Jammu Kashmir: नौकरी के अंतिम पड़ाव में भी सुनीता में है कोविड मरीजों की सेवा का जुनून, बड़ी बहन के नाम से स्टॉफ में हैं लोकप्रिय
नर्सिंग स्टाफ को अस्पतालों की रीढ़ की हड्डी भी कहा जाता है। इस समय कोरोना संक्रमण के दौरान उनकी भूमिका और बढ़ गई है। कईं खुद संक्रमित हाेने के बाद फिर ड्यूटी पर लौटी हैं। लेकिन कोविड वार्ड में मरीजों की सेवा करना अपने आप में एक चुनौती होता है।
जम्मू, रोहित जंडियाल। नर्सिंग स्टाफ को अस्पतालों की रीढ़ की हड्डी भी कहा जाता है। इस समय कोरोना संक्रमण के दौरान उनकी भूमिका और बढ़ गई है। कईं खुद संक्रमित हाेने के बाद फिर से ड्यूटी पर लौटी हैं। लेकिन कोविड वार्ड में मरीजों की सेवा करना अपने आप में एक चुनौती होता है। वह भी उस समय जब अपना साथी भी इसी संक्रमण से ड्यूटी के दौरान दम तोड़ रहे हो। लेकिन इसकी परवाह किए बगैर कईँ डाक्टर, पैरामेडिकल और नर्सिंग स्टाफ पूरी निष्ठा के साथ ड्यूटी पर तैनात हैं। इन्हीं में एक हैं असिस्टेंट मैट्रन सुनीता हाशिया। वह राजकीय मेडिकल कॉलेज जम्मू के आइसोलेशन वार्ड, हाई डिपैंडेंसी वार्ड में गंभीर रूप से बीमार मरीजों की देखभाल का जिम्मा उठाए हुए हैं।
बड़ी बहन बनकर स्टाफ की जरूरतों का ख्याल और उनकी देखभाल भी करती हैं
राजकीय मेडिकल कॉलेज जम्मू और सहायक अस्पतालों में 34 वर्ष तक सेवाएं दे चुकी सुनीता हाशिया अगले वर्ष सेवानिवृत्त होने जा रही हैं लेकिन उनका हौंसला और काम करने की लगन से किसी को नहीं लगता कि उनकी नौकरी अब कुछ महीने ही शेष बची है। सुबह 10 बजे से पहले अस्पताल में ड्यूटी पर पहुंच जाना और फिर शाम को घर में जाने का कोई समय नहीं। हर समय इन वाडों में 100 से अधिक कोविड के गंभीर रूप से बीमार मरीजों की सेवा करना अपने आप में एक चुनौती है। लेकिन वह न सिर्फ खुद हमेशा सेवा के लिए आगे रहती हैं बल्कि अपने साथ काम करने वाली अन्य नर्सिंग स्टाफ से भी काम लेती हैं। यही नहीं बड़ी बहन बनकर उनकी जरूरतों का ख्याल और उनकी देखभाल भी करती हैं। अपने इस व्यवहार के लिए वे स्टाफ में भी काफी लोकप्रिय हैं।
मरीज जब ठीक होकर घर जाता है तब दिल को मिलता है सुकून
आइसोलेशन और एचडीयू वार्ड से ड्यूटी देने के बाद दैनिक जागरण के साथ बात करते हुए असिस्टेंट मैट्रन सुनीता हाशिया का कहना था कि कोविड का पहला मामला जब पिछले वर्ष जम्मू में दर्ज हुआ था तो उसे भी जीएमसी के आइसोलेशन वार्ड में ही रखा गया था। सभी में भय था। सभी ने एसओपी का पालन करते हुए उसकी देखभाल की। फिर एक समय ऐसा आया जब आइसोलेशन वार्ड मरीजों से भर गया और दहशत बढ़ गई लेकिन हर नर्स को मरीज की देखभाल के लिए उसके पास जाना ही पड़ता था। किसी ने भी अपना र्धैर्य नहीं खोया। मुझे आज भी वह दिन याद है जब हमारा एक साथी पवन कुमार ड्यूटी के दौरान संक्रमित हो गया। कुछ दिन के बाद उसकी मौत हो गई। यह सभी को हिलाने वाला था। इसके बाद असिस्टेंट मैट्रन रतना देवी, सीनियर स्टाफ नर्स हेमलता और कृष्णा भी चल बसीं। मगर किसी ने हौंसला नहीं खोया। सभी अपनी ड्यूटी देते रहे। कभी किसी ने स्टाफ की कमी का बहाना नहीं किया। इस बार तो बहुत से मरीजों की मौत हुई है। बहुत से मरीज गंभीर है। हमारे पास तो वह मरीज आते हैं जो कि गंभीर रूप से बीमार होते हैं। लेकिन अधिकांश मरीज यहां से ठीक होकर जा रहे हैं। जब कोई मरीज अस्पताल से ठीक होकर जाता है तो हमारे लिए यही सबसे बड़ी खुशी की बात होती है।
नर्सिंग स्टाफ, स्वास्थ्य कर्मियों का मनोबल बढ़ाना चाहिए
सुनीता हाशिया का कहना है कि लोगों को हमसे बहुत उम्मीदें होती हैं। लेकिन कुछ लोग हमारे काम को नहीं समझते और नकारात्मक बाते करते रहते हैं। इस समय सभी को यह सोचना चाहिए कि किस प्रकार से नर्स व अन्य स्टाफ कोविड वाडों में काम कर रहा है। एक नर्स ही मरीज की देखभाल करती है। मेडिकेट किस नंबर का लगना है, यह तक कई बार डाक्टर को भी नर्स ही बताती हैं। हम गंभीर रूप से बीमार मरीजों के वार्ड में ड्यूटी देते हैं। वहां पर सब कुछ सामान्य नहीं होता। कई बार मरीज ऐसे हालात में होता है कि उसका बचना मुमकिन नहीं लग रहा होता है लेकिन कुछ दिनों के बाद वहीं ठीक होकर वापिस जाता है। लोगों को इस चुनौती भरे माहौल में नर्सिंग स्टाफ व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों का मनोबल बढ़ाना चाहिए। हम उपलब्ध स्रोतों से सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास कर रहे हैं। हमारे कई साथी संक्रमित हो रहे हें। लेकिन फिर ठीक होकर ड्यूटी दे रहे हैं।