Corona Warriors: पहले दिन बेटे की शादी, दूसरे दिन कोविड मरीजों की सेवा; एक साल से संभाली है कोरोना के खिलाफ जंग
जम्मू-कश्मीर का प्रवेश द्वार होने के कारण इस जिले में संक्रमण की आशंका जम्मू जिले के बाद सबसे अधिक रहती है। लेकिन डा. अंजली का काम करने का तरीका ही सबसे अलग है। उनका कहना है कि वह कालेज में सबसे बड़ी हैं।
जम्मू, रोहित जंडियाल: किसी भी संस्थान की मुखिया महिला हो तो वहां पर वातावरण घर जैसा हो जाता है। बात जब कोरोना संक्रमण के समय की हो और संस्थान मेडिकल कालेज हो तो मुखिया की जिम्मदारी और बढ़ जाती है। उसके लिए अपने बच्चों से भी खास इलाज के लिए आने वाले मरीज हो जाते हैं। उनकी देखभाल करना ही प्राथमिकता बन जाती है। ऐसा ही कुछ इन दिनों राजकीय मेडिकल कालेज कठुआ की प्रिंसिपल डा. अंजली नादिरा भट कर रही हैं। वह अपने परिवार को छोड़ कर दिन रात कोविड के साथ-साथ अन्य मरीजों की देखभाल में जुटी हुई हैं। इसके लिए उन्होंने अपने बेटे की शादी की भी परवाह नहीं की। बेटे की शादी की छुट्टी को बीच में ही रद्द कर वापस काम पर लौट आईं। उनकी इस मेहनत और लगन की प्रशंसा भी हो रही है।
मूलत: कश्मीर संभाग के श्रीनगर की रहने वाली डा. अंजली नादिरा भट ने श्रीनगर मेडिकल कालेज से एमबीबीएस की है। एमबीबीएस करने के दौरान ही जम्मू में बसे कश्मीरी पंडित परिवार में उनकी शादी हो गई। इसके बाद वह जम्मू के गांधीनगर में बस गईं। इसके बाद राजकीय मेडिकल कालेज जम्मू से उन्होंने फिजियालाेजी में मास्टर डिग्री की। फिर इसी कालेज के फिजियालोजी विभाग में वह एचओडी बनी। गत वर्ष जून महीने में उन्हें उस समय जीएमसी कठुआ का प्रिंसिपल बनाया गया था जब कोरोना संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे थे। बेहद चुनौतीपूर्ण हालात में उन्होंने पूरी स्थिति को संभाला। इसके लिए उन्हें अपने परिवार से दूर रहना पड़ा। कोई छुट्टी नहीं होती थी। घर में बच्चों के अलावा बुजुर्ग सास-ससुर की जिम्मेदारी भी थी। मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
इस वर्ष कोरोना संक्रमण के हालात और गंभीर हैं। जम्मू-कश्मीर का प्रवेश द्वार होने के कारण इस जिले में संक्रमण की आशंका जम्मू जिले के बाद सबसे अधिक रहती है। लेकिन डा. अंजली का काम करने का तरीका ही सबसे अलग है। उनका कहना है कि वह कालेज में सबसे बड़ी हैं। उनकी भूमिका मां जैसी ही है। सभी का ध्यान रखना। स्टाफ सदस्यों से लेकर मरीजों तक की ही समस्या को सुनना और उसका समाधान निकालना। यही कारण है कि कई बार जब उन्हें लगता है कि स्टाफ की कमी के कारण कोई काम बाधित हो रहा है तो वह उस कुर्सी पर बैठक कर उसका काम भी कर लेती हैं। कई बार तो उन्हें इमरजेंसी में कैजुएल्टी मेडिकल आफिसर का काम करते हुए भी देखा गया है। यही कारण है कि स्टाफ उनका बेहद सम्मान करता है।
पहले दिन बेटे की याादी, दूसरे दिन काम
डा. अंजली के बेटे की इसी महीने दो मई को शादी थी। उन्होंने इसके लिए छुट्टी भी ली हुई थी। लेकिन अचानक से कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ गई। वह बेटे की शादी के अगले दिन ही कालेज में फिर से लौट आईं और उन्होंने काम संभाल लिया। डा. अंजली का कहना है कि उनके लिए मरीज भी बच्चे समान हैं। ऐसे में संकट की इस घड़़ी में घर से अधिक मरीजों की चिंता है। इसीलिए छुट्टी बीच में ही छोड़कर वापस आ गई थी। वह पेशे से डाक्टर हैं और महिला भी हैं। महिला जितनी भी बड़ी अधिकारी क्यों न बन जाएं, उसके भीतर मां की ममता रहती है। किसी को दर्द में नहीं देख सकती।
हर प्रकार का मरीज है अस्पताल में
इस समय जीएमसी कठुआ में 300 बिस्तरों की क्षमता है। इनमें कोविड के 55 मरीज भर्ती हैं। इनमें बच्चे, गर्भवती महिलाएं भी शामिल हैं। कुल अस्सी मरीज आक्सीजन पर हैं। डा. अंजली का कहना है कि संक्रमित गर्भवती महिला का प्रसव भी इसी अस्पताल में किया जाता है ताकि मरीजों को कोई परेशानी न हो और उन्हें दरबदर न भटकना पड़े। यही नहीं अन्य बीमारियों के मरीज भी इस अस्पताल में भर्ती हैं। उनका कहना है कि इस समय चुनौती तो बहुत है। बहुत से स्टाफ सदस्य ऐसे हैं जो कि दिन रात कोरोना के मरीजों की सेवा में लगे हुए हैं। मुझ पर इन स्टाफ सदस्यों की देखभाल करने की भी जिम्मेदारी है। अस्पताल में डायलिसेस, टीकाकरण, आरटीपीसरआर टेस्ट हर प्रकार का काम हो रहा है।
परिवार के साथ कम मिलता है समय
डा. अंजली के पति आयुष्मान भट भी पेशे से डाक्टर हैं। उनके ससुर भी डाक्टर हैं। इस कारण घर में सभी उनकी जिम्मेदारी को अच्छी तरह से समझते हैं। डा. अंजली का कहना है कि कोविड के कारण परिवार के साथ समय नहीं बिता पाती हैं। बेटे की शादी के बाद भी घर से आना पड़ा। कोविड के मरीजों के साथ दिनरात रहने के बाद संक्रमण की भी आशंका रहती है। ऐसे में घर आकर सभी एहतियात बरतनी पड़ती हैं। इस समय प्राथमिकता मरीज हैं और उन्हीं पर ध्यान दिया जा रहा है।