CCBL Jammu: सीसीबी के पूर्व चेयरमैन पर दर्ज FIR खारिज, पूर्व मैनेजर के खिलाफ जांच पूरी करने के निर्देश

सिटीजन कोआपरेटिव बैंक लिमिटेड के पूर्व चेयरमैन दिनेश गुप्ता के खिलाफ गांधी नगर पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआइआर को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। इस मामले में मुख्य आरोपित बैंक के तत्कालीन मैनेजर कुलदीप गुप्ता ने भी एफआइआर खारिज करने की मांग की थी

By Vikas AbrolEdited By: Publish:Tue, 05 Jan 2021 08:09 PM (IST) Updated:Tue, 05 Jan 2021 08:09 PM (IST)
CCBL Jammu: सीसीबी के पूर्व चेयरमैन पर दर्ज FIR खारिज, पूर्व मैनेजर के खिलाफ जांच पूरी करने के निर्देश
सीसीबी के पूर्व चेयरमैन दिनेश गुप्ता के खिलाफ गांधी दर्ज एफआइआर को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है।

जम्मू, जागरण संवाददाता : सिटीजन कोआपरेटिव बैंक लिमिटेड के पूर्व चेयरमैन दिनेश गुप्ता के खिलाफ गांधी नगर पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआइआर को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। बैंक को लाखों रुपये का चूना लगाने के इस मामले में मुख्य आरोपित बैंक के तत्कालीन मैनेजर कुलदीप गुप्ता ने भी एफआइआर खारिज करने की मांग की थी जिसे हाईकोर्ट ने ठुकराते हुए दो महीने के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दिया है। पूर्व चेयरमैन दिनेश गुप्ता पर आरोप था कि उन्होंने मुख्य आरोपित कुलदीप गुप्ता को बचाने के लिए नियमों का उल्लंघन कर लाभ देने का प्रयास किया। इसमें उनकी भूमिका के पुख्ता सबूत न मिलने पर हाईकोर्ट ने एफआइआर खारिज करने के निर्देश दिए।

बैंक की वेयर हाऊस शाखा के तत्कालीन मैनेजर कुलदीप गुप्ता के मामले में हाईकोर्ट ने जांच एजेंसी को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि यह केस 2009 में दर्ज हुआ था और 11 वर्ष में जांच एजेंसी यह पता नहीं लगा पाई कि इस केस में जो जमीन बैंक के पास गिरवी रखी गई थी, उसकी कीमत कितनी थी। केस के मुताबिक, राजेंद्र कुमार ने दस लाख रुपये के ऋण के लिए बैंक की वेयर हाऊस शाखा में आवेदन किया था। दस लाख ऋण के लिए बैंक को बीस लाख रुपये की संपत्ति गिरवी रखनी थी। इसके लिए राजेंद्र कुमार ने गजनसू में 14 कनाल 6 मरला जमीन बैंक के पास गिरवी रखी।

कुलदीप गुप्ता पर आरोप है कि उन्होंने बैंक के वैल्युअर मैसर्स खोसला एंड कंपनी के साथ मिलकर जमीन की कीमत 20,02,000 रुपये दर्शाई जबकि जमीन की वास्तविक कीमत केवल डेढ़ लाख रुपये थी। जांच में यह भी पता चला कि मैसर्स राजेंद्र कुमार एंड कंपनी ने जिस उद्देश्य के लिए ऋण लिया था, उस उद्देश्य के लिए पैसों का इस्तेमाल नहीं हुआ और न ही बैंक को ऋण अदायगी की गई जिससे खाता एनपीए हो गया। हाईकोर्ट ने जांच एजेंसी की पिछले 11 वर्षों की कार्रवाई पर अंसतोष प्रकट करते हुए कहा कि संबंधित अधिकारियों ने इन 11 वर्षों में राजस्व अधिकारियों को पत्र लिखने के अलावा कुछ नहीं किया। हाईकोर्ट ने आइजीपीजम्मू को स्वयं केस की निगरानी करने व दो माह के भीतर जांच पूरी कर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया।

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