करोड़ों के प्रोजेक्ट पूरे करने में विफल रही प्रदेश सरकार

नियंत्रक एवं महालेखागार (कैग) रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नेशनल रूरल ड्रिकिग वाटर प्रोग्राम का मकसद ग्रामीणों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाना था लेकिन साल 2014-17 के बीच मिले 871.87 करोड़ रुपये राज्य वित्त विभाग स्टेट वाटर सैनिटेशन को देने में सात से 67 दिन देर की।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 29 Sep 2020 01:07 AM (IST) Updated:Tue, 29 Sep 2020 05:15 AM (IST)
करोड़ों के प्रोजेक्ट पूरे करने में विफल रही प्रदेश सरकार
करोड़ों के प्रोजेक्ट पूरे करने में विफल रही प्रदेश सरकार

राज्य ब्यूरो, जम्मू : नियंत्रक एवं महालेखागार (कैग) ने नेशनल रूरल ड्रिकिग वाटर प्रोग्राम और प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत कई प्रोजेक्ट पूरे नहीं करने पर जम्मू-कश्मीर सरकार की खिचाई की है। साल 2017-18 की ऑडिट रिपोर्ट में कैग ने कहा कि निर्धारित 1067 पेयजल सप्लाई योजनाओं में से सिर्फ 679 का काम ही पूरा हो सका। शेष 388 योजनाएं पूरी न होने के कारण 5.67 लाख लोगों को स्वच्छ पीने का पानी ही नसीब नहीं हो सका।

इसी तरह सरकारी स्कूलों में भी साल 2013-14 से 2016-17 के बीच 10 से 29 प्रतिशत के बीच पानी मुहैया करवाने का लक्ष्य कम पड़ता गया। इसी तरह साल 2013-15 के बीच सिर्फ नौ आंगनवाड़ी केंद्रों को ही स्वच्छ पानी सप्लाई हो सका। साल 2014-15 के बाद सरकार ने कोई भी लक्ष्य निर्धारित नहीं किया। इसी तरह प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत मंजूर हुए 1769 सड़क प्रोजेक्टों में से 810 ही पूरे हो सके। साल 2013-18 के बीच हर साल आठ से 19 प्रतिशत ही काम हो सका। भूमि अधिग्रहण नहीं होने और वन विभाग से मंजूरी नहीं मिलने से 467 प्रोजेक्ट अभी तक अधूरे पड़े हैं। जिला ग्रामीण सड़क योजना बनाई ही नहीं गई।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सड़क प्रोजेक्ट पूरे करने में सुस्ती के चलते केंद्र सरकार ने चरण छह, सात और नौ के तहत 1449 करोड़ रुपये जम्मू-कश्मीर को जारी ही नहीं किए।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नेशनल रूरल ड्रिकिग वाटर प्रोग्राम का मकसद ग्रामीणों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाना था, लेकिन साल 2014-17 के बीच मिले 871.87 करोड़ रुपये राज्य वित्त विभाग स्टेट वाटर सैनिटेशन को देने में सात से 67 दिन देर की। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 1415.37 करोड़ की लागत से पूरी होने वाली 647 योजनाओं को बिना प्रशासनिक मंजूरी के ही शुरू कर दिया। यही नहीं साल 2013-14 से 2017-18 के बीच सिर्फ 30 से 48 प्रतिशत स्त्रोतों से मिलने वाले पानी के सैंपल ही जांच के लिए भेजे गए।

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