Jammu: जीएमसी में अब बाइपेप मशीनों का भी टोटा, किराए पर मशीनें लेकर मरीजों का हो रहा इलाज

अस्पताल प्रबंधन को जब मालूम है कि मरीजों के लिए मशीन लाइफ लाइन से कम नहीं है फिर भी मशीनों को क्यों नही खरीदा गया। 40 से 50 हजार की यह मशीन अस्पताल प्रबंधन और दुकानदारों के बीच बेवजह मिलीभगत होने की शंका पैदा कर रहा है।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Fri, 23 Oct 2020 11:24 AM (IST) Updated:Fri, 23 Oct 2020 03:23 PM (IST)
Jammu: जीएमसी में अब बाइपेप मशीनों का भी टोटा, किराए पर मशीनें लेकर मरीजों का हो रहा इलाज
बाइलेवल पॉजिटिव एयरवे प्रेशर (बाइपेप)मशीन क्राॅनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिजीज (सीओपीडी)मरीजों के इलाज में इस्तेमाल होती है।

जम्मू, अवधेश चौहान: पहले जम्मू राजकीय मेडिकल कालेज अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी। अब वहां भर्ती सांस की तकलीफ से जूझ रहे मरीजाें को बाजार पर बाइलेवल पॉजिटिव एयरवे प्रेशर (बाइपेप) मशीनों के लिए निर्भर होना पड़ रहा है। वैसे तो भर्ती मरीजों को बाइपेप मशीन उपलब्ध करवाना जीएमसी प्रबंधन की जिम्मेदारी है। बीते 8 माह से जारी कोरोना काल में भी जीएमसी प्रबंधन बाइपेप मशीनें नहीं खरीद पाया। सांस दिलवाने में इस्तेमाल होने वाली बाइपेप मशीनों के लिए तीमारदारों को बाजारों में भटकना पड़ रहा है, ताकि इस मशीन को किराए पर खरीद कर मरीजों की जान बचाई जा सके।

अस्पताल प्रबंधन के कोरोना से निपटने में कोई दूरगामी नीति न होने की वजह से डॉक्टर तीमारदारों को बाजार से बाइपेप मशीनें किराए पर मंगवा कर उनका इलाज करने में लगे हुए है ।अगर डॉक्टर ऐसा नहीं करेंगे तो मरीज की जान भी जा सकती है। इसके लिए भर्ती मरीजों को रोजना 500 रुपये किराया भरना पड़ रहा है। हालांकि उप राज्यपाल प्रशासन ने दावा किया था कि मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने में फंड्स की कोई कमी नहीं है। सबसे अधिक दिक्कते गरीब मरीजों की हैं, जिन्हें रोजाना 500 रुपये देकर सांसों को किराए पर खरीदना पड़ रहा है।

अस्पताल के मेडिकल यूनिट 2 में भर्ती बिश्ननाह के पवन कुमार का कहना है कि वह बीते 8 दिनों से बाइपेप मशीन पर हैं, उन्हें प्रतिदिन 500 रुपये किराए पर मशीन लेनी पड़ी है। अभी तक 5000 रुपये किराए की मशीन पर ही चले गए है। बेशक उन्होंने आयुष्मान भारत के तहत 5 लाख का बीमा करवाया हुया है, लेकिन कैशलेस कार्ड के बावजूद उन्हें मशीनों से लेकर सब दवाईयां बाजार से खरीदनी पड़ रही है। सबसे ज्यादा बाइपेप मशीनों का इस्तेमाल क्राॅनिक आब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिजीज (सीओपीडी) मरीजों यानि लंग्स में पर्याप्त सांस न पहुंचने वाले मरीजों को यह दिक्कत पेश आ रही हैं। सांस लेने में तकलीफ कोरोना के लक्ष्ण हैं।

जीएमसी अस्पताल के इमरजेंसी आइसीयू वार्ड में किराए की बाइपेप मशीनों के सहारे जिंदगी तो चल रही है, लेकिन ऐसा कब तक चलेगा। क्या अस्पताल प्रबंधन इन मशीनों को खरीदने में असमर्थ है। अस्पताल में रोजाना 6000 एलएमपी लिटर पर मिन्ट जरूरत है, लेकिन 1200 एलएमपी ऑक्सीजन ही मरीजों को मिल पा रही है। अस्पताल का ऑक्सीजन प्लांट केवल 1200 एलएमपी ऑक्सीजन की पैदा करने की श्रमता रखता है। बाकी 4800 एलएमपी ऑक्सीजन बजारों से सिलेंडर खरीद कर पूरी की जा रही हे। रोजाना एक हजार के करीब सिलेंडर बाजार से खरीद कर सांसें पूरी की जा रही हैं।

आरटीआइ कार्यकर्ता बलविंदर सिंह का कहना है कि अस्पताल प्रबंधन को जब मालूम है कि मरीजों के लिए मशीन लाइफ लाइन से कम नहीं है, फिर भी मशीनों को क्यों नही खरीदा गया। 40 से 50 हजार की यह मशीन अस्पताल प्रबंधन और दुकानदारों के बीच बेवजह मिलीभगत होने की शंका पैदा कर रहा है। बलविंदर सिंह ने उप राज्यपाल मनोज सिन्हा और उनके सलाहकार राजीव राय भटनागर और आयुक्त सचिव स्वास्थ्य विभाग से कहा है कि जो साजो सामान दुकानदारों से किराए पर लेकर अस्पताल की जरूरतों को पूरा किया जा रहा है, उसकी खरीददारी अस्पताल स्वयं करें। जिससे कि मरीजों को इसे मंहगें दामों पर किराए पर लेकर इलाज न करवाना पड़े।

क्या होती है बाइपेप मशीन: बाइलेवल पॉजिटिव एयरवे प्रेशर (बाइपेप)मशीन क्राॅनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिजीज (सीओपीडी)मरीजों के इलाज में इस्तेमाल होती है। बीपेप थियरैपी में इस्तेमाल होने वाली यह मशीन उन मरीजों को लगाइ जाती है, जिन्हें सांस अंदर लेने और छोड़ने में तकलीफ होती है।आधुनिक बाइपेप मशीन छोटी होती हैं। इन मशीनों के साथ माॅस्क लगा होता है। जिसे नाक और मुंह पर फिट किया जाता है। मशीन दो किस्म को प्रेशर बनाती है। जब मरीज सांस लेता हे तो मशीन ऑक्सीजन को फेफड़ों तक पहुंचाती है। जब मरीज सांस छोड़ता है तो मशीन दोबार हल्का प्रेशर बना कर सांस बाहर निकाल देती है।मशीन अपने आप मरीज के सांस लेने और छोड़ने के प्रेशर लेवल को खुद ही सेट कर लेती है। 

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