छोटी सोच व स्वार्थी प्रवृत्ति बनती है पतन का कारण
स्वामी पिडीदास जी आश्रम अम्ब में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में अतुल कृष्ण महाराज ने कहा कि हमारी छोटी सोच एवं स्वार्थी प्रवृत्ति ही हमारे पतन का कारण बनती है। परमार्थ की सोच से अपना भी भला होता है और समाज व राष्ट्र का भी भला होता है। सर्वोत्तम मानव जीवन पाकर लीला पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण का सेवन करना भाग्यशाली के लक्षण हैं।
संवाद सहयोगी, अम्ब : स्वामी पिडीदास जी आश्रम अम्ब में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में अतुल कृष्ण महाराज ने कहा कि हमारी छोटी सोच एवं स्वार्थी प्रवृत्ति ही हमारे पतन का कारण बनती है। परमार्थ की सोच से अपना भी भला होता है और समाज व राष्ट्र का भी भला होता है। सर्वोत्तम मानव जीवन पाकर लीला पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण का सेवन करना भाग्यशाली के लक्षण हैं। प्रभु चितन एवं भक्तियोग के प्रभाव से जीव के सारे बंधन कट जाते हैं।
अतुल कृष्ण महाराज ने कहा कि ईश्वर में तन्मय मन जन्म-जन्मांतर के वासन समय बीजों को भस्म कर डालता है। श्रीमद्भागवत कथा बार-बार सुनने से हृदय दिव्य भक्ति रस से आप्लावित हो जाता है। लज्जा एवं संकोच छोड़कर भगवान की लीलाओं का गायन करना चाहिए। भगवान के भक्त किसी स्थान, व्यक्ति, वस्तु में अनासक्त हुए बिना निर्भय होकर सर्वत्र विचरण करते हैं। परमात्मा की निश्चल भक्ति हमें अज्ञानता की गुफाओं से बाहर निकाल देती है। जिसने अपने को प्रभु चरणों में समर्पित कर रखा है उसके दुखों का सदा-सर्वदा के लिए नाश हो ही जाता है। जो प्रभु का बन चुका है उससे सारा संसार भी रूठ कर क्या बिगाड़ लेगा। तपश्चर्या, व्रत, स्वाध्याय, दान, तीर्थ सेवन, कथा एवं सत्संग श्रवण जीवन के उत्कर्ष के परम साधन हैं।
उन्होंने कहा कि हमारे स्वभाव के लोभ-लालच, आलस्य, असत्य आचरण ने ही हमारी शांति छीन ली है। इन कुसंस्कारों के मिटाए बिना चैन की नींद नहीं सो सकेंगे। कथा में भगवान श्रीकृष्ण की अनेक बाल लीलाएं, महारास, कंस-वध एवं श्रीरुक्मिणि विवाह का प्रसंग सभी ने अत्यंत तन्मयता से सुना।