कश्मीर में आटो रिक्शा चालक की बेटी 19 वर्ष की उम्र में कर रही है ऐसा काम, जिसे आप भी करेंगे सलाम

बोलने और सुनने की ताकत से महरूम लोग बहुत प्रतिभाशाली होते हैं। बोलने और सुनने की ताकत न होने के चलते वे एक सामान्य इंसान की तरह जिंदगी में आगे नही बढ़ पाते हैं। उनके और आम इंसानों के बीच वार्तालाप नहीं होने से एक दूरी बनी रहती है।

By Vikas AbrolEdited By: Publish:Thu, 09 Sep 2021 02:52 PM (IST) Updated:Thu, 09 Sep 2021 03:06 PM (IST)
कश्मीर में आटो रिक्शा चालक की बेटी 19 वर्ष की उम्र में कर रही है ऐसा काम, जिसे आप भी करेंगे सलाम
अपने इस कार्य के लिए अर्वा इन मूब बधिरों के लिए मसीहा तो बन ही गई है।

श्रीनगर, रजिया नूर । मूक बधिर बहुत गुणी होते हैं, लेकिन बोलने-सुनने से महरूम यह लोग सामान्य लोगों तक अपनी बात आसानी से नहीं पहुंचा पाते और यही चीज उनके जिंदगी में सफलता से आगे बढ़ने में सबसे बड़ी बाधा का सबब बन जाती है। इन मूक बधिरों की इस समस्या को दूर करने के लिए एक 19 वर्षीय किशोरी सामने आई और उनकी आवाज बन उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही है।

श्रीनगर के नौगाम इलाके की रहने वाली अर्वा इम्तियाज नामी यह किशोरी सैकड़ों मूक बधिरों द्वारा इशारों में कही गई बातों का शब्दों की चादर पहनाकर उन्हें आगे पहुंचाने का माध्यम बन गई है। अपने इस कार्य के लिए अर्वा इन मूब बधिरों के लिए मसीहा तो बन ही गई है साथ ही वह दूसरे लोगों के लिए भी एक प्रेरणा का स्रोत बन गई है।

अर्वा दिव्यांगों के लिए बनी आल जम्मू एंड कश्मीर स्पोर्ट्स एसोसिएशन के लिए चलाई जाने वाली एक निजी संस्था में बतौर अनुवादक काम करती हैं। 300 मूक बधिर इस संस्था जिसका संचालन मूक बधिर ही करते हैं, से जुड़ें हुए हैं। इस संस्था से जुड़े मूक बधिरों को विभिन्न खेल गतिविधियों जिसमें क्रिकेट, फुटबाल, वालीबाल, बैडमिंटन, चैस, हाकी खेलों के गुर सिखाए जाते हैं, ताकि खेलों में रुचि रखने वाले मूक बधिर संस्था द्वारा उपलब्ध करवाए गए इस मंच का लाभ उठा खेलों में अपना भविष्य बना सकें। अर्वा मूक बधिरों को उक्त खेले सिखाने के लिए उपलब्ध रखे गए कोचों तथा मूक बधिरों के बीच एक पुल का काम कर दोनों की बातचीत एक-दूसरे तक पहुंचाती है। 12वीं कक्षा की छात्रा पांच वर्षों से इस संस्था में बतौर अनुवादक इन मूक बधिरों द्वारा इशारों में की जाने वाली बातों को शब्दों की शक्ल दे, उन्हें दूसरे लोगों तक पहुंचाती है। सराहनीय बात यह है कि एक मूक बधिर मां की कोख से जन्मी अर्वा अनुवादक यह काम निशुल्क सेवा समझ कर रही है।

अधिकतर मूक बधिर प्रतिभाशाली होने के बावजूद जिंदगी में आगे नहीं बढ़ पाते

जागरण के साथ अपने साक्षात्मकार में अर्वा ने अपने इस कार्य के बारे में और ज्यादा जानकारी देते हुए बताया कि बोलने और सुनने की ताकत से महरूम लोग बहुत प्रतिभाशाली होते हैं। बोलने और सुनने की ताकत न होने के चलते वे एक सामान्य इंसान की तरह जिंदगी में आगे नही बढ़ पाते हैं। उनके और आम इंसानों के बीच वार्तालाप नहीं होने से एक दूरी बनी रहती है। बस यहीं वजह है कि अधिकांश मूक बधिर जहीन व गुणी होने के बावजूद पिछड़े ही रहते हैं। अर्वा ने कहा, मेरा निजी अनुभव यही है क्योंकि मेरी मां, मेरी मासी, मेरे मामा और मामी भी मूक बधिर हैं। वह काफी प्रतिभाशाली हैं। वे सभी साइन लेंग्वेज (इशारों की भाषा) में बातचीत करते हैं लेकिन लोग अमूमन इस भाषा को नहीं समझ पाते। मेरी मां और मेरे बाकी परिजन कभी आसानी से अपनी बात दूसरों तक नही पहुंचा सके। अर्वा ने कहा, मुझे इस बात का काफी दुख था। मैं ज्यादातर अपने ननिहाल में रही हूं। मुझे पता है कि यह मूक बधिर लोग आपस में तो आसानी से इशारों की भाषा के जरिए बातचीत करते हैं जैसे मेरे मामू मामी और मेरी मासी आपस में करते थे। लेकिन दूसरे लोगों से बातचीत करना उनके लिए बहुत कठिन रहता था। मेरे पापा व मेरी मूक बधिर मां के बीच भी कभी-कभी यही होता था। मेरी मां, मेरे पापा को इशारों में कुछ कहती थी लेकिन मेरे पापा कुछ और समझ लेते थे। ऐसे में मुझे फिर पापा को मेरी मां की बात का अनुवाद करना पड़ता था। अब चूंकि मैं ज्यादातर अपने ननिहाल में रहती थी। मामू के साथ खास लगाव था। वह मुझे हर जगह साथ ले जाते थे।

पांच वर्षों से मूक बधिरों की भावनाओं को दे रही हैं शब्दों का रूप

एक दिन मामू मुझे अपने अन्य मूक बधिर साथियों से मिलवाने ले गए। वह मेरे ननिहाल के करीब ही एक पार्क में ले गए। मैंने वहां मामू के बहुत सारे दोस्तों को देखा। वह सब आपस में इशारों में बात कर रहे थे। उनकी बातों से मुझे पता चला कि यह किसी फुटबाल प्रतियोगिता की तैयारियों के हवाले से बातचीत हो रही थी। तब तक मुझे बस इतना ही पता था कि मेरे मामू एसोसिएशन चला रहे थे। घर वापस आने पर मैंने मामू से इस हवाले से जानकारी बटोरने की कोशिश की। उन्होंने मुझे इशारों में समझाया कि यह एसोसिएशन स्पोर्टस प्रतियोगिता का आयोजन करवाती है। जिसमें सिर्फ मूक बधिर खिलाड़ी ही हिस्सा लेते हैं। यह संस्था पंजीकृत है और सरकार की तरफ से संस्था को कुछ वित्तीय सहयोग भी मिला था। मैंने मामू से आग्रह किया कि वह मुझे भी इस संस्था में शामिल करें। मैंने उनसे कहा कि मैं बतौर अनुवादक काम रूंगी। पहले तो मेरे मामू ने यह कहकर मना कर दिया कि मैं अभी छोटी हूं और पढ़ रही हूं लेकिन मेरे आग्रह पर उन्होंने मुझे अपनी संस्था में बतौर अनुवादक शामिल कर दिया।

यह वर्ष 2014 की बात है, तब मैं 7वीं कक्षा में पढ़ती थी और आज मैं 12वीं कक्षा में हूं लेकिन व्यस्तता के बावजूद संस्था के साथ बराबर जुड़ी हूं। अर्वा ने कहा- इस संस्था में 300 के करीब मूक बधिर खिलाड़ियों को इंडोर व आउटडोर खेलों की ट्रेनिंग दी जाती है। खेल इंडोर हो या आउटडोर, मेरी हाजिरी लाजमी है। मैं कोच की तरफ से खिलाड़ियों को दी जाने वाली हिदायतों को इशारों की भाषा के माध्यम से खिलाड़ियों तक पहुंचाती हूं और खिलाड़ियों द्वारा इशारों की भाषा के जरिए की जाने वाली बातचीत का अनुवाद कर कोच तक पहुंचाती हूं। अर्वा ने बताया कि क्रिकेट, वालीबाल, बैडमिंटन, हाकी, चैस इत्यादि में हम स्थानीय के अलावा राष्ट्रीय स्तरीय तक के खेलों का आयोजन कर चुके हैं और हमारे खिलाड़ी बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। हमारी कोशिश है कि खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तरीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने का मौका मिले।

अर्वा स्पीच थैरेपी में उच्च शिक्षा प्राप्त करने में जुटी

एक आटो रिक्शा चालक की बेटी अर्वा स्पीच थैरेपी में उच्च शिक्षा प्राप्त करने की तैयारियों में जुट गई है। उसका कहना है कि स्पीच थैरेपी की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह व्यापक तौर से मूक बधिरों का प्रशिक्षण करेगी। अर्वा ने कहा, मुझे पूरी इशारों की भाषा आती है। लेकिन चाहती हूं कि मैं स्पीच थैरेपी का कोर्स कर प्रोफेशनल ढंग से मूक बधिरों को प्रतिनिधित्व करूं ताकि वह भी आम लोगों की तरह जिंदगी में सफलता से आगे बढ़ एक सामान्य जीवन व्यतीत कर सकें।

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