Bhamuchak Temple Ramgarh : रघुनाथ मंदिर के साथ बना था रामगढ़ का भांमूचक मंदिर, कभी पाकिस्तान से भी आते थे श्रद्धालु

इस मंदिर में पाकिस्तान के लोग भी कभी आया करते थे। वर्ष 1947 से भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारे से पहले इस मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता था। मौजूदा उसमय पाकिस्तान में चले गए लाहौर तक के क्षेत्र के लोग इस मंदिर में आया करते थे।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Sat, 11 Sep 2021 11:05 AM (IST) Updated:Sat, 11 Sep 2021 12:19 PM (IST)
Bhamuchak Temple Ramgarh : रघुनाथ मंदिर के साथ बना था रामगढ़ का भांमूचक मंदिर, कभी पाकिस्तान से भी आते थे श्रद्धालु
इस मंदिर में पाकिस्तान के लोग भी कभी आया करते थे।

जम्मू, सुरेंद्र सिंह : जम्मू के एतिहासिक रघुनाथ मंदिर को तो देश भर के लोग जानते हैं लेकिन शायद ही किसी को पता हो कि जिस समय महाराजा गुलाब सिंह ने रघुनाथ मंदिर की नींव रखी थी ठीक उसी समय उन्होंने जम्मू शहर से 37 किलाेमीटर दूर बसे रामगढ़ इलाके में एक राधा कृष्ण के मंदिर का निर्माण भी करवाया था जिसे भांमूचक्क मंदिर के नाम से जाना जाता था। रघुनाथ मंदिर की तर्ज बन बनाए गए इस मंदिर का कुछ कुछ रूप भी रघुनाथ मंदिर जैसा ही था और इस मंदिर में रोजाना मेला लगता था दूर दूर से लोग आते थे।

इस मंदिर के निर्माण को लेकर इलाके के बुजुर्ग बताते हैं कि 18वीं सदी में जब महाराजा गुलाब सिंह ने जम्मू में रघुनाथ मंदिर की नींव रखी तो उस समय रामगढ़ के ही गांव अबताल के रहने वाले भामूं शाह ने उनके गांव में भी ऐसे ही मंदिर के निर्माण की मांग की। भामूं शाह महाराज के दीवान थे और भामूं शाह के आग्रह को मानते हुए महाराजा गुलाब सिंह ने इस मंदिर का निर्माण शुरू करवा दिया। करीब एक एकड़ भूमि पर किला रूपी मंदिर बनकर खड़ा हो गया जिसे भामूंचक्क मंदिर का नाम दिया गया। यह मंदिर इतना आकर्षक बना कि लोग दूर-दूर से यहां आने लगे और देखते ही देखते मंदिर मौजूदा समय पाकिस्तान स्थित लाहौर तक आकर्षक का केंद्र बन गया।

पाकिस्तान से भी आते थे श्रद्धालु : इस मंदिर में पाकिस्तान के लोग भी कभी आया करते थे। वर्ष 1947 से भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारे से पहले इस मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता था। मौजूदा उसमय पाकिस्तान में चले गए लाहौर तक के क्षेत्र के लोग इस मंदिर में आया करते थे। पाकिस्तान से माता वैष्णों देवी के दर्शनों के लिए जाने वाले श्रद्धालु इस मंदिर में रुक कर आराम किया करते थे। यहा आराम करने के बाद ही वे आगे जाते थे। इस मंदिर में दिन भर मेला लगा रहता था। बंटवारे के असर भामूंचक्क गांव पर भी पड़ा। यहां से लोग उजड़ गए। गांव सूना पड़ गया। लोगों के चले जाने से मंदिर की देखभाल नहीं हो सकी और यह एतिहासिक मंदिर खंडहर बन गया। अब मंदिर का अस्तित्व भी मिटने की कगार पर पहुंच चुका है।

लोग कर रहे हैं मंदिर के जीर्णोद्वार की मांग : खंडहर बन चुके इस मंदिर के जीर्णोद्वार की मांग स्थानीय लोग कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि इस एतिहासिक मंदिर को बचाना सरकार का दायित्व भी बनता है। ऐसी धरोहरों को बचाकर हमें अपनी युवा पीढ़ी को दिखाना चाहिए। इससे युवा पीढ़ी अपने इतिहास व संस्कृति से जुड़ती है। पूर्व सरपंच तेजेंद्र सिंह का कहना है कि हमने कई बार प्रयास किए हैं। जिला प्रशासन से भी इस मंदिर के जीर्णोद्वार की मांग की थी लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई। 

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