मीर में मुस्लिमों के खिलाफ बता रहे थे। उनका यह डर यूं ही नहीं है, क्योंकि परिसीमन अगर सही तरीके से हुआ तो इन दलों का वर्चस्व या इन दलों के नेताओं का वर्चस्व समाप्त हो जाएगा।

111 से जम्मू कश्मीर की रह गई हैं 107 सीटें : पुनर्गठन अधिनियम लागू होने से पहले जम्मू कश्मीर राज्य विधानसभा में 111 सीटें थीं। इनमें कश्मीर संभाग की 46, लद्दाख की चार और जम्मू संभाग की 37 सीटों के अलावा गुलाम कश्मीर के लिए आरक्षित 24 सीटें थीं। अब लद्दाख की चार सीटें समाप्त हो चुकी हैं और जम्मू कश्मीर में 107 सीटें रह गई हैं। सात सीटें बढ़ाए जाने का प्रस्ताव है। लद्दाख अब कश्मीर से अलग हो चुका है, इसलिए अब कश्मीर केंद्रित दल अपने भूभाग को जम्मू संभाग से ज्यादा नहीं बता सकते। आबादी के मामले में कश्मीर के कई जिले जम्मू संभाग के जिलों से पीछे हैं। सड़क संपर्क और क्षेत्रीय भौगोलिक परिस्थितियों के मामले में भी जम्मू संभाग की स्थिति अगर कुछ एक इलाकों को छोड़ दिया जाए तो कश्मीर के मुकाबले कहीं नहीं ठहरती हैं। इसके अलावा जनजातीय आबादी और अनुसूचित जातियोंं के आरक्षण का संवैधानिक प्रावधान भी है।

37 से 44 हो सकती हैं जम्मू संभाग की सीटें : परिसीमन आयोग अगर निर्धारित बिंदुओं को ध्यान में रखेगा तो जम्मू संभाग में विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या बढ़ेगी और जम्मू की सीटें 37 से 44 हो जाएंगी, जबकि कश्मीर की 46 सीटें ही रहेंगी और ऐसी स्थिति में कश्मीर केंद्रित राजनीतिक दलों को वर्चस्व समाप्त हो जाएगा, क्योंकि कई अन्य दल भी कश्मीर में अपने प्रभाव वाले इलाकों में जीत दर्ज करेंगे। इनमें से अधिकांश दल नेकां, पीडीपी के साथ नहीं जाना चाहेंगे।

अनुसूचित जनजातियों के लिए 11 सीटें आरक्षित होंगी : जम्मू कश्मीर में मौजूदा 83 विधानसभा सीटों में से सात अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हैं और यह सभी सिर्फ जम्मू संभाग में और हिंदू बहुल आबादी वाले इलाकों में ही हैं। इसके अलावा अनुसूचित जनजातियों के लिए भी 11 सीटें आरक्षित होंगी। मौजूदा परिस्थितियों में जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जनजातियों के लिए एक भी सीट आरक्षित नहीं है। जम्मू कश्मीर में अनूसुचित जनजातियों में गुज्जर, बक्करवाल, सिप्पी, गद्दी समुदाय ही प्रमुख है। इसमें गद्दी समुदाय आबादी सबसे कम है और यह गैर मुस्लिम है जो किश्तवाड़, डोडा, भद्रवाह और बनी के इलाके में ही हैं जबकि अन्य पूरे प्रदेश में हैं। राजौरी, पुंछ, रियासी, बनिहाल, कुलगाम, बारामुला, शोपियां, कुपवाड़ा, गांदरबल में जनजातीय समुदाय की एक अच्छी खासी तादाद है। नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, कांग्रेस और अब पीपुल्स कांफ्रेंस, जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी या फिर इन जैसे कुछ अन्य दल ही इन समुदायों का चैंपियन होने का दावा करते हैं।

गुज्जर -बक्करवाल समुदाय के नाम पर सियासत करने वाले चंद जाने पहचाने चेहरे हैं जो पूरी तरह से खानदानी सियासत का प्रतीक हैं। यह नेकां और पीडीपी में ही हैं और पूरे प्रदेश में गुज्जर-बक्करवाल समुदाय का वोट बैंक प्रभावित करते हैं। इसके अलावा यह इस समुदाय में किसी नए नेता को उभरने भी नहीं देते। जब 11 सीटें आरक्षित होंगी तो उम्मीदवार भी 121 होंगे और फिर इनके ठेकेदार परेशान होंगे। उनकी ठेकेदारी बंद होगी। अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों में से अधिकांश कश्मीर में ही होंगी, क्योंकि जम्मू संभाग में जिन सीटों को इस वर्ग के लिए आरक्षित किया जाएगा, वहां पहले ही गुज्जर बक्करवाल समुदाय के उम्मीदवार ही काबिज हैं।

परिसीमन के विरोधियों की पीड़ा जायज है : जम्मू-कश्मीर मामलों के विशेष प्रो. हरि ओम ने कहा कि अगर परिसीमन 2021 की जनगणना के आधार पर कराया जाता तो बहुत बेहतर होता और अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद जो थोड़ी बहुत कसर बची है, वह अपने आप पूरी हो जाती। खैर, मौजूदा परिसीमन प्रक्रिया अगर केंद्र सरकार बिना किसी वर्ग के तुष्टिकरण के पूरा करती है तो आप यह मान लीजिए कि जम्मू संभाग के साथ 1947 के बाद हो रहा राजनीतिक पक्षपात पूरी तरह समाप्त हो जाएगा। गुज्जर-बक्करवाल समुदाय भी राजनीतिक रूप से मजबूत होगा। सत्ता का समीकरण बदल जाएगा। नेकां, पीडीपी, पीपुल्स कांफ्रेंस की ही नहीं गुज्जर-बक्करवाल समुदाय में भी खानदानी सियासत पूरी तरह समाप्त हो जाएगी। जम्मू कश्मीर में एक नया राजनीतिक समीकरण सामने आएगा जो पूरी तरह मुख्यधारा की सियासत में रचा बसा होगा। इसलिए परिसीमन के विरोधियों की पीड़ा जायज है। 

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