सीआरपीएफ जवानों ने बयां किया अपना दर्द कहा, दुख है मगर रोकर नहीं बदला लेकर दिखांएगे जज्बात

पुलवामा विस्फोट की घटना के दो दिन बाद श्रीनगर स्थित 54वीं वाहिनी का एक जवान जो उसी काफिले में एक अन्य बस में सवार था, जिस काफिले पर हमला हुआ था, ने कहा कि मैं छुट्टी काटकर वापस आ रहा था।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Sun, 17 Feb 2019 11:24 AM (IST) Updated:Sun, 17 Feb 2019 11:24 AM (IST)
सीआरपीएफ जवानों ने बयां किया अपना दर्द कहा, दुख है मगर रोकर नहीं बदला लेकर दिखांएगे जज्बात
सीआरपीएफ जवानों ने बयां किया अपना दर्द कहा, दुख है मगर रोकर नहीं बदला लेकर दिखांएगे जज्बात

श्रीनगर, नवीन नवाज। साथियों के जाने का दुख बहुत है, लेकिन हम रोकर जज्बात नहीं दिखा सकते। सिर्फ मौका चाहिए। मिले तो हम ऐसा माहौल बना देंगे.. सब भूल जाएंगे कि कश्मीर में कभी आतंकवाद था। यह शब्द हैं गोरीपोरा वीरवार को पुलवामा में अपने शहीद साथियों को एंबुलेंस में रखने वाले सीआरपीएफ कर्मी राजेंद्र सिंह के। कहते हैं मैं उस मंजर को नहीं भूल सकता। और तब तक नहीं जब तक बदला ने लें। आतंकियों ने सोचा होगा कि हम डर जाएंगे, लेकिन यह सीआरपीएफ है। मतलब करेजियस, रोरिंग पावरफुल फाइटर।

पुलवामा विस्फोट की घटना के दो दिन बाद श्रीनगर स्थित 54वीं वाहिनी का एक जवान जो उसी काफिले में एक अन्य बस में सवार था, जिस काफिले पर हमला हुआ था, ने कहा कि मैं छुट्टी काटकर वापस आ रहा था। काफिले में शामिल सभी जवान अवकाश से ही लौट रहे थे। जब हम गौरीपोरा के पास पहुंचे तो अचानक हमारे वाहनों पर पथराव होने लगा। हमारे लिए यह सामान्य बात थी, क्योंकि हाईवे के पास बस्तियों में रहने वाले शरारती तत्व अकसर शाम के समय हमारे वाहनों पर पथराव करते हैं। पथराव के कुछ ही देर में दुकानों के शटर भी गिरने लगे। वाहन तेजी से निकल रहे थे। जब हम गौरीपोरा में हाईवे पर दुकानों को पार कर रहे थे कि अचानक एक जोरदार धमाका हुआ।

महेश कुमार नामक एक सीआरपीएफ जवान ने कहा कि हमारे सामने ही काफिले की एक बस धू-धू कर जल रही थी। हमारे कुछ साथियों के शरीर आसमां में उड़ रहे थे। जिस गाड़ी में मैं था, वह हमले का शिकार बनी बस से करीब 70 मीटर पीछे थे, इसलिए बच गया। विस्फोट के तुरंत बस रुकी। हमने पोजीशन ली। अपने शहीद व जख्मी साथियों को अस्पताल पहुंचाना शुरू किया। हम सभी लोग सुबह एक साथ जम्मू से निकले थे। रास्ते में एक साथ बैठकर हमने लंगर खाया था। अपने चेहरे पर गुस्से और बदले के भाव को छिपाते हुए महेश कहते हैं कि धमाके के बाद हमने जाकर देखा तो हमारे जवान शहीद हो गए थे। किसी तरह हमने जवानों को उठाया।

एंबुलेंस में रखकर अस्पताल भेजा। बहुत दुख हुआ, लेकिन ड्यूटी के वक्त हम अपने दुख का इजहार नहीं कर सकते हैं। हम इन हमलों से डरने वाले नहीं हैं, बढिय़ा ड्यूटी करेंगे और बदला लेंगे। यह पूछे जाने पर कि क्या उसने आतंकी की गाड़ी को देखा था तो उसने कहा कि मुङो इसका ध्यान नहीं है। हम सभी थके हुए थे। मुङो लगता है कि वह हमारी गाड़ी के आगे ही किसी सर्विस रोड से काफिले में घुसी होगी। 

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