लोगों को मशरूम का मास्टर कल्चर देना डीएमआर का उद्देश्य

देश में मौजूदा समय में मशरूम की खेती बड़े पैमाने पर हो रही है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 31 Oct 2021 10:43 PM (IST) Updated:Sun, 31 Oct 2021 10:43 PM (IST)
लोगों को मशरूम का मास्टर कल्चर देना डीएमआर का उद्देश्य
लोगों को मशरूम का मास्टर कल्चर देना डीएमआर का उद्देश्य

मनमोहन वशिष्ठ, सोलन

देश में मौजूदा समय में मशरूम की खेती बड़े पैमाने पर हो रही है। मशरूम को हजारों उत्पादकों ने अपनी आजीविका का सहारा भी बनाया है। आज कई किस्मों के मशरूम की खेती देशभर में हो रही है। मशरूम से कई तरह के उत्पाद भी तैयार हो रहे हैं। सोलन जिला में 60 के दशक से ही मशरूम उत्पादन व अनुसंधान पर कार्य हो रहा है। लिहाजा इसको मशरूम सिटी आफ इंडिया का भी दर्जा मिला हुआ है। वहीं देश का एकमात्र मशरूम अनुसंधान निदेशालय (डीएमआर) भी सोलन में स्थित है। डीएमआर का उद्देश्य देश के लोगों को मशरूम का मास्टर कल्चर देना, उत्पादन में नई तकनीक व नई किस्मों पर अनुसंधान कर किसानों को प्रशिक्षित करना है। मौजूदा समय में डीएमआर किन किस्मों पर अनुसंधान कर रहा है, इस पर दैनिक जागरण ने डीएमआर के निदेशक डा. वीपी शर्मा से बात की। -देश में मशरूम की खेती की शुरुआत कब हुई?

देश में मशरूम का इतिहास देखें तो 1961 में बटन मशरूम की खेती शुरू हुई। उसी दौरान हिमाचल में एक डेवलपमेंट आफ मशरूम कल्टीवेशन योजना आई। इसको आइसीएआर व कृषि विभाग ने किया। बाहर से विशेषज्ञ ने यहां आकर संसाधन विकसित करने में योगदान दिया। नौणी विश्वविद्यालय, जो उस समय कृषि कालेज होता था, उसमें स्पान लैब बनाई गई। 1968 में देश मे पांच कमर्शियल यूनिट लगाए गए। इसमें मधु कोहली, कसौली के नजदीक सहगल मशरूम, महाराज पटियाला का टैग मशरूम फार्म, श्रीनगर में कर्नल कैप व अंबाला में ब्रिगेडियर हमिद्र नाम से यूनिट लगे। -सोलन में देश का एकमात्र मशरूम अनुसंधान निदेशालय कब बना?

1971 ने कार्डिनेटिड स्कीम आई, जिसका मुख्यालय भी सोलन बना। उसके कुछ सहयोगी स्टेशन दिल्ली, लुधियाना व पुणे में भी खोले गए। मशरूम की खेती में संभावना देखते हुए 1983 में यहां नेशनल सेंटर फार मशरूम रिसर्च एंड ट्रेनिग खोला गया। इसके साथ पूरे देश में छह सहयोगी केंद्र भी खोले गए। 2008 में यहां देश का एकमात्र मशरूम अनुसंधान (डीएमआर) निदेशालय खोला गया। 1997 में सोलन को मशरूम सिटी आफ इंडिया का दर्जा दिया गया था। -देश में पहले व आज कितना मशरूम का उत्पादन हो रहा है?

देश में शुरू में तीन हजार टन मशरूम का उत्पादन प्रतिवर्ष होता था, वह भी बाहर की तकनीक से, लेकिन आज दो लाख, 42 हजार टन प्रतिवर्ष उत्पादन हो रहा है। देश में मशरूम उत्पादन में ओडिसा पहले, महाराष्ट्र दूसरे, हरियाणा तीसरे व पंजाब चौथे स्थान पर है। डीएमआर के अलावा 26 राज्यों में 32 सहयोगी केंद्र भी संचालित हैं। -डीएमआर अब तक मशरूम की कितनी किस्में विकसित कर चुका है?

डीएमआर अब तक मशरूम की 36 के करीब किस्मों को विकसित कर चुका है, लेकिन कमर्शियल स्तर पर 10-12 किस्मों का ही उत्पादन ज्यादा होता है। इनमें बटन मशरूम का 70 प्रतिशत, ढींगरी 16 प्रतिशत, शिटाके नौ प्रतिशत, मिल्की मशरूम तीन प्रतिशत, शिटाके, पैडी स्ट्रा, गैनोडर्मा आदि व अब कीड़ा जड़ी मशरूम के उत्पादन को किसान ज्यादा बढ़ावा दे रहे है। शिटाके, गैनोडर्मा व ग्राइफोला आदि कई ऐसे मशरूम है जो पूर्णरूप से औषधीय तत्वों वाले हैं। -डीएमआर कितना स्पान तैयार करता है?

डीएमआर का उद्देश्य किसानों को मशरूम का बेहतर कल्चर उपलब्ध करवाना है। हम देशभर में स्पान की मांग को पूरा नहीं कर सकते। हमारे देशभर में संचालित केंद्रों, निजी व सरकारी कृषि विवि भी उत्पादकों के लिए स्पान तैयार करते हैं। डीएमआर प्रतिवर्ष 50 से 60 टन स्पान तैयार कर रहा है। -किसानों को मशरूम उत्पादन के लिए कैसे तैयार किया जाता है?

प्रशिक्षण शिविर लगाए जाते हैं। बीते वर्ष कोरोना काल के कारण ट्रेनिग करवाने में दिक्कतें आई, लेकिन हमने आनलाइन प्रशिक्षण दिया। अब आफलाइन भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। 35 से अधिक मशरूम के उत्पाद तैयार किए हैं। कुछ के लिए कंपनियों से एमओयू भी किए हैं। इसमें मशरूम मल्टीग्रेन ब्रेड, बिस्कुट व अन्य शामिल है। हमनें गुच्छी मशरूम को भी विकसित करने में सफलता हासिल कर ली है।

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