भारतीय हाकी में नई जान फूंकने वाला साबित हुआ टोक्यो ओलिंपिक 2020

दिग्गज भारतीय हाकी खिलाड़ियों का मानना है कि टोक्यो ओलिंपिक भारतीय हाकी में नई जान फूंकने वाला साबित हुआ। अब यहां से मेहनत की जाए तो भारतीय हाकी फिर से अपना पुराना गौरव और स्वर्णिम दौर वापस पा सकती है।

By Sanjay SavernEdited By: Publish:Sun, 08 Aug 2021 08:03 PM (IST) Updated:Mon, 09 Aug 2021 04:26 PM (IST)
भारतीय हाकी में नई जान फूंकने वाला साबित हुआ टोक्यो ओलिंपिक 2020
भारतीय हॉकी टीम के खिलाड़ी जश्न मनाते हुए (एपी)

उमेश राजपूत, नई दिल्ली। हाकी में भारत को चार दशक के बाद ओलिंपिक पदक हासिल हुआ। मनप्रीत की अगुआई वाली पुरुष हाकी टीम ने जर्मनी को 5-4 से हराकर कांस्य पदक अपने नाम किया तो रानी रामपाल की अगुआई वाली महिला टीम बेशक पदक जीतने से चूक गई, लेकिन उसने दिल जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दिग्गज भारतीय हाकी खिलाड़ियों का मानना है कि टोक्यो ओलिंपिक भारतीय हाकी में नई जान फूंकने वाला साबित हुआ। अब यहां से मेहनत की जाए तो भारतीय हाकी फिर से अपना पुराना गौरव और स्वर्णिम दौर वापस पा सकती है।

1964 टोक्यो ओलिंपिक में भारतीय हाकी टीम ने पाकिस्तान को हराकर स्वर्ण पदक जीता था। उस टीम में खेलने वाले गुरबक्श सिंह अब 85 साल के और हरबिंदर सिंह 78 साल के हो चुके हैं। गुरबक्श सिंह कहते हैं, '40 साल से ज्यादा से हम ना तो विश्व कप और ना ही ओलिंपिक में कोई पदक जीत सके थे, लेकिन अब यह इंतजार खत्म हुआ। यह जीत हमारी हाकी को काफी ऊंचाई पर ले जाएगी। मेजर ध्यानचंद या फिर उसके बाद हमारे जमाने में टीवी नहीं था, लेकिन अब ना सिर्फ टीवी है, बल्कि तकनीक है, जिससे लोगों ने इस जीत का लुत्फ उठाया होगा। यह जीत हमारी नई पीढ़ी को प्रेरित करेगी और हमारी हाकी बेहतर से बेहतर होती जाएगी।' वहीं, हरविंदर सिंह ने कहा, 'टोक्यो एक बार फिर भारत के लिए भाग्यशाली साबित हुआ। यह पदक भारत की हाकी में नया बदलाव लेकर आएगा। ये पदक देश के बच्चों को हाकी के प्रति आकर्षित करेगा और इस टीम को और अच्छा करने की प्रेरणा देगा। अब इस टीम का हर खिलाड़ी ओलिंपिक पदक विजेता कहलाएगा और ये अपने आप में गौरव की बात है।'

1975 विश्व कप विजेता भारतीय हाकी टीम के कप्तान और दो बार ओलिंपिक कांस्य पदक जीतने वाली टीम के सदस्य अजित पाल सिंह ने कहा, '1980 में स्वर्ण जीतने के बाद से हम पदक के लिए तरस गए थे। बहुत मेहनत और मुश्किल से कई वर्षो के इंतजार के बाद अब हम फिर पोडियम पर पहुंचे हैं तो यह अहसास अपने आप में ही पुराने दिनों की याद दिलाने वाला है। 2008 बीजिंग ओलिंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं करने के बाद से भारतीय हाकी में काफी मेहनत हुई है, लेकिन हमें यहीं नहीं रुकना चाहिए। अब कांस्य आ गया है, लेकिन स्वर्ण का इंतजार बना हुआ है और ये इंतजार भी खत्म हो, इसके लिए कुछ और क्षेत्र हैं जिन पर काम होना जरूरी है।'

1975 विश्व कप विजेता और 1972 के म्यूनिख ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय टीम के सदस्य अशोक ध्यानचंद ने कहा, 'इस टीम में पदक जीतने का दम था और इसमें यह कर दिखाया। अब ओलिंपिक पदक वापस आ गया है तो यकीनन भारतीय हाकी के पुराने दिन लौट आए हैं। अब हमें इस पदक को भुनाना है। इस पदक ने हमें भारतीय हाकी का सुनहरा दौर लाने के लिए एक मंच दिया है और अब हमें यहां से इसे आगे ले जाना है।'

म्यूनिख ओलिंपिक 1972 की कांस्य पदक विजेता भारतीय टीम के सदस्य अजित सिंह अब 70 साल के हो गए हैं और इस जीत के बाद उनमें युवाओं जैसा जोश देखने को मिला। उन्होंने कहा, 'मैं तो खुशी के मारे फूला नहीं समा रहा हूं। हालांकि, आखिरी मिनटों में ऐसी हालत हो गई थी कि लग रहा था कि दिल का दौरा ना पड़ जाए, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि अब मैं 10 साल ज्यादा जीऊंगा। इस पदक ने भारतीय हाकी के पुराने दिनों को लौटाने की शुरुआत कर दी है। यह जीत सिर्फ इस टीम की नहीं है, बल्कि उन सभी को भी उसका श्रेय मिलना चाहिए, जिन्होंने पिछले कुछ वर्षो में इस टीम के साथ मेहनत की है। अब चाहें वे खिलाड़ी हों, पूर्व कोच हों या सहयोगी स्टाफ। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की भी इसमें बड़ी भूमिका है, जिन्होंने हाकी का तब साथ दिया जब उसे कोई स्पांसर नहीं मिल रहा था।'

1975 विश्व कप विजेता भारतीय टीम के सदस्य एजजेएस चिमनी ने कहा, 'इस पदक से यह साबित होता है कि इस टीम में अपनी काबिलियत को साबित करने का दमखम है। पदक की उम्मीद तो सभी को थी, लेकिन जब हम आस्ट्रेलिया के खिलाफ हार गए थे तो मुझे लगता है कि उस हार ने सभी खिलाड़ियों को बेहतर करने की काफी प्रेरणा दी होगी, क्योंकि उसके बाद टीम के प्रदर्शन में काफी सुधार देखने को मिला। इस पदक से ना सिर्फ इस टीम का मान बढ़ा है, बल्कि देश का गौरव भी बढ़ा है। यह जीत युवा खिलाड़ियों को प्रेरित करेगी।'

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