जम्‍मू कश्‍मीर और लद्दाख में विपरीत परिस्थितियों में दुश्‍मन की हर साजिश का मजबूती से जवाब दे रहे हैं हमारे जवान

वह दुश्मन के इरादों व कानून-व्यवस्था की स्थिति में आक्रोषित लोगों की मनस्थिति समझने में अधिक समर्थ बन रहे हैं। साथ ही आतंकरोधी अभियानों के दौरान आतंकियों को सरेंडर के लिए तैयार करवाने की चुनौतियों को हमारे अधिकारी मजबूती से निभा रहे हैं।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Tue, 20 Oct 2020 05:59 PM (IST) Updated:Tue, 20 Oct 2020 06:10 PM (IST)
जम्‍मू कश्‍मीर और लद्दाख में विपरीत परिस्थितियों में दुश्‍मन की हर साजिश का मजबूती से जवाब दे रहे हैं हमारे जवान
रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि बदलते परिवेश में सैन्य आवश्यकताएं बदल गई हैं।

श्रीनगर, नवीन नवाज: जम्मू कश्मीर और लद्दाख की विपरीत परिस्थितियों में तैनात जवानों और सैन्‍य अधिकारियों को तनाव और हालात से भी जूझना पड़ रहा है। दुर्गम हालात में भी दुश्‍मन की हर साजिश काे सेना नाकाम बनाती है। ऐसे हालात से लड़ने, जवानों को मनोवैज्ञानिक तौर पर मजबूत बनाए रखने और तनाव से लड़ने के विशेष मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण को अनिवार्य बना दिया है। जम्मू कश्मीर में तैनाती पर ऑनग्राउंड ड्यूटी संभालने से पूर्व यह विशेष कैप्‍सूल पाठ्यक्रम दिया जा रहा है। इस दौरान प्रशिक्षु जवानों व अधिकारियों का एक पर्सनेलिटी टेस्ट भी होता है।

करीब एक साल पूर्व इस पाठ्यक्रम की परिकल्पना हुई और कुछ माह पूर्व इसे अनिवार्य बना दिया गया। इस पाठ्यक्रम डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ साइक्‍लॉजिकल रिसर्च(डीआइपीआर) ने तैयार किया है। डीआइपीआर सेना समेत देश के सभी केंद्रीय अर्द्धसैनिकबलों, पुलिस संगठनों व अन्य सुरक्षा एजेंसियों के जवानों व अधिकारियों की मन:स्थिति और मानसिक तनाव से जुड़े मामलों पर अनुसंधान करती है।

जम्मू कश्मीर में सेना की उत्‍तरी कमान की 15 व 16 कोर तैनात हैं जबकि 14 कोर को लद्दाख में दुश्‍मन की चुनौतियों से निपटने के लिए तैनात किया गया है। यह तीनों कोर पूरी तरह से ऑपरेशनल ड्यूटी पर रहती हैं। जम्मू के नगरोटा स्थित सेना की 16 कोर को व्हाइट नाइट, श्रीनगर स्थित 15वीं कोर को चिनार और लेह (लद्दाख)स्थित 14वीं कोर को फायर एंड फ्यूरी कोर कहते हैं। इन तीनों कोर के अपने बैटल स्कूल (सीबीएस) हैं। इन तीनों कोर में तैनाती से पूर्व जवानों व अधिकारियों को इनके बैटल स्‍कूल में कुछ दिन के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है।

रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि बदलते परिवेश में सैन्य आवश्यकताएं बदल गई हैं। हालात पहले से ज्यादा चुनाैतिपूर्ण हैं। इसलिए ट्रेनिंग मॉडयूल में कई नई चीजें शामिल की गई हैं। मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा है। यह प्रशिक्षण जवानों और अधिकारियों को विपरीत परिस्थितियों में भी संयम और धैर्य बनाए रखने में समर्थ बनाता है और वह मनोबल बनाए रखने में मदद करता हैं। इससे वह दुश्मन के इरादों व कानून-व्यवस्था की स्थिति में आक्रोषित लोगों की मन:स्थिति समझने में अधिक समर्थ बन रहे हैं। साथ ही आतंकरोधी अभियानों के दौरान आतंकियों को सरेंडर के लिए तैयार करवाने की चुनौतियों को हमारे अधिकारी मजबूती से निभा रहे हैं।

विपरीत परिस्थितियों में संयम व सूझबूझ के साथ हालात से निपटने में समर्थ बनाने व मानसिक तनाव से बचने के लिए ही यह पाठ्यक्रम तैयार किया गया है। उन्होंने बताया कि सुरक्षाकर्मियों का एक भी गलत फैसला किसी भी अभियान को नाकाम बनाने के साथ-साथ जम्मू कश्मीर में कानून व्यवस्था का संकट पैदा कर सकता है। आबादी वाले इलाकों में आवाम के साथ मैत्रीपूर्ण माहौल बनाए रखते हुए आतंकरोधी अभियानों के संचालन में भी जवानों को समर्थ बनाने का लक्ष्‍य रखा गया है। नियंत्रण रेखा व अंतरराष्ट्रीय सीमा पर हमारे जवान पूरी सजगता के साथ दुश्मन के हर दुस्साहस से निपटने में मानसिक रुप से मजबूत साबित हुए हैं।

आतंकरोधी अभियान में शामिल जवानों के लिए चार सप्‍ताह का प्रशिक्षण: जवानों व अधिकारियों को बताया जा रहा है कि वह किसी भी जगह आक्रोशित भीड़ को खतरा महसूस न करें बल्कि भीड़ से निपटने के लिए लाेगों के साथ उनकी मनोस्थिति व तत्कालीन हालात को समझते हुए ही व्यवहार करें। उन्होंने बताया कि डीआइपीआर ने जम्मू कश्मीर के हालात का आकलन करने और सैन्याधिकारियों व जवानों से बातचीत के आधार पर ही यह पाठयक्रम तैयार किया है। उन्होंने बताया कि सीमांत इलाकों में तैनात जवानों व अधिकारियों के लिए यह पाठयक्रम दो सप्ताह का होता है, जबकि भीतरी इलाकों में आतंकरोधी अभियान में शामिल किए जाने वालों के पाठयक्रम की अवधि चार सप्ताह है।

अनावश्‍यक जनक्षति से बचाव के लिए किया जाता है तैयार: इस पाठयक्रम में सहृदयता एवं विश्वास, अच्छे व्यवहार, न्यूनतम बल प्रयोग और अनावश्यक जनक्षति से बचाव करते हुए निष्पक्षता से अभियान चलाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। ट्रेनिंग के दौरान जवानों व अधिकारियों काे उन परिस्थितयों के बारे में बताया जाता है जहां वह किसी भी समय खुद को फंसा हुआ महसूस कर सकते हैं। यह चर्चा की जाती है कि संभावित परिस्थितियों में वह कैसा व्यवहार करेंगे। डीआइपीआर के विशेषज्ञों का दल बीते साल जम्‍मू कश्‍मीर के दोनों सीबीएस में आया था और उसने प्रशिक्षुओं से बातचीत की और जवानों की आवश्‍यकताओं को समझा। उसके आधार पर ही इस पाठ्यक्रम को तैयार किया गया। प्रत्येक स्‍कूल में हर साल करीब ढाई से तीन हजार जवान व अधिकारियों को ट्रेनिंग दी जाती है।

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