LAC पर चीन के मंसूबे नाकाम बनाएंगे लद्दाखी बक्करवाली कुत्ते, सेना का डॉग स्क्वाड विंग दे रहा विशेष ट्रेनिंग

लद्दाखी कुत्तों ने कई बार अग्रिम चौकियों पर विषम परिस्थितियों में जवानों की जान बचाने उन्हें संभावित खतरों के प्रति आगाह करने में अहम भूमिका निभायी है।

By Rahul SharmaEdited By: Publish:Thu, 10 Sep 2020 04:49 PM (IST) Updated:Thu, 10 Sep 2020 08:50 PM (IST)
LAC पर चीन के मंसूबे नाकाम बनाएंगे लद्दाखी बक्करवाली कुत्ते, सेना का डॉग स्क्वाड विंग दे रहा विशेष ट्रेनिंग
LAC पर चीन के मंसूबे नाकाम बनाएंगे लद्दाखी बक्करवाली कुत्ते, सेना का डॉग स्क्वाड विंग दे रहा विशेष ट्रेनिंग

श्रीनगर, नवीन नवाज।  पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन की नापाक हरकतों का जवाब देने के लिए सेना स्थानीय नस्ल के कुत्तों को तैयार कर रही है। विदेशी प्रजातियों पर वरीयता देते हुए बक्करवाली नस्ल के दो दर्जन कुत्तों को लेह स्थित डाग स्क्वॉयड विंग में प्रशिक्षण दे रही है। सुरक्षा बलों की डाग स्क्वॉयड में शामिल यह दूसरी स्वदेशी प्रजाति है। इससे पूर्व दक्षिण भारत में पाए जाने वाले मुडोल प्रजाति के शिकारी कुत्तों को सेना, एनएसजी व अन्य सुरक्षा एजेंसियां इस्तेमाल करती आ रही है।

सैन्य अधिकारियों ने बताया कि लद्दाख के अग्रिम इलाकों सियाचिन, द्रास और पूर्वी लद्दाख में तैनात जवान कई जगह अपने स्तर पर पहले से लद्दाखी कुत्तों को पालते आए हैं। इन कुत्तों ने अग्रिम चौकियों पर कई बार विषम हालात में जवानों की जान बचाई और संभावित खतरों के प्रति आगाह करने में अहम भूमिका निभाई है। इन घटनाओं और जवानों के अनुभवों पर लद्दाख की स्थानीय नस्ल को अधिकारिक तौर पर डाग स्क्वॉयड में शामिल करने का फैसला लिया गया है।

कई जगह इन कुत्तों ने बर्फ में दबे जवानों का पता लगाने में मदद की है। लद्दाख की इस प्रजाति के कुत्ते स्थानीय मौसम के अभ्यस्त हैं और गति और फुर्ती में कई विदेशी प्रजातियों को मात देते हैं। यह लडऩे में माहिर और मालिक के प्रति अत्यंत वफादार होते हैं। यह अपने क्षेत्र में अजनबी को आसानी से दाखिल नहीं होने देते। वह अपने मालिक को सचेत कर देता है। बिना अनुमति आने वाले पर तुरंत हमला करता है। लद्दाखी बक्करवाली प्रजाति के कुत्ते की सूंघने की क्षमता भी बहुत तेज है। बर्फ में तेजी से भागने और शिकार करने में माहिर ये कुत्ते स्लेज भी खींच सकते हैं। बक्करवाली और जंगली कुत्तों की फर अन्य प्रजातियों के मुकाबले थोड़ी मोटी व घनी होती है। इनकी शारीरिक सरंचना स्थानीय मौसम के अनुकूल होती है और कम बीमार पड़ते हैं।

हिमस्खलन में होते हैं मददगार: संबंधित अधिकारियों ने बताया कि लद्दाख में खानाबदोश चरवाहों द्वारा पाले जाने वाले बक्करवाली और अन्य जंगली कुत्तों के दस्ते को सेना ऑपरेशनल जरूरतों के मुताबिक प्रशिक्षण दे रही है। दो से आठ माह तक के कुत्तों को प्रशिक्षण के लिए चुना गया है। इन्हें पहरेदारी, हिमस्खलन में बचाव और विस्फोटकों का पता लगाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके अलावा स्लेज रनिंग के लिए तैयार किया जा रहा है। प्रशिक्षकों के अनुसार यह जल्दी सीख रहे हैं। इस दस्ते को पूर्वी लद्दाख में अग्रिम चौकियों में तैनात किया जाएगा।

विदेशी प्रजातियां पड़ती हैं महंगी: सेना मुख्यत: लेब्राडर, जर्मन शेफर्ड, डाबरमैन जैसी विदेशी प्रजातियों को ही डाग स्क्वॉयड में शामिल करती आई है। इन्हें विभिन्न ऑपरेशनल गतिविायिों के लिए तैयार किया जाता था। लद्दाख में जर्मन शेफर्ड को ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। इस पर खर्च अधिक आता है। स्थानीय प्रजातियों के प्रशिक्षण में खर्च भी कम आता है। यह कई मामलों में जर्मन शेफर्ड से ज्यादा बेहतर हैं। यह अपने इलाके में घुसपैठ को जल्द भांपते हैं।

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