World Postal Day : जम्मू के दूरदराज में आज भी चिट्ठियों का रहता है कई लोगों को इंतजार

उधमपुर जिले के रामनगर कस्बे के गांव दलसान फौकी जंदरोट गोरडी स्तयान कटवल अमरोट जद्राड़ी पंद्रोहट पंजग्रा और कठुआ जिले के बिलावर में मजालता खून और बसंतगढ़ आदि जैसे दर्जनों गांव में आज भी चिट्ठियों का प्रचलन है।

By Lokesh Chandra MishraEdited By: Publish:Sat, 09 Oct 2021 01:47 PM (IST) Updated:Sat, 09 Oct 2021 01:47 PM (IST)
World Postal Day : जम्मू के दूरदराज में आज भी चिट्ठियों का रहता है कई लोगों को इंतजार
रामनगर के डलसर गांव के पोस्टमास्टर चरणदास का कहना है कि अभी भी इन गांवों में चिट्ठयां तो आती हैं

जम्मू, अवधेश चौहान : 80 के दशक में मशहूर गजल गायक पंकज उदास की गजल- चिट्ठी आइ है, चिट्ठी आई है, वतन से चिट्ठी आई है... गाकर अपने परिवारों से कोसों दूर बैठे लोगों को भावुक कर दिया था। लेकिन अपनों की यह चिट्ठियां अब आधुनिक युग में कही गुम हो गई हैं। अब नंबर घुमाते ही सात समुंदर पार भी बैठे परिवार से झट से बात हो जाती है। एक क्लिक से उनसे वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये आमने-सामने बात हो जाती है। लेकिन अपनों की चिट्ठियों का इंतजार आज भी जम्मू कश्मीर के दूर दराज गांवों में रहता है, जहां मोबाइल सिगनल नहीं पहुंचते।

उधमपुर जिले के रामनगर कस्बे के गांव दलसान, फौकी, जंदरोट, गोरडी, स्तयान, कटवल, अमरोट, जद्राड़ी, पंद्रोहट, पंजग्रा और कठुआ जिले के बिलावर में मजालता, खून और बसंतगढ़ आदि जैसे दर्जनों गांव में आज भी चिट्ठियों का प्रचलन है। रामनगर तहसील के डलसर गांव के पोस्टमास्टर चरणदास का कहना है कि अभी भी इन गांवों में चिट्ठयां तो आती हैं, लेकिन समय के साथ इनकी संख्या काफी कम हो गई हैं। अमरोट और सत्यान गांव में कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जिनके बेटे बर्फीले रेगिस्तान लद्दाख सरहदों की रक्षा में लगे हुए हैं।

ऐसा ही एक परिवार है, जिसमें एक मां कमला देवी अपने बेटे कुलदीप सिंह की चिट्ठी के इंतजार में रहती हैं। हालांकि मां को पढ़ना नहीं आता, लेकिन बेटे की चिट्ठी पढ़कर जब डाकिया सुनाते हैं तो मां और उस डाकिए दोनों को एक अद्भुत सुकून मिलता है। डाकिया भी कहता है कि किसी मां को बेटे की चिट्टी पढ़कर सुनाने की जो मीठी अनुभूति होती है, उसका बखान नहीं किया जा सकता है। चिट्ठियों में नई नवेली दुल्हन या मां को बेटे के खत में जो इंतजार का रस है, वह आधुनिक युग में खत्म हो चुका है। पहले वक्त में खतों में जो दिल की गइराइयों से जो इजहार होता था, आज यह भावुक लम्हे समय की गर्त में कहीं खो गए हैं। अब यह समय नहीं लौटेंगा।

अब इतिहास के पन्नों में या फिर डाक टिकट संग्रह में ही ये खत मौजूदा पीढ़ी को खतों में भरे श्रृंगार रस, या बेटे द्वारा मां को लिखे खत के अक्षर उन भावुक लम्हों की यादों दिलाते रहेंगे, जब यह खत विरह वेदना को पाटने का काम करते थे। आज खत अंतरदेशीय पत्र पांच रुपये का हो गया है, जबकि पोस्टकार्ड ढाई रुपये में मिलता है। अब रजिस्टर्ड लेटर ही प्रचलन में रह गए हैं, क्योंकि कोई भी नियुक्ति पत्र या कोई पासपोर्ट या किसी निजी कंपनी की मोबाइल सिम या पैनकार्ड ही पोस्ट आफिस का हिस्सा बन कर रह गए हैं।

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