2017 से 2018 के दौरान द. कश्मीर में 470 आतंकी मारेे गए, लगभग सभी प्रमुख आतंकी कमांडर मारे जा चुके हैं

वर्ष 2017 और 2018 के दौरान सुरक्षाबलों ने दक्षिण कश्मीर में 470 आतंकियों को मार गिराया। लगभग सभी प्रमुख और दुर्दांत आतंकी कमांडर मारे जा चुके हैं।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Fri, 18 Jan 2019 09:06 AM (IST) Updated:Fri, 18 Jan 2019 09:06 AM (IST)
2017 से 2018 के दौरान द. कश्मीर में 470 आतंकी मारेे गए, लगभग सभी प्रमुख आतंकी कमांडर मारे जा चुके हैं
2017 से 2018 के दौरान द. कश्मीर में 470 आतंकी मारेे गए, लगभग सभी प्रमुख आतंकी कमांडर मारे जा चुके हैं

जम्मू, नवीन नवाज। दक्षिण कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ सुरक्षाबलों के अभियानों का असर सियासी हल्कों में साफ दिखने लगा है। वर्ष 2016 में आतंकी बुरहान की मौत के बाद पैदा हुए हालात के चलते दक्षिण कश्मीर में जाने से कतराने वाले मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के बड़े नेता अब बंद कमरों में बैठकें करने के बजाए खुले में रैलियां कर रहे हैं।

रियासत की सियासत के दो बड़े खिलाड़ी नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने एक तरह से आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए अपने चुनाव प्रचार का अघोषित अभियान दक्षिण कश्मीर से ही शुरू किया है। दोनों चाहते हैं कि आतंकवाद के कारण इस क्षेत्र में जो सियासी शून्य बना हुआ है, उसका फायदा उठाकर अपना चुनावी गणित भी मजबूत बनाया जाए।

वर्ष 2017 और 2018 के दौरान सुरक्षाबलों ने दक्षिण कश्मीर में 470 आतंकियों को मार गिराया। लगभग सभी प्रमुख और दुर्दांत आतंकी कमांडर मारे जा चुके हैं। आतंकियों का ओवरग्राउंड नेटवर्क भी लगभग तबाह हो चुका है, हालांकि वर्ष 2017 में पीडीपी, कांग्रेस व नेकां ने दक्षिण कश्मीर में अनंतनाग संसदीय सीट के उपचुनाव के लिए सियासी माहौल बनाने का प्रयास किया था, लेकिन नाकाम रहे थे।

इसके बाद बीते साल नगर निकायों और पंचायतों केचुनावों में भी आतंकियों का डर मुख्यधारा की सियासत पर हावी नजर आया था। सभी प्रमुख नेता दक्षिण कश्मीर में जाने से बचते थे और पुलिस व अन्य सुरक्षा एजेंसियां भी अक्सर मुख्यधारा के नेताओं को दक्षिण कश्मीर से दूर रहने की कथित सलाह देती थीं, लेकिन अब स्थिति बदल रही है।

आतंकी बुरहान की मौत के बाद दक्षिण कश्मीर से दूर रहने वाले नेता अब फिर स्थानीय लोगों के बीच नजर आने लगे हैं। बंद कमरों में बैठकों के बजाय खुले में सभाएं हो रही हैं। बीते एक माह के दौरान पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती दक्षिण कश्मीर में चार और नेकां अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला व उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला दो-दो दौरे कर चुके हैं। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीए मीर भी अनंतनाग और उसके साथ सटे इलाकों में अब बंद कमरों में बैठकें करने के बजाय खुले में अपने सहयोगियों और लोगों को संबोधित कर रहे हैं।

महबूबा ने अब दक्षिण कश्मीर के प्रत्येक जिले में सप्ताह में एक रात और दो दिन बिताते हुए ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलने का अभियान शुरू किया है। नेकां व कांग्रेस ने अपने सभी वरिष्ठ नेताओं को प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में बैठके व रैलियां करने का निर्देश दिया है।

महबूबा कुछ दिन पहले पुलवामा गई और उसके बाद शोपियां। हालांकि उन्होंने यहां कोई रैली नहीं की, लेकिन जिस तरह से वह ग्रामीणों के बीच खड़ी होकर सुरक्षाबलों व नई दिल्ली को कोसती नजर आयीं, उससे लगा कि दक्षिण कश्मीर के वातावरण में जो डर था, उसके बादल अब छंट रहे हैं। इसी दौरान डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने भी दक्षिण कश्मीर में दो दौरे किए।

एक दौरा अनंतनाग का था और इसमें उन्होंने पार्टीं नेताओं को संबोधित किया। गत मंगलवार को नेकां उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कुलगाम के चवलगाम में रैली की। नेकां की इस रैली को वर्ष 2016 से अब तक की दक्षिण कश्मीर में सबसे बड़ी सियासी रैली कहा जा रहा है। उसी दिन महबूबा ने अनंतनाग में पार्टी कार्यकर्ताओं से लेकर आम लोगों के प्रतिनिधिमंडलों को भी संबोधित किया।

क्या कहते हैं जानकार :

कश्मीर के राजनीतिक मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार आसिफ ने कहा कि दक्षिण कश्मीर में जिस तरह से नेकां, पीडीपी व कांग्रेस ने अपनी सियासी गतिविधियां बढ़ाई हैं, उसके लिए माहौल सुरक्षाबलों के अभियानों के कारण ही बना है। सभी नामी कमांडरों के मारे जाने से लोगों में डर घटा है। कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ बशीर मंजर के मुताबिक, दक्षिण कश्मीर पिछले विस चुनाव में पीडीपी ने इस क्षेत्र में 11 सीटों जीती थीं। वर्ष 2002 से पहले यहां नेकां का जबरदस्त दबदबा रहा है। बीते तीन सालों में यहां राजनीतिक गतिविधियां ठप थीं। अब फिर शुरू हुई हैं। दोनों दलों को सुरक्षाबलों के ऑपरेशनों से अपनी सियासत शुरू करने में फायदा मिला है।  

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