हिमाचल का कालापानी डगशाई जेल

ब्रिटिशकाल के दौरान हिमाचल में बने कई भवन अपनी नक्काशी के लिए जाने जाते हैं। सोलन जिले के डगशाई स्थित जेल को हिमाचल की कालापानी की जेल के नाम से जाना जाता है। यहां महात्मा गांधी के अलावा नाथूराम गोड़से भी आ चुके हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 23 Sep 2018 06:05 PM (IST) Updated:Sun, 23 Sep 2018 07:21 PM (IST)
हिमाचल का कालापानी डगशाई जेल
हिमाचल का कालापानी डगशाई जेल

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मनमोहन वशिष्ठ, डगशाई (सोलन)

ब्रिटिशकाल के दौरान हिमाचल में बने कई भवन अपनी भव्यता के लिए पहचान रखते हैं, लेकिन कुछ भवन ऐसे भी हैं जिनके बारे में जानने पर रूह भी काप जाती है। इन भवनों में अंग्र्रेजों द्वारा किए गए जुल्मों से आज भी दिल सहम उठता है और मन भगवान का यही शुक्रिया अदा करता है की हम उस गुलामी की जंजीरों की बजाए आजाद खुली हवा में सास ले रहे हैं। आज हम बात कर रहे हैं सोलन जिले में स्थित देश की सबसे पुरानी ब्रिटिश छावनियों में से एक डगशाई छावनी के बारे में। ब्रिटिशकाल में बनी सेंट्रल जेल डगशाई में भारतीयों पर हुए जुल्मों की कहानी सुनकर आज भी लोग सिहर उठते हैं। आइए जानें कालापानी के नाम से मशहूर डगशाई जेल के बारे में कुछ रोचक तथ्य.. हिमाचल प्रदेश के प्रवेश द्वार पर स्थित पर्यटन नगरी कसौली से 15 किलोमीटर दूर डगशाई कैंट है जहा यह जेल स्थित है। जेल को अब एक संग्रहालय में बदला जा चुका है। इस जेल की सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसमें राष्ट्रपिता महात्मा गाधी ने भी एक दिन बिताया था, हालाकि सजा के तौर पर नहीं बल्कि वह कैदियों से मिलने यहा आए थे। पहाड़ी पर स्थित डगशाई गाव को महाराजा पटियाला ने अंग्रेजों को दान में दिया था और अंग्रेजों ने इसको अपनी छावनी के रूप में स्थापित किया था। अंग्रेजों ने छावनी के साथ साथ यहा बागियों को रखने के लिए एक केंद्रीय कारागार का भी निर्माण करवाया था। डगशाई जेल में प्रवेश करते ही काल कोठरियों में घने अंधेरे के कारण दिन में ही रात का आभास होता है। अंधेरी कोठरियों की दीवारों से आज भी कैदियों के दम घुटने की सिसकिया कानों में गूंजती प्रतीत होती हैं।

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टी आकार की किले नुमा है जेल डगशाई जेल आज भी ब्रिटिश शासकों के मनमाने आदेश थोपने के प्रमाणों को उजागर करती है। जेल में बनी कोठरिया इस बात को बताती हैं कि जो कैदी अति अनुशासनहीन होते थे उन्हें एकात कैद कक्ष में डाल दिया जाता था जिसमे हवा व रोशनी का कोई भी प्रबंध नहीं होता था। जेल में कुल 54 कैद कक्ष हैं, जिनमें से 16 को एकात कैद कक्ष कहा जाता है, इनका उपयोग कठोर दंड देने के लिए किया जाता था। इन जेलखानों में बहुत मुश्किल से हवा अंदर आ पाती है और किसी भी जगह से प्रकाश के अंदर आने का कोई स्नोत नहीं है। एक सेल खास तौर पर उच्च कठोर दंड देने के लिए अलग से बनाया गया है। इस सेल के तीन दरवाजे हैं। एक बार अगर किसी कैदी को वहा के एक दरवाजे से अंदर डाला गया तो बाकी के दरवाजे भी बंद कर दिए जाते थे, जिससे उस कैदी की हलचल पर प्रतिबंध लग जाए। जेलखाने में जगह बहुत कम होने की वजह से कैदी एक ही जगह खड़े होने के लिए बाध्य हो जाता था। यह सजा अंग्रेजी शासन को चुनौती देने पर सबसे कठोर सज़ा हुआ करती थी।

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1849 में किया था जेल का निर्माण यह जेल टी आकार की है, जिसमे ऊंची छत व लकड़ी का फर्श है। ऐसे निर्माण के पीछे यह उद्देश्य रहा होगा की कैदी की किसी भी गतिविधियों की आवाज को चौकसी दस्ते आसानी से सुन सके। केंद्रीय जेल का निर्माण सन 1849 में 72875 रुपये की लागत से किया गया था, जिसमें 54 कैदकक्ष हैं। हर कैदकक्ष का भूतल क्षेत्रफल 8श्12 फीट है, जिसकी छत 20 फीट ऊंची है। भूमिगत पाइपलाइन से भी अंदर हवा आने की सुविधा है, जो बाहर की दीवारों में जाकर खुलती है। इसका फर्श व द्वार दीमक प्रतिरोधी सागौन की लकड़ी से बने हैं जो आज भी भी उसी स्वरूप में है।

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खास लोहे से बने कैदकक्ष यहा जेल में बने हर कैदकक्ष के द्वारों का निर्माण ढलवें के लोहे से किया गया है। इन्हें किसी हथियार के बिना नहीं काटा जा सकता है। जेल एक मजबूत किले की तरह है जिसका मुख्य द्वार बंद होने के बाद न तो फादकर बाहर जाया जा सकता है और न ही अंदर प्रवेश किया जा सकता है। अंग्रेजों ने इस जेल का इस्तेमाल बागी आयरिश कैदियों को रखने के लिए किया था।

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महात्मा गाधी भी आए थे यहा डगशाई जेल के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि 1920 में राष्ट्रपिता महात्मा गाधी भी यहा आ चुके हैं। उस समय जिस सेल में वह आए थे उसके बाहर महात्मा गाधी की तस्वीर लगाई हुई है। आयरिश सैनिकों की होती गिरफ्तारी ने महात्मा गाधी को शीघ्र ही डगशाई आने के लिए प्रेरित किया, ताकि वे यहा आकर एकाएक इसका आकलन कर सकें। इस जेल में बागी आयरिश सैनिकों सहित हिंदुस्तान के स्वतंत्रता सेनानियों को भी रखा जाता था। कईयों को तो यहा जेल में ही फासी पर भी लटका गया था। 1857 में हुई कसौली क्त्राति के कई वीर क्त्रातिकारियों को भी इसी जेल में रखा गया था। महात्मा गाधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को भी शिमला कोर्ट में ट्रायल के दौरान डगशाई जेल में ही रखा गया था।

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दाग ए शाही से बिगड़ा नाम डगशाई बहुत ही कम लोग जानते हैं कि जो कैदी इस जेल से सजा काटकर निकलता था तो उसके माथे पर दाग ए शाही की अमिट मुहर लगा दी जाती थी, जिसे देखकर हर किसी को यह पता चल जाता था कि ये शख्स दाग ए शाही जेल की सजा काटकर आया है। कालातर में दाग ए शाही से बिगड़कर डगशाई नाम प्रचलित हो गया। डगशाई आज भी सैन्य छावनी है।

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अब म्यूजियम है जेल डगशाई जेल को अब म्यूजियम बना दिया गया है। बताया जाता है कि कालापानी के नाम से मशहूर अंडमान निकोबार की जेल के बाद यह भारत का दूसरा जेल म्यूजियम है। म्यूजियम में उस उसम की कई तस्वीरें, कलाकृतिया, तोपखाने उपकरण व अन्य जानकारी दस्तावेज रखे हुए। यहा हर सप्ताह वीकेंड पर जेल को देखने के लिए पर्यटकों का जमावड़ा रहता है। पर्यटक जेल को घूमकर अंदाजा लगा लेते हैं कि यहा उस जमाने में कैदियों को कितनी कठोर सजा व यातनाएं दी जाती थीं। जेल के हर जेलखाने का ब्योरा, जेलखानों के बाहर लगे बोर्ड में उल्लेखित है।

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