Jammu Kashmir : मौत को मात देने वाला अथर्व बढ़ा रहा लद्दाख के रक्षकों का हौंसला, छोटे योद्धा की हिम्मत के कायल हुए सैनिक

पांच साल की आयु से कैंसर को हराते आ रहे अथर्व की बांई टांग को काटना पड़ा था। इसके बाद भी कैंसर ठीक नही हुआ तो अथर्व ने पीड़ा का बर्दाश्त कर उसे अपनी हिम्मत से हराने की ठान ली।

By Lokesh Chandra MishraEdited By: Publish:Sun, 05 Sep 2021 06:59 PM (IST) Updated:Sun, 05 Sep 2021 06:59 PM (IST)
Jammu Kashmir : मौत को मात देने वाला अथर्व बढ़ा रहा लद्दाख के रक्षकों का हौंसला, छोटे योद्धा की हिम्मत के कायल हुए सैनिक
अथर्व ने लद्दाख की उंचाईयों तक पहुंचने के अपने सपने का साकार कर लिया।

जम्मू, विवेक सिंह : लद्दाख में सरहदों के रक्षक नौ वर्षीय योद्धा अथर्व तिवारी को अपने बीच पाकर उनकी हिम्मत के कायल हो गए। दिल्ली के अथर्व ने कारगिल वार मेमोरियल में उन शहीदों को श्रद्धांजलि दी जिन्होंने वर्ष 1999 में पाकिस्तान से कारगिल की चाेटियों को आजाद करवाते हुए प्राणों की आहुति दे दी थी। कैंसर से लड़ाई में कई बार मौत को मात दे चुके अथर्व ने लद्दाख की उंचाईयों तक पहुंचने के अपने सपने का साकार कर लिया। वह देखना चाहते थे कि सेना लद्दाख में किस तरह से सरहद की सुरक्षा करती है।

अथर्व आयु में भले ही नौ साल का हो लेकिन जज्बे में वह उन सैनिकों के जैसा ही है जो इस समय लद्दाख में सरहद की रक्षा करते हुए दुर्गम हालात में हार नही मानते हैं। पांच साल की आयु से कैंसर को हराते आ रहे अथर्व की बांई टांग को काटना पड़ा था। इसके बाद भी कैंसर ठीक नही हुआ तो अथर्व ने पीड़ा का बर्दाश्त कर उसे अपनी हिम्मत से हराने की ठान ली। युद्ध के मैदान में घायल किसी सैनिक की तरह वह व्हीलचेयर पर अपना बुलंद हौंसला दिखाते हुए शहीदों की याद में होने वाले सैन्य कार्यक्रमों में फौजी की वर्दी पहन कर पहुंचते हैं।

ऐसे में जब स्वजनों के साथ अथर्व दिल्ली से केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के कारगिल पहुंचे तो वहां पर शनिवार को उनका जोरदार स्वागत हुए। इस दौरान कारगिल की सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाली ब्रिगेड के अधिकारियों ने अथर्व के साथ बातचीत कर उनके हौंसले की सराहना की। उनसे मिलने वाले अधिकारी व सैनिक भी छोटे से बच्चे की बड़ी हिम्मत को देखकर हैरान थे।

अथर्व ने भी कभी दर्द, अस्पताल में एक के बाद एक हुए आपरेशनों व इलाज के दौरान होने वाली दिक्क्तों से हार न मानते हुए योद्धा का खिताब हासिल किया है। अथर्व आयु में भले ही नौ साल का हो लेकिन जज्बे में वह उन सैनिकों के जैसा ही

है जो इस समय लद्दाख में सरहद की रक्षा करते हुए दुर्गम हालात से हार मानने के लिए तैयार नही है। डा. निशा तिवारी को अपने बेटे की हिम्मत पर गर्व है। वर्ष 2015 में जब अथर्व के बाईं टांग में दर्द हुआ तो जांच के बाद पता चला कि बेटे को हड्डी का कैंसर है। इसके बाद दो आपरेशन हुए व आठ महीने कीमोथेरेपी हुई। इसके बाद से लगातार इलाज चल रहा है। कैंसर को मात देने में इस समय दवाईयों से कहीं अधिक अथर्व का जोश काम आ रहा है।

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