त्वचा कैंसर से उपचार में कारगर क्रीम तैयार, शूलिनी विश्वविद्यालय में सात साल शोध के बाद हासिल की सफलता

skin cancer treatment सोलन स्थित शूलिनी विश्वविद्यालय के कैंसर अनुसंधान केंद्र ने रेड पिगमेंट नामक तत्व से त्वचा कैंसर से बचाव और उपचार में कारगर क्रीम तैयार की है। यह तत्व लद्दाख की पैंगोंग झील में रोहडनलेम फिक्रोफिलम नामक जीवाणु में पाया जाता है।

By Vijay KumarEdited By: Publish:Fri, 24 Sep 2021 08:12 PM (IST) Updated:Sat, 25 Sep 2021 07:57 AM (IST)
त्वचा कैंसर से उपचार में कारगर क्रीम तैयार, शूलिनी विश्वविद्यालय में सात साल शोध के बाद हासिल की सफलता
शूलिनी विश्वविद्यालय सोलन का कैंसर अनुसंधान केंद्र। जागरण

भूपेंद्र ठाकुर, सोलन! सोलन स्थित शूलिनी विश्वविद्यालय के कैंसर अनुसंधान केंद्र ने रेड पिगमेंट नामक तत्व से त्वचा कैंसर से बचाव और उपचार में कारगर क्रीम तैयार की है। यह तत्व लद्दाख की पैंगोंग झील में रोहडनलेम फिक्रोफिलम नामक जीवाणु में पाया जाता है। विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने करीब सात साल तक शोध करने के बाद इसमें सफलता हासिल की है। दावा किया जा रहा है कि वर्ष 2025 तक यह क्रीम बाजार में आ जाएगी। दावा है कि क्रीम सभी स्टेज के त्वचा कैंसर पर काम करेगी।

शूलिनी विश्वविद्यालय में किए गए शोध में पाया गया है कि कैंसर की सबसे बड़ी वजह फल व सब्जियों में अत्यधिक कीटनाशकों का इस्तेमाल है। कीटनाशक फल व सब्जियों में छिड़काव के बाद भूमि में जा रहे हैं। पेयजल के माध्यम से इनका कुछ अंश हमारे शरीर में जा रहा है, जो कई प्रकार के कैंसर का कारण बनता है।

इस तरह हुआ शोध

विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने लद्दाख की पैंगोंग झील से पानी व मिट्टी के सैंपल वर्ष 2015 में लिए थे। शोध के दौरान रोहडनलेम फिक्रोफिलम जीवाणु से रेड पिगमेंट तत्व अलग किया गया। फिर रेड पिगमेंट को क्रीम का रूप दिया गया है। वर्ष 2018 में आइआइटी दिल्ली के दो विज्ञानियों ने भी इस कार्य में सहयोग किया।

पैंगोंग झील को ही क्यों चुना

कैंसर अनुसंधान केंद्र शूलिनी विश्वविद्यालय के निदेशक डा. कमल देव का कहना है कि सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणें इंसान की त्वचा के लिए हानिकारक होती हैं। हमारा शरीर प्राकृतिक रूप से ऐसे तत्व पैदा करता है, जो हमें कैंसर व अन्य बीमारियों से लडऩे में सक्षम बनाता है। जब शरीर कमजोर होता है तो कैंसर के जीवाणु हावी हो जाते हैं। पैंगोंग झील काफी अधिक ऊंचाई पर है, इसलिए यहां पर पराबैंगनी किरणें मैदानी क्षेत्र की अपेक्षा अधिक घातक होती हैं। यही वजह है कि झील में पाए जाने वाले रोहडनलेम फिक्रोफिलम जीवाणु में इससे बचाव के लिए अधिक असरदार रेड पिगमेंट तैयार होता है।

अब होगा क्लीनिकल ट्रायल

वर्ष 2019 में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय भारत सरकार से पेटेंट करवाया गया था। अब क्रीम का क्लीनिकल ट्रायल होगा। विश्वविद्यालय के कैंसर अनुसंधान केंद्र में जल्द ही जानवरों पर क्रीम का क्लीनिकल ट्रायल होगा। यहां सफलता मिलने के बाद इंसानों पर ट्रायल किया जाएगा। सब कुछ सही रहा तो किसी निजी कंपनी के साथ मिलकर इस क्रीम का व्यावसायिक उत्पादन किया जाएगा।

यूरोप के जर्नल में प्रकाशित हुआ शोध

यह शोध यूरोप के एल्सवीयर जर्नल में जुलाई 2020 में प्रकाशित हुआ है। विवि के अब तक 630 शोध पेटेंट हो चुके हैं। ये सभी विभिन्न जर्नल में प्रकाशित भी हुए हैं। इनमें प्रमुख रूप से नावल हर्बल एंटी कैंसर कंपाउंड तकनीक, नावल एंटी कैंसर कंपाउंड, नावल एंटी कैंसर नैनो कंपोजिट, हर्बल कंपोजिशन फार ब्रेस्ट कैंसर, स्मार्ट एंटी कैंसर नैनोजेल व स्कीन कैंसर डायग्नोजिज डिवाइस शामिल हैं ।

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