सरहद पर भी श्री राम: सुचेतगढ़ में ऐतिहासिक श्री रघुनाथ मंदिर बंटवारे से भी पहले का साक्षी
सुचेतगढ़ में उस पार सियालकोट वजीराबाद नंदपुर चमरार कुंजपुर व नौरवाल इलाकों से काफी संख्या में लोग भगवान राम के दर्शनों के लिए आया करते थे।
जम्मू, अवधेश चौहान: अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन में जम्मू में अंतरराष्ट्रीय सीमा (आइबी) पर सुचेतगढ़ में ऐतिहासिक श्री रघुनाथ मंदिर स्थल की मिट्टी की महक भी होगी। यह मंदिर भारत-पाकिस्तान बंटवारे से पहले का साक्षी है। यहां सांप्रदायिक सौहार्द की धारा बहती थी। हर धर्म के लोग यहां नतमस्तक होते थे। आज भी सरहद पार लोगों में भगवान श्री राम के प्रति काफी आस्था है। वे उस पल के इंतजार में है जब ऑक्ट्राय पोस्ट को बाघा बार्डर टूरिज्म की तरह विकसित कर खोला जाए। गौरतलब है कि महाराजा रणवीर सिंह ने पूरे जम्मू कश्मीर में राम मंदिरों का निर्माण कराया था।
जम्मू के आरएसपुरा के सुचेतगढ़ में जीरो लाइन पर आक्ट्राय पोस्ट पर स्थित रघुनाथ मंदिर में भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण की मूर्तियां प्रतिष्ठापित हैं। इसी मंदिर के सामने भगवान हनुमान का मंदिर भी है। मंदिर की देखरेख धर्मार्थ ट्रस्ट कर रही है। गांव के बुजुर्ग श्रवण कुमार कहते हैं कि यह मंदिर अपने आपमें इतिहास को समेटे है। उन्हें याद है कि बंटवारे से पहले सुबह-शाम भीड़ रहती थी। सरहद पार (बंटवारा नहीं हुआ था) से काफी संख्या में हर धर्म के लोग आते थे। रामनवमी पर कई आयोजन होते थे।
मंदिर के पास दंगल (कुश्ती) देखने आपार भीड़ रहती। वह कहते हैं कि महाराजा ने सुचेतगढ़ से जम्मू तक हर पांच किमी. के दायरे में एक श्री राम का मंदिर का निर्माण कराया था। तड़के और शाम को जब पूजा होती थी तो एक साथ शंख बजते तो पूरा माहौल राममय हो जाता। उस पल को भूल नहीं सकते। 85 वर्षीय रूमालो सिंह से जब मंदिर के बारे में जिक्र किया तो वह भी अतीत की यादों में खो गए। उन्होंने कहा कि वह शाम की पूजा में घंटी बजाने के लिए जरूर जाते थे। पाक में बसे हिंदू व मुस्लिम परिवार मंदिर में भजन कीर्तन करते। वे कोई काम शुरू करने से पहले मंदिर में माथा जरूर टेकते।
सुचेतगढ़ में उस पार सियालकोट, वजीराबाद, नंदपुर, चमरार, कुंजपुर व नौरवाल इलाकों से काफी संख्या में लोग भगवान राम के दर्शनों के लिए आया करते थे। यही कारण है कि अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन के लिए जम्मू-कश्मीर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में रघुनाथ मंदिर स्थल की मिट्टी भी शामिल की गई। पूजा-अर्चना के बाद विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, गोरक्षा समिति के सदस्यों के साथ अयोध्या रवाना किया गया।
पहले यहां चढ़ाते थे फसल : देश के बंटवारे से पहले सरहद के पास व्यापारियों से चुंगी काटी जाती थी। काफी संख्या में व्यापारी गन्ना लेकर आरएसपुरा में चीनी मिल में आया करते थे तो वे मंदिर में पहले नतमस्तक होते थे, फिर गन्ने की फसल को आरएसपुरा में शूगर मिल में लेकर जाते थे।
तोपों की गूंज से चलता था समय का पता: इतिहासकार केके शाकिर, प्रो. अनीता बिलोरिया का कहना है कि बाहु फोर्ट से पहले तीन तोपों से फायर हुआ करता था। यह फायर लोगों को समय बताने के लिए किया जाता था जिसकी आवाज 40 किलोमीटर दूर तक सुनाई दी जाती थी। पहली तोप सुबह पांच बजे चलती थी, जिससे लोगों को यह पता चलता था कि सुबह के पांच बज गए हैं। लोग नहा धोकर रघुनाथ मंदिरों में एक साथ पूजा पाठ में लग जाते थे। दूसरी तोप दोपहर 12 बजे चलती थी जिससे यह संकेत मिलता था कि आधा दिन बीत गया है। तीसरी तोप रात 10 बजे चलती थी, जिससे जम्मू शहर के गेट बंद हो जाते थे। यह प्रथा 1940 तक जारी रही लेकिन उसके बाद बंद हो गई।
सांप्रदायिक सौहार्द में यकीन रखते थे महाराजा : इतिहासकारों का कहना है कि रियासत के संस्थापक महाराजा गुलाब सिंह ने 1856 में जम्मू में रघुनाथ मंदिर का निर्माण शुरू करवाया। स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण उन्होंने अपना राजपाठ अपने बेटे रणवीर सिंह को सौंप दिया जिन्होंने रघुनाथ मंंदिर का काम पूरा किया। महाराजा रणवीर सिंह राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द में यकीन रखते थे। महाराजा हरि सिंह ने 1932 में हरिजनों के लिए मंदिरों के कपाट खोल दिए। कहते है कि रघुनाथ जी के मंदिरों में एक समय पूजा हुआ करती थी। बंटवारे से पहले ट्रेन जम्मू के बिक्रम चौक तक आया करती थी तब ट्रेन से काफी लोग मंदिरों के दर्शनों के लिए आया करते थे। एक दिन रुकने के बाद वे घरों को उसे ट्रेन से दूसरे दिन लौट जाया करते थे।
रामदास वैरागी भगवान राम के भक्त : इतिहासकार केके शाकिर कहते हैं कि कहा जाता है कि महाराज गुलाब सिंह को रघुनाथ मंदिर के निर्माण की प्रेरणा श्री राम दास वैरागी से मिली थी। रामदास वैरागी भगवान राम के भक्त थे। वे भगवान राम के आदर्शों का प्रचार करने अयोध्या से जम्मू आए थे। कुटिया बनाकर रहते थे। रामदास ने जम्मू क्षेत्र में पहले राम मंदिर का निर्माण सुई सिम्बली में करवाया था। श्रीनगर में भी डोगरा शासकों ने रघुनाथ मंदिर का निर्माण कराया था।