Sanskarshala : ईमानदारी में सबसे बड़ा संतोष, इस गुण को बच्चों में विकसित करना जरूरी
ईमानदारी एक नैतिक मूल्य है जिसे बचपन में विकसित किया जाना चाहिए। मूल्य तो जीवन के माध्यम से व्यक्ति के साथ रहता है। ईमानदारी शब्दों और कर्मों में दिखाई देती है। जो ईमानदार है वह वही कहता है जो सत्य है। वही करता है जो सही है।
समर देव सिंह चाढ़क। दैनिक जागरण के बुधवार के अंक में संस्कारशाला में प्रकाशित कहानी ‘पापा पर हुआ गर्व’ सही में ऐसी कहानी है जो किसी भी ईमानदार आदमी के घर की कहानी हो सकती है। आज के युग में भ्रष्टाचार करने वाले दिखावा इस कदर करते हैं कि किसी भी ईमानदार व्यक्ति के परिवार के सदस्यों खासकर बच्चों का ईमानदारी से विश्वास उठने लगता है। उन्हें नहीं मालूम होता कि फलां आदमी की कमाई कहां से हो रही है। कैसे हो रही है। उन्हें तो बस यही दिख रहा होता है कि कैसे उनके घर में रोज-राेज नई चीजें आ रही हैं और उसी कार्यालय में ईमानदारी से काम करने वाले उनके पापा मुश्किल से घर चला रहे हैं।
ऐसे में मां-बाप का फर्ज बनता है कि वह बच्चों को नैतिक मूल्यों का पाठ पढ़ाते रहें। जिस तरह से आयुष के दादा जी ने कहा कि अगर सब बेईमान हो जाएं, तो कोई घर, कोई समाज, कोई देश न चले। जिस तरह उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की मिसाल देते हुए आयुष को ईमानदारी का पाठ पढ़ाने का काम किया। इसी तरह हमें भी अपने महापुरुषों के बारे में बच्चों को बताते रहना चाहिए।
ईमानदारी एक नैतिक मूल्य है, जिसे बचपन में विकसित किया जाना चाहिए। मूल्य तो जीवन के माध्यम से व्यक्ति के साथ रहता है। ईमानदारी शब्दों और कर्मों में दिखाई देती है। जो ईमानदार है, वह वही कहता है जो सत्य है। वही करता है जो सही है। ईमानदार होने से व्यक्ति निडर हो सकता है, लेकिन गलत आदमी हमेशा डरा-डरा रहता है। जब आयूष को उसके दादू उसके पापा की ईमानदारी के बारे में बताते हैं तो वह इस कदर प्रेरित होता है कि वह भी जीवन भर ईमानदारी का जीवन जीने का संकल्प लेता है। हमारे आसपास भी जो ईमानदार लोग हों, हमें उनका सम्मान करना चाहिए।
बचपन में ईमानदारी की खेती करना जरूरी है। अगर झूठ बोलने की आदत एक उम्र में बन जाती है, तो बड़े होने पर इसे दूर करना मुश्किल हो जाता है। कभी-कभी झूठ बोलना और कुछ मुश्किलों से दूर होना आसान होता है, लेकिन यह सच होने के साथ ही मन की स्थायी शांति हो सकती है। झूठ बोलना मन के अशांत होने का परिणाम है। सच कहने और हर कार्य में ईमानदारी बरतने का साहस होना चाहिए। यह जीवन को सरल और आसान बनाता है।
ईमानदारी के बिना कोई भी किसी भी स्थिति में परिवार, दोस्तों, शिक्षकों, आदि के साथ भरोसेमंद संबंध नहीं बना सकता है। कोई भी किसी के दिमाग को नहीं पढ़ सकता है लेकिन वह महसूस कर सकता है कि कोई व्यक्ति कितना ईमानदार है। ईमानदारी एक अच्छी आदत है जो हर किसी को खुश और शांत मन देती है। बेईमानी ने कभी किसी रिश्ते को बढ़ने नहीं दिया और बहुत सारी समस्याएं पैदा कीं। झूठ बोलने से प्रियजनों को दुख होता है जो रिश्ते में विश्वासघात की स्थिति पैदा करता है। ईमानदार होना एक प्रसन्न चेहरा और निडर मन देता है।
केवल कुछ डर के कारण सच्चाई बताना किसी व्यक्ति को वास्तव में ईमानदार नहीं बनाता है। यह एक अच्छी गुणवत्ता है जो लोगों के व्यवहार को हमेशा के लिए आत्मसात कर लेती है। सत्य हमेशा दर्दनाक हो जाता है, लेकिन अच्छे और सुखद परिणाम देता है। ईमानदारी भ्रष्टाचार को दूर करने और समाज से कई सामाजिक मुद्दों को हल करने की क्षमता रखने वाली शक्ति है। केवल कुछ डर के कारण सच बोलना, एक व्यक्ति को वास्तविक रुप से ईमानदार नहीं बनाता। यह एक अच्छा गुण है। जिसे लोगों को हमेशा अपने व्यवहार में आत्मसात करना चाहिए। सत्य हमेशा कड़वा होता है। हालांकिए हमेशा अच्छे और स्वस्थ परिणाम देता है।
ईमानदारी वह शक्ति है, जो भ्रष्टाचार को हटाने की क्षमता को रखती है और समाज के बहुत से मुद्दों को हल कर सकती है। शुरुआत में, ईमानदारी का अभ्यास जटिल और उलझन वाला हो सकता है। हालांकि, बाद में व्यक्ति को बेहतर और राहत महसूस कराती है। यह एक व्यक्ति को किसी भी बोझ से राहत देने के साथ ही स्वतंत्र बनाती है। ईमानदारी जीवन जीने वाले व्यक्ति के मन में किसी प्रकार कोई डर नहीं रहता। जबकि भ्रष्ट आदमी हमेशा डर-डर कर जीता है। उसे हमेशा अपना झूठ पकड़े जोन का डर सताता रहता है।
यह वह गुण है, जो किसी भी समय विकसित किया जा सकता है। हालांकि, बचपन से ही अपने माता-पिता, बड़ों, पड़ोसियों और शिक्षकों की मदद से इसका अभ्यास करना अच्छा होता है। सभी पहलुओं पर ईमानदार होना बहुत महत्वपूर्ण होता है।ईमानदारी व्यक्ति के जीवन में जो संतुष्टी होती है। उसका कभी मुकाबला नहीं किया जा सकता।बड़ी बात यह है कि ईमानदारी व्यक्ति के बच्चों को बेशक जीवन में बहुत सी सुविधाएं नहीं मिल पाती लेकिन जब भी कोई उनसे मिलता है और उनकी परिवार की ईमानदारी की तारीफ करता है, तो जो खुशी मिलती है वह किसी भी सुविधा से संभव नहीं हो सकती।
(लेखक डोगरा एजुकेशनल ट्रस्ट के सचिव हैं)