Militancy in Kashmir: खुद को इस्लाम का पैरोकार कहने वाले आतंकी जान बचाने के लिए मस्जिदाें को बना रहे ठिकाना

मृतक नागरिक का तीन वर्षीय नाती उसके सीने पर काफी देर बैठा रहा था आतंकियों की फायरिंग के बीच सुरक्षाबलों ने उसे किसी तरह से वहां से सुरक्षित निकाला था।। इसके पहले 19 जून 2020 काे आतंकियों ने पांपोर में मस्जिद को अपना ठिकाना बनाया था।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Mon, 12 Apr 2021 02:59 PM (IST) Updated:Mon, 12 Apr 2021 02:59 PM (IST)
Militancy in Kashmir: खुद को इस्लाम का पैरोकार कहने वाले आतंकी जान बचाने के लिए मस्जिदाें को बना रहे ठिकाना
हमले में एक सीआरपीएफ कर्मी और एक नागरिक मारा गया था।

जम्मू, नवीन नवाज। इस्लाम के नाम पर कश्मीर में निर्दाेषों का खून बहाने में जुटे जिहादी अब अपनी जान बचाने और सुरक्षाबलों पर हमले के लिए मस्जिदों को अपना ठिकाना बना रहे हैं। आतंकियों की इस नयी रणनीति से सुरक्षा एजेंसियां भी सकते में आ गई हैं,क्योंकि यह किसी भी समय वादी में कानून व्यवस्था का एक बड़ा संकट पैदा कर सकती है।

सुरक्षा एजेंसियों ने आतंकियों के इस मंसूबे को नाकाम बनाने के लिए स्थानीय धर्मगुरुओं आैर सीविल सोसाईटी की मदद लेना शुरु कर दिया है। पुलिस ने आमजन से आग्रह किया है कि वह मस्जिदों के दुरुपयोग कर आतंकियों के खिलाफ आवाज उठाएं।

बीते सप्ताह शोपियां में अंसार गजवातुल हिंद,लश्कर व हिज्ब के पांच आतंकियों ने जामिया मस्जिद जान मोहल्ला में शरण ले रखी थी। मस्जिद को बचाने के लिए सुरक्षबलों ने आतकियों को सरेंडर का बार बार मौका दिया। इस क्रम में एक सैन्याधिकारी समेत चार सुरक्षाकर्मी भी घायल हो गए। काेई चारा न देख सुरक्षाबलों ने गाेलियां बरसा रहे आतंकियाें पर जवाबी प्रहार कर उन्हें मार गिराया। इसदौरान मस्जिद को क्षति पहुंची।

शोपियां में जो हुआ वह काेई पहली बार नहीं हुआ है। बीते एक साल के दौरान तीन बार ऐसा हो चुका है।बीतेे सालपहली जुलाई को आतंकियों ने सोपाेर में एक मस्जिद से ही सुरक्षाबलों पर हमला किया था। इस हमले में एक सीआरपीएफ कर्मी और एक नागरिक मारा गया था।

मृतक नागरिक का तीन वर्षीय नाती उसके सीने पर काफी देर बैठा रहा था, आतंकियों की फायरिंग के बीच सुरक्षाबलों ने उसे किसी तरह से वहां से सुरक्षित निकाला था।। इसके पहले 19 जून 2020 काे आतंकियों ने पांपोर में मस्जिद को अपना ठिकाना बनाया था। आतकयों ने मस्जिद के भीतर से ही हमला किया था और सुरक्षाबलों की जवाबी कार्रवाई में दो आतंकी मारे गएथे।

कश्मीर मामलों के जानकार शब्बीर हुसैन बुच्छ ने कहा कि शोपियां या उससे पहले अगर सोपोर और पांपोर की घटना का आकलन किया जाए तो यह समझ लें कि सुरक्षाबलाें के लिए चुनौती बढ़ती जा रहीहै। 1990से जब से कश्मीर में आतंकी हिंसा शुरु हुईहै, इसतरह की कई घटनाएं हो चुकी हैं। चरार ए शरीफ की घटना को अगर छाेड़ दिया जाए तो मस्जिद में घुसे आतंकियों ने सरेंडर किया है या फिर अपने लिए सुरक्षित रास्ता मांगा है। उन्हाेंने मस्जिद में मुठभेड़ की स्थिति नहीं आने दी है।

अब तो आतंकी मस्जिद का इस्तेमाल अपने एक मोर्चे और ठिकाने के तौर पर करने लगे हैं। आतंकी बहुत सोच समझकर एक रणनीति के तहत ही मस्जिदों में घुस रहे हैं। इससे उनके दो मकसद हल हाेते हैं एक अपनी जान बचाने के लिए सुरक्षाबलों पर दबाव बनाकर वहां से सुरक्षित निकलने का रास्ता प्राप्त करना। दूसरा, मस्जिद को नुक्सान पहुंचने के लिए पूरी तरह सुरक्षाबलों को जिम्मेदार ठहरा, लोगों को भड़का कानून व्यवस्था को पूरी तरह बिगाड़ना।

आईजीपी कश्मीर विजय कुमार ने कहा कि आतंकी अब अपनी जान बचाने के लिए मस्जिदों का सहारा ले रहे हैं। यह इस्लाम के खिलाफ है। हमारी सभी उलेमाओं, मौलवियों और इस्लामिक धर्मगुरुओं से अपील है कि वह मस्जिदों के दुरुपयोग के खिलाफ आवाज उठाएं। जिहादियों को मस्जिदों में दाखिल होने से रोकें।

आम कश्मीरियों को चाहिए कि वह मस्जिदों में बंदूृक लेकर दाखिल होने वाले आतंकियों के खिलाफ खुलकर आवाज उठाएं, उनकी निंदा करें। उन्होंने कहा कि शोपियां में आतंकियों का मकसद एक तरह से मस्जिद को पूरी तरह से नेस्तनाबूद करना था,तभी वह बार बार आग्रह के बावजूद सरेंडर के लिए नहीं मानें। उन्होंने मौलवीऔर इमाम नहीं सुनी। सरेंडर के लिए मनाने गए एक युवक को उन्होंने थप्पड़ भीमारे। इससे आप समझ सकते हैं कि उन्हें मस्जिद की मर्यादा से कोई सरोकार नहीं था।

उन्हाेंने कहा कि हम कश्मीर में सभी इस्लामिक विद्वानों, उलेमाओं व मौलवियों से इस विषय में संपर्क कर रहे हैं। हमारा मकसद मस्जिदों और जियारतों को आतंकियों के नापाक कदमों से बचाना है। चिनार कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डीपी पांडेय ने कहाकि मस्जिद इबादत की जगह होती है, जहां दुआ मांगी जाती है। आतंकी मस्जिद में घुस गए और वहां से गोली चलाने लगे।

मस्जिद हो या कोई अन्य धर्मस्थल हम उसका पूरा सम्मान करते हैं। आतंकी जो खुद को इस्लाम का पैरोकार कहते हैं, मस्जिदों की मर्यादा को भंग करने पर तुले हुए हैं। वह मस्जिदों में सिर्फ शरण ही नहीं ले रहे हैं बल्कि इनका इस्तेमाल सुरक्षाबलों पर हमले के लिए एक मोर्चे की तरह भी करेंगे। इसलिए अगर हमेंकश्मीर में मस्जिदों और जियारतों को नापाक होने से बचाना है तो आम लोगों को ही सबसे पहले आवाज उठानी होगी। 

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