Jammu: गट्टू डोर से मुनाफा कमाने की चाह ले रही परिंदों की जान, प्रतिबंध के बाद भी बिक रही

पेड़ में फंसा गट्टू धागा कई बार चील कबूतर आदि पङ्क्षरदों के पंखों और पैरों में फंस जाता है जिससे निकलने के लिए वे जितना छटपटाते हैं वह उनको उतना ही घायल करती है। ऐसे में उनकी जान भी चली जाती है।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Sun, 01 Aug 2021 07:31 AM (IST) Updated:Sun, 01 Aug 2021 07:31 AM (IST)
Jammu: गट्टू डोर से मुनाफा कमाने की चाह ले रही परिंदों की जान, प्रतिबंध के बाद भी बिक रही
प्रतिबंध के बावजूद जम्मू और उसके आसपास दुकानदार गट्टू डोर को धड़ल्ले से बेच रहे हैं।

जम्मू, अवधेश चौहान: गट्टू डोर की बिक्री पर हाईकोर्ट की तरफ से प्रतिबंध लगाने के बाद भी शहर में इसकी बिक्री बंद नहीं हुई है। त्योहारों के मौके पर पंतग उड़ाने के लिए गट्टू डोर या फिर सादे धागे पर कांच का लेप लगाकर बनाई गई डोर का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें फंसने से आए दिन पङ्क्षरदों की जान जाती है।

कई बार यह डोर इंसानों के लिए भी जानलेवा साबित हो चुकी है, फिर भी इसकी बिक्री चोरी-छिपे अब भी हो रही है। जम्मू शहर में हर साल करोड़ों रुपये की गट्टू डोर का कारोबार होता है। पतंगबाजी के शौकीन दूसरे की पतंग काटने के लिए इस डोर से पतंगबाजी करना पसंद करते हैं। उनकी इस चाह को अवैध रूप से इस डोर को बेचने वाले कारोबारी पूरा करते हैं। इससे उनको भी भारी मुनाफा होता है। इंसान के मनोविनोद और कारोबारियों की मुनाफा कमाने की चाह हर साल सैकड़ों पङ्क्षरदों की जान ले लेती है। इतना ही नहीं, त्योहारों के मौके पर इससे बड़ी संख्या में दोपहिया वाहन चालक भी घायल होते हैं, फिर भी लोग सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं।

पेड़ में फंसा गट्टू धागा कई बार चील, कबूतर आदि पङ्क्षरदों के पंखों और पैरों में फंस जाता है, जिससे निकलने के लिए वे जितना छटपटाते हैं, वह उनको उतना ही घायल करती है। ऐसे में उनकी जान भी चली जाती है। सेव एनिमल वैल्यू एनवायरमेंट की चैयरमेन रंपी मदान का कहना है कि गट्टू डोर को यदि जमीन में गाड़ दिया जाए तो वह आसानी से नष्ट नहीं होती है। कई बार घास खाते समय जानवर इसे भी खा जाते हैं, जो उनकी आंत में जाकर फंस जाती है। इससे उनकी मौत भी हो सकती है। त्योहारों के मौकों पर जब खूब पतंगबाजी होती है, तो दोपहिया वाहन चालक या साइकिल सवार के गले भी गट्टू डोर से कट चुके हैं, जिसके बाद उनको अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। मदान ने अफसोस जताते हुए कहा कि हाईकोर्ट के प्रतिबंध के बावजूद जम्मू और उसके आसपास दुकानदार गट्टू डोर को धड़ल्ले से बेच रहे हैं।

शहर में हर साल करीब 10 करोड़ का होता है कारोबार: जम्मू शहर में गट्टू डोर बेचने वाली व्यापारी इसे पंजाब, दिल्ली और राजस्थान से मंगवाते हैं। इतना ही नहीं इन कारोबारियों का नेटवर्क इतना तगड़ा है कि वे अपने खास ग्राहकों को इसकी होम डिलीवरी भी करते हैं। इसके लिए अधिकतर दुकानदारों ने सेल्समेन भी रखे हुए हैं। हाईकोर्ट के प्रतिबंध के बाद भी पुलिस-प्रशासन गट्टू डोर के अवैध कारोबार को नहीं रोक पाया है। त्योहारों के सीजन में तो गट्टू डोर की इतनी ज्यादा डिमांड हो जाती है कि इससे जुड़े कारोबारियों की चांदी हो जाती है। कई बार स्टाक कम पड़ जाता है। ऐसे में वे इससे भारी मुनाफा कमाते हैं।

कई इलाकों में खुलेआम बिकती है प्रतिबंधित डोर, प्रशासन नहीं कर रहा कार्रवाई: प्रतिबंधित चाइनीज डोर शहर के पक्का डंगा, नई बस्ती, खटीका तालाबा में खुलेआम बिकती है, लेकिन पुलिस-प्रशासन कुछ नहीं कर रहा है। ऐसे में लोग इन कारोबारियों से पुलिस-प्रशासन की मिलीभगत का भी आरोप लगाते हैं। इन इलाकों में दुकानदारों के अपने गोदाम भी हैं, जहां वे गट्टू डोर का स्टाक छुपा कर रखते हैं। रंपी मदान ने सरकार से अनुरोध किया है कि वह जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश का पालन सुनिश्चित करवाए। कोई भी दुकानदार इसे बेचता पकड़ा जाए तो उस पर जन सुरक्षा अधिनियम की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए। 

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