CDS Bipin Rawat : गोली लगने पर जान की नहीं, दोबारा मोर्चे पर लौटने की थी फिक्र
बारामुला निवासी निसार यत्तु ने कहा कि जनरल रावत आपके लिए जनरल होंगे वह मुझे अपना बेटा मानते थे। मैंने तो आज अपना सबकुछ गंवा दिया है। हमारे साथ उनका पारिवारिक संबंध था। उनके पिता लक्ष्मण सिंह बारामुला में डैगर डिवीजन के जीओसी थे।
श्रीनगर, नवीन नवाज : उत्तरी कश्मीर के उड़ी सेक्टर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के अग्रिम छोर पर एक युवा मेजर अपने दस्ते के साथ गश्त पर था। अचानक एलओसी पार से पाकिस्तानी सैनिकों ने गोलाबारी शुरू कर दी। अपने जवानों को दुश्मन की फायरिंग से सुरक्षित निकालने के प्रयास में मेजर गंभीर रूप से जख्मी हो गया। उसकी एडी और हाथ में दुश्मन की गोलियां के अलावा गोलों से निकले छर्रे भी लगे थे।
खून से लथपथ मेजर को उड़ी स्थित सैन्य अस्पताल लाया गया और फिर उसे श्रीनगर के बादामी बाग स्थित सेना के 92 बेस अस्पताल में पहुंचाया गया। अस्पताल में मेजर ठीक होने लगता है, लेकिन वह डाक्टरों से अपनी सेहत के बारे में नहीं बल्कि यह पूछता कि क्या मैं मोर्चे पर जाने के लिए फिट हूं। अपनी जीवटता और दृढ़ संकल्प के बूते मेजर सबको हैरान करते हुए पूरी तरह ठीक होकर फिर मोर्चे पर लौटने के लिए तैयार हो जाता है। यही मेजर आगे चलकर भारत का पहला चीफ आफ डिफेंस स्टाफ बनता है। यह कोई और नहीं बल्कि मंगलवार को हेलीकाप्टर हादसे में शहीद हुए जनरल बिपिन रावत हैं।
जनरल बिपिन रावत का कश्मीर से नाता सिर्फ ड्यूटी तक सीमित नहीं था, वह यहां से भावनात्मक रूप से भी जुड़े थे। उन्होंने करीब छह साल उत्तरी कश्मीर में ही बतौर सैन्याधिकारी अपनी सेवाएं दी। इस दौरान उन्होंने स्थानीय नागरिकों के साथ जो मेल-जोल बनाया, वह आज भी बरकरार है।
बारामुला निवासी निसार यत्तु ने कहा कि जनरल रावत आपके लिए जनरल होंगे, वह मुझे अपना बेटा मानते थे। मैंने तो आज अपना सबकुछ गंवा दिया है। हमारे साथ उनका पारिवारिक संबंध था। उनके पिता लक्ष्मण सिंह बारामुला में डैगर डिवीजन के जीओसी थे। वह मेरे पिता के बहुत अच्छे दोस्त थे। बिपिन रावत जब पहली बार मेजर बनकर आए थे तो मुझे मेरे पिता साथ लेकर उनके पास उड़ी गए थे। बाद में उन्होंने सोपोर में एक ब्रिगेड की कमान संभाली थी, फिर वह यहां डैगर डिवीजन में जीओसी भी रहे। वह मेरे पिता को चाचा कहते थे। उन्हें उड़ी में गोली लगी थी और उन्होंने कैसे मौत को पछाड़ा, यह यहां सब जानते हैं। वह किसी चुनौती से पीछे नहीं हटते थे।
रावत ने करवाया था मेरा इलाज : निसार यत्तु ने कहा कि पिछले साल जब मुझे ब्रेेन हेमरेज और लकवा हुआ था तो मेरा उपचार भी उन्होंने ही कराया था। यहां के मिशनरी स्कूल में जहां दाखिला लेना बेहद मुश्किल होता है, उनके प्रयास से ही मेरे बच्चों का दाखिल हुआ था। वह निरंतर संपर्क में रहते थे और कहते थे कि रिश्ता निभाने के लिए होता है, एक दूसरे का ख्याल रखने के लिए होता है। उड़ी, बारामुला, सोपोर, बांडीपोरा और श्रीनगर में कई लोग उनके साथ लगातार संपर्क में रहते थे। जनरल बनने के बाद भी वह नियमित अंतराल पर फोन कर सबकी खैर खबर लेते थे। उन्होंने यहां बारामुला के लिए बतौर सैन्याधिकारी कई काम किए हैं। वह कहते थे कि मैं फौजी हूं और फौजी का मतलब आम आदमी का एक हिस्सा। वह दिल के बहुत नर्म थे, जिन्हें दूसरों की हमेशा फिक्र रहती थी।
कहते थे, जान जाए तो जाए, मोर्चे पर जाने से मुझे कोई नहीं रोके : बारामुला के एक बुजुर्ग सामाजिक कार्यकर्ता ने अपना नाम न छापने पर कहा कि मेरी पहली मुलाकात तब हुई थी जब मैं करीब 27-28 साल का था। यह बात 1993 की है, वह उड़ी से आगे एक जगह विशेष पर कंपनी कमांडर थे। सेना द्वारा आयोजित एक समारोह में मेरी उनसे मुलाकात हुई थी, जो बाद में पारिवारिक दोस्ती में बदल गई। वह उड़ी में जख्मी हुए थे और उनका पांव और हाथ कटने की नौबत आ गई थी। मैं उनसे जब बादामी बाग अस्पताल मिलने गया तो उन्होंने कहा कि जान जाए तो जाए, बस मोर्चे पर जाने से मुझे कोई नहीं रोके। बाद में वह यहां सोपोर में 2006 के दौरान राष्ट्रीय राइफल के सेक्टर कमांडर बन कर आए और फिर बाद में उन्होंने यहां 2011 में डैग्गर डिवीजन की कमान संभाली। डैगर डिवीजन ही उड़ी, गुलमर्ग में एलओसी की सुरक्षा का जिम्मा संभालती है।
वर्दी में कठोर नजर आने वाले रावत अंदर से मोम थे : इम्तियाज नामक एक स्थानीय व्यापारी ने कहा कि जनरल रावत से मेरी पहली मुलाकात वर्ष 2007 में हुई थी। उस समय वह ब्रिगेडियर थे। उनसे बातचीत की तो पता चला कि वर्दी में कठोर नजर आने वाला आदमी तो अंदर से मोम की तरह नर्म है।
कहते थे दुश्मन से मैदान पर निपटने से पहले उसके दिमाग पर चोट करो : जम्मू कश्मीर पुलिस के एक सेवानिवृत्त एसपी ने जनरल बिपिन रावत के साथ अपने संबंधों का जिक्र करते हुए कहा कि वह अनुशासनप्रिय और यारों के यार थे। वह कहते थे कि दुश्मन से मैदान पर निपटने से पहले उसके दिमाग पर चोट करने के बारे में जरूर सोचो। उसके दिमाग पर चोट करोगे तो मैदान पर पहुंचने से पहले ही जंग जीत जाओगे। मैंने उनके साथ कई बार आतंकरोधी अभियानों में हिस्सा लिया है।