डॉ. शकील भारत-पाक सीमा से सटे राजौरी जिले के डांगरी गांव के बच्चों का संवार रहे भविष्य
फिल्म थ्री-इडियट का वो किरदार फुंसुक वांगड़ू याद है न.. कुछ-कुछ उनकी ही याद दिलाते हैं डा. शकील अहमद। भारत-पाक सीमा से सटे राजौरी जिले के सीमावर्ती गांव डांगरी के बच्चों के सपनों को पंख लगा रहे हैं।
रोहित जंडियाल, जम्मू। उम्र 31 वर्ष, 20 पुस्तकों का प्रकाशन और अमेरिका के स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के विज्ञानियों की सूची में नाम..यह मुकाम हासिल करने के बाद भी भारत-पाक नियंत्रण रेखा से सटे राजौरी जिले का एक युवा विज्ञानी अपने छोटे से गांव डांगरी के बच्चों के सपनों को पंख लगा रहा है। विदेशों की चकाचौंध को नजरअंदाज कर और दिल्ली के आइआइटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान को छोड़कर डॉ. शकील अहमद अपने इलाके के कॉलेज में पढ़ाकर बच्चों के भविष्य को संवारने में जुटे हैं।
किसी को भी यह बात हैरान कर सकती है, लेकिन यह सच है। डांगरी के डॉ. शकील अहमद उस समय चर्चा में आए जब कुछ दिन पूर्व स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिर्टी ने दुनियाभर के विज्ञानियों की सूची जारी की। उस समय तक लोगों को पता नहीं था कि यह युवा विज्ञानी छोटे से गांव के कॉलेज में पढ़ा रहा होगा।
बचपन में पिता का देहांत : डा. शकील का बचपन संघर्षो से भरा हुआ रहा। जब वे एक साल के थे, उनके पिता का निधन हो गया। सात भाई-बहनों में सबसे छोटे शकील के लिए जिंदगी की राह आसान नहीं थी। प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल में करने के बाद नौवीं कक्षा में हिमालयन स्कूल राजौरी में आ गए। वह पढ़ाई में प्रतिभाशाली थे, इसलिए स्कूल में उनसे फीस नहीं ली जाती थी। केमिस्ट्री व बायोटेक्नोलॉजी में उन्होंने पीजी कालेज राजौरी से स्नातक किया। वर्ष 2010 में स्नातक करने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया कालेज से केमिस्ट्री में एमएससी की और फिर पीएचडी।
दो साल और चार महीनों में उन्होंने पीएचडी पूरी कर ली। 2017 में आइआइटी दिल्ली में आ गए। उनके सपने लगातार पूरे हो रहे थे लेकिन दिल में अपने गांवों के युवाओं को बेहतर शिक्षा देने का सपना था। यही सोचकर उन्होंने असिस्टेंट प्रोफेसर के पद के लिए आवेदन दे दिया। उनका चयन हो गया। शकील ने डिग्री कालेज में पढ़ाने के अपने सपने को पूरा करने में देर नहीं की। वर्ष 2017 में शकील ने पुंछ जिले के मेंढर के सरकारी डिग्री कॉलेज में पढ़ाना शुरू कर दिया। उनके जुनून का असर कॉलेज में नजर आने लगा। अब बच्चे केमिस्ट्री विषय में रुचि दिखा रहे हैं। एलओसी से सटे ग्रामीण इलाकों के बच्चे आइआइटी जैसे संस्थानों तक पहुंचने लगे।
डा. शकील का कहना है कि वह जिस गांव के रहने वाले हैं, वहां पर ज्यादा लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं। इसलिए उनका सपना था कि जो संघर्ष पढ़ाई के लिए उन्होंने किया है, वे अन्य किसी को न करना पड़े। उनका कहना है कि चीन, ईरान, अमेरिका जैसे कई देशों में उन्हें जाने का अवसर मिला है, बहुत कुछ देखा है लेकिन अगर सभी गांवों से पलायन करने लगे तो यहां के बच्चों को कौन पढ़ाएगा? हर चीज पैसा नहीं है। दूसरों के सपनों को पूरा करने के लिए भी जीना आना चाहिए। प्रयास है कि इसी क्षेत्र में पढ़ाता रहूं।
बच्चों को देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रवेश के योग्य बना दूं। 18 किताबें, तीस शोध पत्र: डा. शकील ने कुछ वर्ष में ही देश विदेश में नाम कमाया। वह अब तक केमिस्ट्री विषय पर 19 पुस्तकें लिख चुके हैं। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय जनरल में 30 शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। देश-विदेश के विश्वविद्यालयों में उनकी लिखी हुई पुस्तकों को विद्यार्थी पढ़ते हैं। उनका कहना कि अभी तो शुरुआत है। उनका शोध कार्य जारी है। अच्छी लैब न होने के कारण उन्हें अभी भी शोध के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया में जाना पड़ता है। उनका कहना है कि अभी कई पुस्तकें और लिखनी हैं।